The Kharai is a unique breed of camel found only in Kutch, which feeds on mangroves. These camels are unique Because they have the special ability to survive on both, dry land and in the sea. They swim in seawater and feed on saline plants and mangroves. pic.twitter.com/c774sZnj8L
— Gujarat Information (@InfoGujarat) September 20, 2021
गुजरात : खाराई ऊंटों की ये अनोखी प्रजाति; समुद्र में तैर सकते हैं, तटीय वनस्पति और मैंग्रोव पर पलते हैं!
By Loktej
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घंटों तक खाने के लिए समंदर की सतह पर तैरते रहते है खाराई ऊंट, गुजरात के कच्छ और राजस्थान के कुछ इलाकों में दिखाई देते है
रेगिस्तान वाले इलाकों में ऊँटो का देखा जाना काफी आम बात है। ऊँटो को रेगिस्तान का जहाज माना जाता है। अब आप कहेंगे कि जहाज तो पानी में होता है। पर ऊंट तो रेगिस्तान कि रेट में चलता है। तो आज हम आपको ऊंट की एक ऐसी ही प्रजाति के बारे में बताने जा रहे है, जो पानी में तैर सकता है। गुजरात के कच्छ और राजस्थान के कुछ इलाकों में दिखाई देने वाला यह ऊंट पानी में तैर सकता है और मात्र तटीय वनस्पति और मैंग्रोव पर जिंदा रह सकता है।
खाराई ऊंट समुद्री तटों पर घंटो तक भोजन की तलाश में रह सकते है। यदि अधिक समय तक यह मैंग्रोव वनस्पति नहीं खाते तो वह बीमार हो जाते है और अंत में मर भी जाते है। पर पिछले कई समय से मैंग्रोव जंगलों में हो रही भारी कमी के कारण इन ऊँटो की आबादी में भी भारी कमी आ रही है। यह ऊँटो की एक मात्र ऐसी नस्ल है जो तैर सकती है और सालों से यह मात्र जाटों के साथ रह रहे है। जो की ऊंट चरवाहे के रूप में पीढ़ियों से चले आ रहे है। पर बदलते परिदृश्य के कारण अब इन ऊँटो के प्राकृतिक आवासों में कमी आ रही है, जिसके कारण उनकी आबादी भी कम हो रही है।
भुज भूकंप के बाद, कच्छ के पुनर्निर्माण के प्रयास में, इस क्षेत्र में खनन, नमक, सीमेंट और पवनचक्की उद्योगों का बड़े पैमाने पर विस्तार होने लगा। विकास के नाम पर नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र को छिन्न-भिन्न की जा रही है जो की अक्सर ऊंटों के पारंपरिक रास्तों से होकर गुजरती है। इसके कारण उनका प्राकृतिक खाना भी कम हो रहा है।
आंकड़ो पर नजर डाले तो साल 2012 में कच्छ में खाराई ऊँटो की संख्या तकरीबन 2200 की थी, साल 2018 में यह संख्या कम होकर 1800 तक आ गई है। 2011 में, जाट समुदाय के सदस्यों ने मालधारी, कच्छ के अन्य पारंपरिक ऊंट चरवाहों के साथ गठबंधन किया। उन्होंने 'कच्छ ऊंट ब्रीडर्स एसोसिएशन' का गठन किया और ऊंट की इस स्वदेशी और स्थानिक नस्ल के संरक्षण की दिशा में काम कर रहे हैं। देहाती समुदायों के बीच एकजुटता और सहजन (संरक्षण के लिए काम करने वाला एक स्थानीय एनजीओ) जैसे संगठनों की मदद से, एक उपाय के लिए आशा की भावना बढ़ रही है।
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