सूरत : साधारण नगर नहीं प्रेमियों का दिव्या धाम है वृन्दावन : आचार्य पवन नंदनजी महाराज
बाल लीलाओं के माध्यम से ठाकुरजी जीवन का बोध कराते हैं और साथ ही साथ अपने भक्तों का उद्धार करते हैं
धनुर्मलमास के पावन अवसर पर बिहारी जी की अनुकंपा से श्री लक्ष्मीनाथ सेवा समिति सूरत-वृंदावन द्वारा आयोजित सात दिवसीय श्रीमद् भागवत कथा का आयोजन सिटी लाइट स्थित महाराजा अग्रसेन भवन के द्वारिका हाल में किया गया है। इस पुनीत अवसर पर व्यासपीठ पर विराजमान परम श्रद्धेय आचार्य पवन नंदनजी महाराज अपने मुखारविन्द से दिव्य ज्ञान वर्षा कर पतितपावनी मां तापी के तट पर बसे कुबेर नगरी सूरत में भगवान के कृपापात्र भक्तों को भागवतिक गंगा में गोता लगवा रहे हैं। कथा के पाचवें दिन सोमवार को योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण की बाललीला, कंस द्वारा भेजे जाने वाले दंभी असुरों, माखन चोरी एवं गोपियों द्वारा यशोदा मैया से शिकायत करने, कालिया नाग, गोवर्धन पूजा एवं रासलीला आदि प्रसंग का वर्णन किया।
सोमवार को वार्ड नंबर 21 के पार्षद बृजेशभाई, विनोद गोस्वामी, बालमुकुंद, आनंद सराफ, शिवरतन देवड़ा, गिरीश देवड़ा ,अक्षय मंगल ,विनोद कनोडिया, हरेंद्र सराफ, सुशील मित्तल, मुरलीधर शर्मा, जीतू व कमल तायल, रवि भगेरिया, रमेश गोयल चनानिया आदि ने महाराजजी से आशीर्वाद लिया। जबकि छप्पन भोग के मुख्य मनोरथी रतनलाल बजाज रहे।
लोक विख्यात संत विजय कौशल जी महाराज के कृपा पात्र वृंदावन के आचार्य पवन नंदनजी महाराज ने वृन्दावन की महिमा का वर्णन करते हुए कहा कि वृंदावन साधारण नगर एवं भूमि का टुकड़ा नहीं बल्कि प्रेमियों का दिव्य धाम है। यहां हमारे ठाकुर जी रास रचाते हैं। इस दरम्यान ...चलो रे वृन्दावन धाम रटेंगे राधे राधे, मिलेंगे कुंजबिहारी ओढ़कर कांवर कारी... जैसे भजन पर भक्तगण भाव विभोर होकर नृत्य करने लगे।
महाराज जी ने कहा कि बाल लीलाओं के माध्यम से ठाकुरजी जीवन का बोध कराते हैं और साथ ही साथ अपने भक्तों का उद्धार करते हैं। माखन चोरी से ठाकुर जी गोपियों के मन में प्रवेश करना चाहते हैं। यही कारण है कि गोपियों के भावपूर्ण प्रेम से भगवान गोपियों के हृदय में बसते हैं। वृंदावन एवं गोकुल जैसी शरीर से निर्मल भक्ति करने वाले भक्त का ठाकुर जी उद्धार कर देते हैं। भगवान अपने भक्तों से अंजान में होने वाले पापों का नाश करते रहते हैं यानी अंजान में होने वाले पाप को भगवान माफ कर देते हैं।
महाराज जी ने कहा कि शास्त्र, विप्र, धेनु एवं पृथ्वी की रक्षा के लिए भगवान अवतार लेते हैं। कारण कि यह चारों निःस्वार्थ भाव से जीव का कल्याण करने चाहते हैं। ब्राह्मण भगवान के संबाहक होते हैं जो वेदों में वर्णित भगवान के वचनों का वाचन कर जगत के कल्याण के लिए प्रत्येक जीव तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। इसी तरह गो माता के दूध, घी एवं पंचगव्य से तथा पृथ्वी से उत्पन्न होने वाले अन्न से जीव का पोषण होता है। महाराज जी ने धर्म के नाम पर पाखंड करने वाले दंभियों से सावधान रहने की हिदायत दी। भक्ति के मार्ग में चलकर पाखंड करने वाले को ठाकुर जी माफ नहीं करते हैं। चमत्कार के चक्कर में लोग ना पड़े। भगवान भक्ति के भाव को देखते हुए उसे अपना पद परम पद प्रदान करते हैं। भगवान ब्रह्म है उन्हें कोई नहीं बांध सकता परंतु यशोदा मैया उन्हें ओखल से बांध देती है। कारण की ऐश्वर्य शक्ति एवं माधुर्य शक्ति ही ब्रह्म को बांध सकती हैं। यशोदा मैया के माधुर्य शक्ति से भगवान ओखल में बंध जाते हैं।
वृद्धावस्था से बचें और पर्यावरण को बचाएं
महाराजजी ने कहा कि व्यक्ति का वृद्धावस्था नहीं बल्कि व्यक्ति के मन की अवस्था है वृद्धावस्था। वृद्ध कोई भी हो सकता है। एक उम्र के बाद उम्र की ढलान वाला व्यक्ति तथा काम न करने वाला युवक भी वृद्धा हो सकता है। जबकि अपनी जिम्मेदारियों का निर्बहन करने वाले रतन टाटा जैसे वयोवृद्ध भी सदा युवा रह सकता है। उन्होंने सभी को हमेशा कर्मशील रहते हुए वृद्धावस्था से बचे रहने और पर्यावरण को संरक्षित रखने के लिए प्लास्टिक का उपयोग न करने के लिए प्रेरित किया।