सूरत : हाईटेंशन तार से किशोर की मौत, कोर्ट ने जीईबी को मुआवजा देने का आदेश दिया
लापरवाही के कारण हुई दुर्घटना, परिवार को 7 प्रतिशत ब्याज सहित 7.73 लाख रुपये का मुआवजा मिलेगा
सूरत। हाईटेंशन लाइन के मानकों से कम ऊंचाई पर लटकने और बिजली विभाग की लापरवाही के कारण जान गंवाने वाले 16 वर्षीय रत्नेश मिश्रा के परिजनों को कोर्ट ने 7 प्रतिशत ब्याज के साथ 7.73 लाख रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया है। यह आदेश सूरत के माननीय अतिरिक्त सिविल न्यायाधीश एम.डी. ब्रह्मभट्ट की अदालत ने सुनाया।
यह हादसा 4 अक्टूबर 2010 को सूरत के डिंडोली क्षेत्र में हुआ, जब 16 वर्षीय रत्नेश मिश्रा अपने दोस्तों के साथ क्रिकेट खेल रहा था। गेंद दीवार के दूसरी ओर जाने पर वह 6 फीट ऊंची दीवार पर चढ़ा, जहां वह 66000 वोल्ट की हाईटेंशन लाइन के संपर्क में आ गया। झुलसने से उसका 95 प्रतिशत शरीर जल गया और 8 अक्टूबर 2010 को उसकी मौत हो गई।
रत्नेश के पिता मुकेशभाई गुलाबचंद मिश्रा, जो मजदूरी कर अपने परिवार का पालन करते थे, उन्होने जीईबी (गुजरात ऊर्जा ट्रांसमिशन कॉर्पोरेशन लिमिटेड) की लापरवाही को लेकर अदालत में 4 लाख रुपये का मुआवजा दावा दायर किया था।
वादी के अधिवक्ता प्रीति जिग्नेश जोशी ने अदालत में यह साबित किया कि हाईटेंशन तार तय मानकों (कम से कम 19 फीट) से नीचे थे, और तारों की ऊंचाई सड़क की सतह बढ़ने के बावजूद नहीं बढ़ाई गई। इतना ही नहीं, कोई चेतावनी बोर्ड भी नहीं लगाया गया था, जबकि घटना के बाद जीईबी ने आनन-फानन में बोर्ड लगाकर गलती छिपाने का प्रयास किया।
अदालत ने माना कि जीईबी की लापरवाही के कारण रत्नेश की असमय मौत हुई, जिससे परिवार को मानसिक आघात, शोक, आर्थिक नुकसान और भविष्य की आय में हानि हुई है।
कोर्ट ने 3.94 लाख रुपये का मूल मुआवजा तय किया, जिस पर 21 जून 2011 से 7 प्रतिशत साधारण ब्याज सहित भुगतान का आदेश दिया गया। इससे मुआवजे की कुल राशि 7.73 लाख रुपये हो गई है। इस फैसले से यह स्पष्ट होता है कि सार्वजनिक सुरक्षा में लापरवाही बरतने वाली संस्थाएं जिम्मेदार ठहराई जा सकती हैं, और पीड़ित परिवारों को न्याय मिल सकता है।