सूरत की धरोहर : छह शताब्दियों से जल-संरक्षण की मिसाल ‘खममावती बावड़ी’
प्राचीन वणजारी परंपरा की अमिट छाप
सूरत। सूर्यपुत्री तापी के तट पर बसे समृद्ध ऐतिहासिक नगर सूरत में एक अनमोल जल-स्मारक आज भी अपनी भव्यता और इतिहास को समेटे खड़ा है। लाल दरवाजा क्षेत्र में स्थित ‘खममावती बावड़ी’, जिसे ‘बा नो बंगला’ और ‘वणजारी वाव’ के नाम से भी जाना जाता है।
करीब 600 साल पुरानी यह सात मंजिला बावड़ी भारत की ऐतिहासिक जल-संरचना परंपरा की सजीव गवाही देती है। मुग़लकाल में नंदा शैली में बनी यह बावड़ी मध्यकालीन वास्तुकला की उत्कृष्ट मिसाल है। माना जाता है कि इसका निर्माण लाखा वणजारा ने करवाया था – वही लाखा, जिनके पास एक लाख बैलों की वणजारी थी और जो व्यापार के उद्देश्य से देशभर में यात्रा करते थे।
वणजारे उस दौर के अग्रगण्य व्यापारी थे, जो सुदूर अंचलों तक वस्तुएं पहुंचाते थे। वे जहां-जहां गए, वहां अपने पीछे सामाजिक कल्याण की संरचनाएं – बावड़ियाँ, कुएं और धर्मशालाएं – छोड़ गए। सूरत की यह बावड़ी भी उनकी दूरदर्शिता और जल-संरक्षण की भावना का प्रत्यक्ष प्रमाण है।
यह बावड़ी 300 फीट लंबी, 20 फीट चौड़ी, और 100 सीढ़ियों वाली है, जिसका सिर्फ एक ही प्रवेशद्वार है। इसका निर्माण रेत-पत्थर और मोटी ईंटों से किया गया है। इसकी दिशा दक्षिणाभिमुख है और यह भारतीय शिल्पशास्त्र पर आधारित है। बावड़ी का हिस्सा पुराने किले की दीवार के समीप था, और इसकी गहराई में उतरते हुए आज भी महसूस होता है कि यह सिर्फ एक जलस्रोत नहीं, बल्कि समय की परतों में छिपा इतिहास है।
इस बावड़ी में खममावती माताजी का मंदिर भी स्थित है, और यह स्थानीय श्रद्धा का प्रमुख केंद्र रहा है। वर्षों से यह विश्वास रहा है कि बावड़ी का जल चर्मरोग, खांसी-जुकाम और हड्डी से जुड़ी बीमारियों के उपचार में लाभकारी है।
यह उल्लेखनीय है कि 2006 की भीषण बाढ़ में जब पूरे सूरत ने जल की तबाही देखी, तब भी यह बावड़ी पानी सोखने का काम करती रही – मानो सैकड़ों वर्षों बाद भी यह शहर की रक्षा में खड़ी हो।
लाल दरवाजा का छोवाला गली, जहां यह बावड़ी स्थित है, आज भी किल्ला सेठ की वाड़ी और छगन सेठ वाड़ी के नाम से जानी जाती है। यहां आज भी वणजारा परिवारों के वंशज रहते हैं, जिनकी स्मृतियों में यह बावड़ी सिर्फ पत्थरों की संरचना नहीं, बल्कि संस्कृति, श्रद्धा और सुरक्षा का प्रतीक है।
नील पटेल, जो किल्ला सेठ के वंशज हैं, बताते हैं कि इस क्षेत्र में गरबा खेलने के लिए लोग दूर-दूर से आते थे, और खममावती वाव का पानी आज तक कभी सूखा नहीं। यह बावड़ी न सिर्फ सूरत के इतिहास की साक्षी है, बल्कि जल संरक्षण और सामुदायिक धरोहर के रूप में भी अद्वितीय महत्व रखती है।
बावड़ी की मुख्य विशेषताएं
स्थान : छोवाला गली, लाल दरवाजा, सूरत, निर्माणकाल : 15वीं शताब्दी (मुग़लकाल), शैली : नंदा शैली की सात मंजिला बावड़ी. आकार : 100 सीढ़ियाँ, 20 फीट चौड़ाई, 300 फीट लंबाई, सामग्री : रेत-पत्थर, मोटी ईंटें, आस्था केंद्र : खममावती माताजी मंदिर, विशेषता : जल कभी नहीं सूखा, प्राकृतिक उपचार में उपयोगी, लोक मान्यता : निर्माणकर्ता लाखा वणजारा
यह बावड़ी सिर्फ एक स्थापत्य संरचना नहीं, बल्कि सूरत की आत्मा है – एक ऐसी विरासत, जिसे आने वाली पीढ़ियों के लिए संरक्षित किया जाना अत्यंत आवश्यक है।