सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारी कुलदीप शर्मा को हमला मामले में तीन महीने कैद

सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारी कुलदीप शर्मा को हमला मामले में तीन महीने कैद

भुज, 10 फरवरी (भाषा) गुजरात की एक अदालत ने सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारी कुलदीप शर्मा को 41 साल पहले कच्छ के पुलिस अधीक्षक रहते हुए कांग्रेस के एक नेता पर हमला करने और गलत तरीके से उन्हें बंधक बनाने के मामले में दोषी ठहराते हुए सोमवार को तीन महीने की जेल की सजा सुनाई।

भुज के अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट बी एम प्रजापति ने पूर्व पुलिस निरीक्षक जी एच वासवदा को भी तीन महीने के कारावास की सजा सुनाई।

अदालत ने शर्मा और वासवदा पर एक-एक हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया।

अदालत ने शर्मा और वासवदा को 1984 में कांग्रेस नेता अब्दुल हाजी इब्राहिम (अब दिवंगत) को उनके कार्यालय में गलत तरीके से बंधक बनाने को लेकर भारतीय दंड संहिता की धारा 342 के तहत दोषी ठहराया।

भुज की अदालत में शंकर जोशी नामक व्यक्ति ने शिकायत दर्ज कराई थी तथा शर्मा, वासवदा और दो अन्य आरोपियों (जो अब दिवंगत हो चुके हैं) के खिलाफ भादंसं की धाराओं 342 (गलत तरीके से बंधक बनाना), 323 (स्वेच्छा से चोट पहुंचाना) और 506 (आपराधिक धमकी) के तहत कार्रवाई का अनुरोध किया था।

जोशी के वकील आर एस गढ़वी ने कहा, ‘‘अदालत ने शर्मा और वासवदा को भादंसं की धारा 342 के तहत दोषी ठहराया और उन्हें तीन महीने की जेल की सजा सुनायी एवं उनपर 1,000-1000 रुपये का जुर्माना लगाया।’’

शिकायत के अनुसार, कच्छ जिले के नालिया शहर से एक प्रतिनिधिमंडल छह मई 1984 को भुज में एसपी कार्यालय में शर्मा से मिलने गए थे। इस प्रतिनिधिमंडल में शिकायतकर्ता जोशी, इब्राहिम और स्थानीय विधायक शामिल थे।

शिकायत में कहा गया है कि प्रतिनिधिमंडल ने वहां के एक थाने में दर्ज आपराधिक मामले में पुलिस द्वारा निर्दोष लोगों को कथित रूप से परेशान किए जाने का मुद्दा उठाया।

जब शर्मा को पता चला कि इब्राहिम प्रतिनिधिमंडल का हिस्सा हैं, तो वह उन्हें बगल के कमरे में ले गये और डंडे से उनकी पिटाई की। इब्राहिम की पिटाई में तत्कालीन पुलिस निरीक्षक वासवदा और अन्य आरोपी भी शामिल थे।

भुज की अदालत में शिकायत दर्ज होने के बाद शर्मा के खिलाफ एक कार्रवाई शुरू की गई। शर्मा ने कानूनी कार्रवाई को रद्द करने के लिए गुजरात उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया।

गढ़वी ने बताया कि उच्च न्यायालय ने शर्मा की अर्जी खारिज कर दी, जिसके बाद उन्होंने भुज की अदालत में नियमित जमानत के लिए इस आधार पर आवेदन किया कि सरकार ने उनके अभियोजन को मंजूरी नहीं दी है, जो जरूरी है, क्योंकि वह एक लोकसेवक हैं।

भुज की अदालत द्वारा शर्मा की जमानत याचिका खारिज किए जाने के बाद उन्होंने उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया। शर्मा ने उच्च न्यायालय से निचली अदालत में नई जमानत याचिका दायर करने की अनुमति मांगी, जिसे स्वीकार कर लिया गया।

इस बीच, शिकायतकर्ता ने राज्य सरकार से संपर्क किया, जिसने शर्मा और वासवदा के खिलाफ मुकदमा चलाने की मंजूरी फरवरी 2012 में दी।

शर्मा ने अभियोजन स्वीकृति को सत्र न्यायालय और उच्च न्यायालय में चुनौती दी। उच्च न्यायालय से याचिका खारिज किए जाने के बाद उन्होंने उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाया।

गढ़वी ने बताया कि उच्चतम न्यायालय ने भुज की अदालत को तीन महीने के भीतर मामले की सुनवाई पूरी करने का निर्देश दिया।

 

 

 

 

 

 

 

 

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