सूरत : भूतल पर जन्मे जीवों को अपने शरणमें लेने की प्रभु की लीला मतलब दाणलीला : गो. जयदेवलालजी
प्रभु की लीलाओं का वर्णन कोई सामान्य व्यक्ति नहीं कर सकता
पंचम पीठ कामवन सूरत के युवराज गोस्वामी जयदेवलालजी महोदयश्री के श्रीमुख से पाल रोड स्थित श्री गोकुलचंद्रमाजी की हवेली द्वारा अडाजण के एसएमसी कम्युनिटी हॉल में तीन दिवसीय दानलीला शिविर का आयोजन किया गया। इस अवसर पर जयदेवलालजी ने अपनी अमृत वर्षा करते हुए कहा कि मानव बुद्धि के प्रेरक भगवान हैं; प्रभु की लीलाओं का वर्णन कोई सामान्य व्यक्ति नहीं कर सकता।
पुष्टिमार्ग में पूरे वर्ष विभिन्न मनोरथों और उत्सवों का आयोजन करके ठाकोरजी को लाड़-प्यार दिया जाता है। उसी पुष्टि परंपरा के अनुसार पुष्टिमार्ग की हवेलियों में भाद्रव सुद एकादशी से भाद्रव वद एकादशी तक दानलीला के दर्शन का आयोजन किया जाता है। साथ ही इन दिनों वल्लभकुल द्वारा विशेष व्याख्यानों का भी आयोजन किया जाता है।
पंचम पीठ वैष्णवाचार्य श्री कन्हैयालालजी महोदयश्री की प्रेरक उपस्थिति में सम्पन्न हुए इस शिविर में तीन दिनों तक बड़ी संख्या में वैष्णवजन एकत्रित हुए और पूज्यश्री की अमृतवाणी का लाभ लिया। इस अवसर पर श्री जयदेवलालजी ने भगवान श्रीकृष्ण की दानलीला के प्रसंग का वर्णन करते हुए कहा कि श्री ठाकोरजी ने मथुरा जा रही गोपियों से व्रजराज के रूप में गोरस का दान मांगा लेकिन गोपियां गोरस का दान देने से मना करती है। क्योंकि वे कंस को दान देने जा रही हैं। सामान्य मानव स्वभाव ऐसा है कि मनुष्य को कोई भी नई चीज़ स्वीकार करने में समय लगता है, इसलिए गोपियाँ दाण देने से मना कर देती हैं। लेकिन श्री ठाकोरजी गोपियों की मटुकी तोड़ देते हैं, गोपियों को रास्ते में रोक लेते हैं और महिडा का दाण ले लेते हैं। गोपीयों के साथ श्री ठाकोरजी की बहस हो जाती है और गोपीयां अपनी शिकायत लेकर माता यशोदा के पास जाती है, यह इस दानलीला मनोरथ की भावना है।
जयदेवलालजी ने आगे कहा कि जो जीव गौलोक में गलती करता है उसे उस गलती के कारण भूतल पर जन्म लेना पड़ता है। ऐसे गौलोक की गलती के कारण भूतल में आये जीव को भगवान स्वीकार कर लेते हैं और पुनः उस जीव को गौलोक ले जाते हैं। गौलोक में दोष के कारण भूतल में आये प्राणियों को स्वतः की शरण में लेने की प्रभु की जो लीला है वही दानलीला है। यह लीला केवल पुष्टिमार्ग में ही देखने को मिलती है। अन्य किसी भी सम्प्रदाय में इस लीला का वर्णन नहीं पाया जाता है। अत: वैष्णवों को पुष्टिमार्ग में जन्म लेकर अपने को धन्य समझना चाहिए।