सूरत : बदलते व्यवसायिक पैटर्न की वजह से नीटिंग इंडस्ट्रीज की ओर बढ रहा व्यापारियों का रुझान : अशोक सिंघल

कहा - स्किल्ड लेबर न होने से बाजार में टिके रहने में मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है

सूरत : बदलते व्यवसायिक पैटर्न की वजह से नीटिंग इंडस्ट्रीज की ओर बढ रहा व्यापारियों का रुझान : अशोक सिंघल

औद्योगिक नगरी सूरत में पूर्व में पॉलिस्टर यार्न से बने कपड़े ही तैयार होते थे, लेकिन बदलते व्यवसायिक पैटर्न की वजह से अब लगभग सभी प्रकार के कपड़े तैयार होने से लगे हैं। यहां से तैयार हुए कपड़े देश के विविध शहरों के अलावा दुनिया भर के देशों में जाते हैं। हाल के दिनों में पाश्चात्य संस्कृति के बढ़ते प्रचलन के कारण भारतीय पारंपरिक परिधान (साड़ी, सूट) की मांग कम होने की वजह से व्यापारियों का रुझान धीरे-धीरे गारमेन्ट इंडस्ट्रीज की ओर बढ़ती जा रही है, लेकिन गारमेंट इंडस्ट्रीज में लेबर चार्ज, बिजली महंगी होने के साथ स्किल्ड लेबर ना होने से मार्केट में टिके रह पाना उनके लिए मुश्किल हो रहा है।

 इस संदर्भ में रघुकुल मार्केट के व्यापारी एवं आशीर्वाद नीटिंग इंडस्ट्रीज के संचालक अशोक सिंघल ने बताया कि हाल के दिनों में नीटिंग इंडस्ट्रीज बहुत अच्छा चल रहा है। नीटिंग कपड़ों की मांग निरंतर बढ़ते रहने के साथ रेगुलर मांग बनी हुई है। यही कारण है कि हाल के दिनों में व्यापारियों का रुझान इस इंडस्ट्रीज की ओर बढ़ता जा रहा है। उन्होंने कहा कि हमारे यहां विंटर वेयर एवं समर वेयर दो प्रकार के कपड़े तैयार होते हैं, जिसकी मांग रेगुलर बनी रहती है। हालांकि सूरत में ज्यादा प्रोडक्शन होने के कारण यहां से तैयार किए गए कपड़े तिरुपुर, कोलकाता, मुंबई, इंदौर, लुधियाना, दिल्ली आदि शहरों में भेजा जाता है। साड़ी की बिक्री धीरे-धीरे कम होने की वजह से गारमेंट इंडस्ट्रीज अच्छी तरह से पनप रहा है, लेकिन सूरत में लेबर चार्ज महंगा होने के साथ बिजली भी महंगी है। इसके अलावा स्किल्ड लेबर न होने से बाजार में टिके रहने में मुश्किलों का सामना करना पड़ता है।

अशोक सिंघल ने बताया कि सूरत में तकरीबन 10 लाख लेबर होंगे और उनकी मांग नियमित बनी रहती है। साथ ही यहां की लेबर कभी नीटिंग में तो कभी वेडिंग में, कभी स्टिचिंग में तो कभी एंब्रॉयडरी में चले जाते हैं, जिससे उनमें स्किल्ड डेवलप नहीं हो पाता। जबकि दूसरे शहरों के लेबर यदि स्टिचिंग में है तो स्टिचिंग में ही रहते हैं, नीटिंग में है तो नीटिंग में ही रहते हैं, जिससे वह पूरी तरीके से स्किल्ड लेबर के रूप में तैयार हो जाते हैं। दूसरे शहरों में जो एक लेबर 50 पीस कपड़ों की स्टिचिंग कर लेते हैं, वहीं सूरत के लेबर 30 कपड़े ही तैयार कर पाते हैं। दूसरे शहरों में प्रति पीस 7 से 8 रुपए ही लेबर चार्ज है, जबकि वहीं सूरत में 14 से 15 रुपये प्रति पीस लेबर चार्ज होता है। यही कारण है कि यहां के व्यापारी गारमेंट इंडस्ट्रीज में और शहरों से तुलना नहीं कर पाते हैं या उनके समक्ष टिक पाना मुश्किल होता है। जहां एक ओर 100 रुपये में टी शर्ट बेच दिया जाता है, वहीं 7-8 रुपए का लेबर चार्ज मायने रखती है। 

कपड़ा बाजार में बढ़ती जा रही है फैंसी कपड़ों की मांग : रमेश चोटिया

कपड़ा बाजार में फैंसी कपड़ों की मांग निरंतर बढ़ती जा रही है। नित नये कपड़ों की मांग को देखते हुए मांगों के अनुसार ग्रे तैयार करने लगे हैं।  हालांकि रेगलुर ग्रे की मार्केट अभी स्थिर यानी सुस्त है और कीमतें भी टूट रहे हैं। ग्रे व्यवसाय से जुड़े रमेश चोटिया ने बताया कि कपड़ा बाजार में फैंसी ग्रे की मांग दिनों दिन बढ़ती जा रही है। जबकि रेगुलर ग्रे की पिछले डेढ़ महीने से स्थिर है। सूरत में पॉलिएस्टर यार्न की खपत सबसे अधिक है, इसमें भी 
पॉलिएस्टर 60 ग्राम, सी x सी 60 ग्राम, वेटलेस, वेटलेस 7200, वेटलेस 7800, वेटलेस 8200 के अलावा सीपी विचित्रा पी x पी विचित्रा ग्रे के भाव हाल में तो टूटे हुए हैं लेकिन उनकी मांग भी फैंसी ग्रे की अपेक्षा कम है। जबकि वर्तमान में फैंसी ग्रे गोल्ड कॉइन, सी x सी ग्लोसी, एन x सी सीफॉन जैसे फैंसी ग्रेस की मांग कपड़ा मार्केट में अधिक हो रही है। हालांकि पिछले 15 दिनों से फैंसी ग्रे की मांग भी स्थिर है। 

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