सूरत : प्राकृतिक खेती से आत्मनिर्भर बनीं बारोदिया गांव की मां-बेटी 

44 वर्षीय सरलाबेन ने शिक्षक की नौकरी छोड़कर अपनी 65 वर्षीय मां नयनाबेन के साथ मिलकर प्राकृतिक खेती शुरू की 

सूरत : प्राकृतिक खेती से आत्मनिर्भर बनीं बारोदिया गांव की मां-बेटी 

सूरत जिले के महुवा तालुका के बारोदिया गांव की 44 वर्षीय सरलाबेन राठोड और उनकी 65 वर्षीय मां नयनाबेन ने प्राकृतिक खेती के क्षेत्र में मिसाल कायम की है। शिक्षक की नौकरी छोड़कर गाय के गोबर और गौमूत्र आधारित जैविक खाद से उन्होंने केले और हल्दी की खेती शुरू की और आर्थिक रूप से सशक्त बनीं।  

सरलाबेन ने मांडवी प्रायोजन कार्यालय द्वारा संचालित ‘टिश्यू कल्चर बनाना योजना’ के तहत 2.50 विघा जमीन पर 1500 केले के पौधे प्राप्त किए। सरकारी सहायता के कारण खेती की लागत 80,000-90,000 रुपये से घटकर लगभग 30,000 रुपये रह गई। केले की फसल से लगभग 3 लाख रुपये की आय हुई, जिसमें से 2.50 लाख रुपये शुद्ध मुनाफा रहा। इसके अलावा, उन्होंने हल्दी का भी उत्पादन शुरू किया और हल्दी पाउडर बनाकर सोशल मीडिया के माध्यम से विपणन किया, जिससे हर महीने 30,000 रुपये की अतिरिक्त आय हो रही है।  

प्राकृतिक खेती अपनाने के शुरुआती दौर में कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। वे बताती हैं,"लोग हम पर हंसते थे और कहते थे कि महिलाएं खेती के लिए नहीं बनीं, लेकिन आज हमारा उत्पादन और सम्मान, दोनों बढ़ चुके हैं।"  

सरलाबेन को हल्दी पाउडर पीसने की पल्वेराइजर मशीन, पावर टीलर, झटका मशीन और प्रेशर पंप पर सरकारी सब्सिडी मिली, जिससे उनका काम आसान हुआ। वे कहती हैं, "राज्य सरकार की किसान-समर्थक योजनाओं ने हमें आत्मनिर्भर बनाया, और इसके लिए मैं आभारी हूं।" प्राकृतिक खेती को अपनाकर सरलाबेन और नयनाबेन न केवल खुद सशक्त बनीं, बल्कि अपने क्षेत्र के अन्य किसानों के लिए भी प्रेरणा बन गई हैं।

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