सूरत : संसार चक्र में भटकाने वाले स्वभाव को जीत लेने वाला ही संत : डॉ. राजेन्द्रदासजी महाराज
निर्मल मन जन सो मोहि पावा, मोहि कपट छल छिद्र ना भावा..
अनंत श्रीविभूषित श्रीमज्जगद्गुरु द्वाराचार्य अग्र पीठाधीश्वर एवं मलूक पीठाधीश्वर स्वामी डॉ. श्री राजेंद्रदास देवाचार्य जी महाराज (श्री रैवासा-वृंदावन धाम) ने सूर्यपुत्री तापी तट पर बसी आस्तिक-धार्मिक नगरी सूरत के सिटीलाईट स्थित सुरभिधाम मंडपम में श्री जड़खोर गोधाम गोशाला के सेवार्थ गो, ब्राह्मण के प्रति अगाध श्रद्धा रखने वाले कथा के मनोरथी श्रीमती गीतादेवी गजानंद कंसल एवं कंसल परिवार व सूरत के समस्त गोभक्तों के समायोजन में सात दिवसीय श्रीमद् भागवत कथा ज्ञानयज्ञ के पूर्णता दिवस बुधवार को कालियानाग मर्दन लीला एवं कदम वृक्ष का वर्णन करते हुए कहा कि छल कपट रखने वालों को भगवान कभी भी सुलभ नहीं होते हैं। भगवान कहते हैं... निर्मल मन जन सो मोहि पावा, मोहि कपट छल छिद्र ना भावा.. जब तक मन शुद्ध नहीं
होगा, तब तक मुक्ति नहीं मिल सकती है। मन अगर शुद्ध हो गया तो चरित्र भी शुद्ध हो जाएगा और अगर चरित्र शुद्ध होगा तो श्रीकृष्ण तक अवश्य पहुंच जाओगे। सरलता एवं निश्छलता ही ईश्वर प्राप्ति की सच्ची योग्यता हैं।
महाराजजी ने कहा कि जिस कदम के वृक्ष पर चढ़कर भगवान योगेश्वर कृष्ण ने यमुना जी में छलांग लगाई थी, वह कदम का वृक्ष आज भी है। इस वृक्ष पर गरुड़ जी ने अमृत कलश रखा था। वृंदावन जाने के बाद कदम के वृक्ष का दर्शन जरूर करना चाहिए। महाराज जी ने कहा कि भगवान कृष्ण कालियानाग के फन पर चढ़कर उसी फन पर नृत्त किया करते थे जो वह उठाता था। इसका तात्पर्य यह है कि जीव के अभिमान रुपी फन का मर्दन भगवान करते ही हैं। कालिया नाग प्रभु से प्रार्थना करते हुए अपने अवगुणों को भगवान के समक्ष खोलकर रख दिया। उसने कहा मेरा स्वभाव आपका दिया हुआ है। सारे जगत के कारण आप ही है तो मेरे स्वभाव के कारण भी आप ही है। मैं बुरे से बुरा हूं लेकिन हूं आपका। कालिया नाग का प्रार्थना सुन भगवान रिझ गए और उसका उद्धार करने के साथ उसे रमणद्वीप में रहने का स्थान दिया।
मानव का स्वभाव ही संसार चक्र में भटकाता है। संसार चक्र में भटकाने वाले स्वभाव को जीत लेने वाला ही संत होता है। जो कुसंग के प्रभाव से दुष्टता करते हैं वे विचारशील का संगत पाकर अच्छे भी हो सकते हैं, लेकिन जिसमें जन्मजात दुष्टता होती है उसमें सुधार नहीं होता है। संत और भगवान में कोई भेद नहीं होता है। संत के रूप में भगवान ही पृथ्वी पर विराजे हैं। कोई भी संत साधारण नहीं होता है। सभी साधनों का फल भगवत साक्षात्कार है और भगवत साक्षात्कार संतों की कृपा से होती है। भगवान की कृपा से संतों के दर्शन का लाभ प्राप्त होता है। इसलिए भगवान के भक्त-प्रेमी जीवन पर्यंत हरि एवं हरिदास का आश्रय लेकर जीते हैं।
महाराज जी ने कहा कि आज लोगों में अंहकार इतना हो गया है कि झुकना नहीं चाहते हैं और सच यह है कि मनुष्य अपने सिर के एक बाल को भी नहीं संभाल पाता है। अंहकार से कुछ भी प्राप्त नहीं होता है, बल्कि मानव के सद्गुणों का नाश हो जाता है। जबकि झुककर माता-पिता, एवं गुरु को साष्टांग प्रणाम करने मात्र से मानव को आयु, विद्या, यश, बल यह चार चीज़ें बिना मांगे मिल जाती है।
श्री जड़खोर गोधाम सेवा समिति सूरत एवं समस्त गो भक्तों के प्रेरणाश्रोत राकेश कंसल, व्यवस्था संयोजक प्रमोद कंसल एवं मीडिया प्रभारी सज्जन महर्षि ने बताया कि श्री श्री बालाजी सुन्दरकांड मंडल एवं श्री सुरिभ सेवा समिति ने कथा स्थल पर सुन्दरकांड पाठ किया। कथा विश्राम के बाद श्री पथमेड़ा गोधाम से पधारे विट्ठल कृष्णदासजी महाराज, पीपाड़ वाले पूज्य रामदासजी महाराज, संदीप पोद्दार(श्री पथमेड़ा गोधाम सूरत शाखा प्रमुख), जे.पी. अग्रवाल (रचना ग्रुप), शिवराम कुशवाह, नरनारायण जालान, विपिन जालान, कैलाश हाकीम (फोस्टा प्रमुख), दिनेश राजपुरोहित (पार्षद), सुभाष बंसल, राहुल अग्रवाल (सीए-भाजपा युवा मंत्री), योगेश दवे (आईआरएस), किशनलाल मेंगोटिया, श्रवण बजाज, दिनेश शर्मा (दाढ़ी), कैलाश अग्रवाल (सीए), विश्वनाथ पचेरिया, राजेश भारुका,नीतीन काटली, मुरलीधर अग्रवाल (पूर्व नगर प्रमुख खेतड़ी, राजस्थान), बसंत खेतान, श्याम राठी सहित बड़ी संख्या में महानुभावों एवं भगवत्प्रेमियों के अलावा श्री जड़खोर गोधाम गोशाला सूरत के कार्यकर्ता गजानन्द महर्षि, ललित शर्मा, , भागीरथ पारीक, मदन सिंहाग, पवन रुथला, सुरेश
गोघला ने महाराजजी से आशीर्वाद लिया। मंच संचालन योगेन्द्र शर्मा ने किया।