अमेरिकी टैरिफ ने भारत के निर्यात कारोबार को लेकर चुनौतियां खड़ी की, रत्न-रसायन क्षेत्र सबसे प्रभावित - क्रिसिल रिपोर्ट

अमेरिकी टैरिफ ने भारत के निर्यात कारोबार को लेकर चुनौतियां खड़ी की, रत्न-रसायन क्षेत्र सबसे प्रभावित - क्रिसिल रिपोर्ट

नई दिल्ली, 9 अप्रैल 2025: अमेरिका द्वारा हाल ही में लागू किए गए नए टैरिफ ढांचे ने भारत के निर्यात क्षेत्र के लिए चुनौतियां खड़ी कर दी हैं। क्रिसिल की एक ताजा रिपोर्ट के अनुसार, ट्रंप प्रशासन द्वारा 2 अप्रैल 2025 को घोषित 26% टैरिफ दर से भारत के प्रमुख निर्यात क्षेत्रों पर गहरा असर पड़ने की आशंका है। इस टैरिफ नीति का मुख्य कारण 2023 में भारत और अमेरिका के बीच 33.6 अरब डॉलर का व्यापार अधिशेष बताया जा रहा है, जिसने अमेरिका को यह कदम उठाने के लिए प्रेरित किया।

रिपोर्ट में बताया गया कि भारत के रत्न और आभूषण, रसायन, और ऑटो पार्ट्स जैसे क्षेत्र सबसे अधिक प्रभावित होंगे। ये क्षेत्र पहले से ही वैश्विक प्रतिस्पर्धा का सामना कर रहे हैं, और अब बढ़े हुए टैरिफ के कारण उनकी लागत और प्रतिस्पर्धात्मकता पर विपरीत असर पड़ सकता है। इसके अलावा, एल्यूमीनियम क्षेत्र को भी नुकसान होने की संभावना है। दूसरी ओर, टेक्सटाइल, स्मार्टफोन, और कृषि क्षेत्रों को मामूली लाभ होने की उम्मीद है, क्योंकि इनकी कीमतें प्रतिस्पर्धी हैं और अमेरिकी बाजार में इनकी मांग बनी हुई है।

हालांकि, फार्मास्युटिकल्स, स्टील, और सौर ऊर्जा जैसे क्षेत्रों पर इस टैरिफ का प्रभाव तटस्थ रहने की संभावना है। क्रिसिल के अनुसार, इन क्षेत्रों को या तो छूट दी गई है या फिर ये अमेरिकी बाजार पर कम निर्भर हैं। लेकिन व्यापक व्यापार तनावों के बीच एक और चिंता सामने आई है। मार्च 2025 में क्रिसिल इंडिया आउटलुक ने चेतावनी दी थी कि अमेरिका द्वारा चीन पर लगाए गए भारी टैरिफ (54%) के कारण सस्ते चीनी आयात भारत में बढ़ सकते हैं, जिससे स्थानीय व्यवसायों को नुकसान हो सकता है।

रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया कि अमेरिका भारत के कुल निर्यात का 18% हिस्सा है, जिससे इस टैरिफ नीति का प्रभाव और भी गंभीर हो जाता है। विशेषज्ञों का कहना है कि भारत को अपनी निर्यात रणनीति में बदलाव लाने और वैकल्पिक बाजारों की तलाश करने की जरूरत है। इसके साथ ही, सरकार द्वारा घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देने वाली योजनाओं, जैसे प्रोडक्शन-लिंक्ड इंसेंटिव (PLI) स्कीम, को और मजबूत करने की आवश्यकता पर बल दिया गया है।

इस बीच, वैश्विक व्यापार अनिश्चितताओं और भू-राजनीतिक जोखिमों के कारण भारतीय रुपये में भी अस्थिरता देखी जा रही है। क्रिसिल का अनुमान है कि मार्च 2026 तक रुपया 88 प्रति अमेरिकी डॉलर के स्तर पर स्थिर हो सकता है। इस स्थिति में भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) द्वारा 2025-26 में रेपो रेट में 50-75 आधार अंकों की कटौती की संभावना जताई जा रही है, ताकि उपभोग को बढ़ावा दिया जा सके और उधार की लागत को कम किया जा सके।

अमेरिकी टैरिफ नीति ने भारत के लिए एक जटिल स्थिति पैदा कर दी है। जहां कुछ क्षेत्रों को अवसर मिल सकते हैं, वहीं कई अन्य क्षेत्रों को अपनी रणनीति में बदलाव करने की जरूरत होगी। सरकार और उद्योग जगत को मिलकर इस चुनौती का सामना करना होगा, ताकि भारत वैश्विक व्यापार में अपनी स्थिति को मजबूत रख सके।

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