दिव्यांगता न्यायिक सेवाओं से वंचित करने का आधार नहीं : सुप्रीम कोर्ट

दिव्यांगता न्यायिक सेवाओं से वंचित करने का आधार नहीं : सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली, 03 मार्च (वेब वार्ता)। उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को अपने एक ऐतिहासिक फैसले में कहा कि केवल दिव्यांगता के आधार पर किसी भी अभ्यर्थी (संबंधित पद के आवेदक) को न्यायिक सेवाओं से वंचित नहीं किया जा सकता।

न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर महादेवन की पीठ ने दृष्टिबाधित और दृष्टिहीन अभ्यार्थियों को न्यायिक सेवाओं में नियुक्ति से बाहर रखने वाले मध्य प्रदेश न्यायिक सेवा नियम की शर्तों के उस भाग को निरस्त करते हुए कहा कि वे (दृष्टिहीन और दृष्टिबाधित) भारत की न्यायिक सेवाओं में नियुक्ति के आवेदन के पात्र हैं।

पीठ की ओर से फैसला सुनाते हुए न्यायमूर्ति महादेवन ने कहा, “मध्य प्रदेश न्यायिक सेवा नियम 1994 के नियम 6ए को निरस्त किया जाता है, क्योंकि यह दृष्टिबाधित और दृष्टिहीन उम्मीदवारों को न्यायिक सेवाओं में नियुक्ति से बाहर रखता है।”

पीठ ने कई पहलुओं पर गौर करने के बाद कहा कि दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम, 2016 के अनुसार उनकी (दिव्यांग व्यक्तियों की) पात्रता का आकलन करते समय उन्हें उचित सुविधाएं प्रदान की जानी चाहिए।शीर्ष अदालत ने स्पष्ट तौर कहा कि दृष्टिबाधित और कम दृष्टि वाले अभ्यर्थी न्यायिक सेवा के पदों के लिए चयन में भाग लेने के हकदार होंगे।

पीठ ने कहा कि दिव्यांग व्यक्तियों को न्यायिक सेवा की भर्ती में किसी भी तरह के भेदभाव का सामना नहीं करना चाहिए और राज्य को समावेशी ढांचा सुनिश्चित करने के लिए उन्हें सकारात्मक कार्रवाई प्रदान करनी चाहिए। पीठ ने फैसले में आगे कहा कि वह संवैधानिक ढांचे और संस्थागत अक्षमता ढांचे से निपटता है और इस मामले को सबसे महत्वपूर्ण मानता है।

शीर्ष अदालत के समक्ष एक दृष्टिबाधित अभ्यर्थी की मां ने पिछले साल मध्य प्रदेश न्यायिक सेवा (भर्ती और सेवा शर्तें) नियम में शामिल उक्त नियम के खिलाफ पत्र याचिका दी थी, जिस पर अदालत ने स्वत: संज्ञान मामला दर्ज किया था।

शीर्ष अदालत ने सुनवाई पूरी होने के बाद तीन दिसंबर, 2024 को अपना आदेश सुरक्षित रख लिया था।