सूरत : डीजे और भारी ध्वनि के बीच भी मौखिक गरबा ने जीता दिल, नई पीढ़ी भी हुई शामिल
कोसाड गांव में 90 साल से जीवित है पारंपरिक गरबा की परंपरा
सूरत समेत पूरे देश में नवरात्रि की धूम है। डीजे और तेज संगीत के बीच भी सूरत के कोसाड गांव में पारंपरिक गरबा की परंपरा 90 साल से जीवित है। यहां के बुजुर्ग माइक पर मौखिक रूप से गरबा गाते हैं और युवा पीढ़ी भी इस परंपरा को आगे बढ़ाने में जुटी है।
कोसाड गांव के मोटी फल्ली क्षेत्र में मोटी फल्ली युवक मंडल द्वारा 90 साल से पारंपरिक गरबा का आयोजन किया जाता रहा है। यहां किसी आर्केस्ट्रा या साउंड सिस्टम का प्रयोग नहीं होता। बुजुर्ग महिलाएं माइक पर गरबा गाती हैं और सभी साथ में थिरकते हैं।
आज के युग में जहां डीजे और तेज संगीत का बोलबाला है, वहां कोसाड गांव में पारंपरिक गरबा एक अनूठी मिसाल है। गांव के बुजुर्गों के साथ-साथ अल्पा पटेल, ध्वनि पटेल और अमित पटेल जैसे युवा भी इस परंपरा को आगे बढ़ाने में जुटे हैं।
यह पारंपरिक गरबा न केवल धार्मिक भावनाओं को प्रकट करता है बल्कि लोगों को एकजुट भी करता है। यह परंपरा नई पीढ़ी को अपनी संस्कृति से जोड़ने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है।