सूरत : गौ माता जिसे त्याग देती हैं नारायण भी उसे वास नहीं देते : डॉ. राजेन्द्रदासजी महाराज
गाय जितनी निरपेक्ष प्राणी भगवान की सृष्टि में नहीं
सात दिवसीय श्रीमद् भागवत कथा का विराम कल, बुधवार को कथा सुबह 9 से 12 बजे तक रहेगी
अनंत श्रीविभूषित श्रीमज्जगद्गुरु द्वाराचार्य अग्र पीठाधीश्वर एवं मलूक पीठाधीश्वर स्वामी डॉ. श्री राजेंद्रदास देवाचार्य जी महाराज (श्री रैवासा-वृंदावन धाम) ने सूर्यपुत्री तापी तट पर बसी आस्तिक-धार्मिक नगरी सूरत के सिटीलाईट स्थित सुरभिधाम मंडपम में श्रीमद् भागवत कथा ज्ञानयज्ञ के पंचम दिवस सोमवार को गो, ब्राह्मण के प्रति अगाध श्रद्धा रखने वाले कथा के मनोरथी श्रीमती गीतादेवी गजानंद कंसल एवं कंसल परिवार व सूरत के समस्त गोभक्तों के समायोजन में भगवान योगेश्वर श्रीकृष्ण के गोचारण कथा का वर्णन किया।
व्यवस्था संयोजक प्रमोद कंसल एवं मीडिया प्रभारी सज्जन महर्षि ने बताया कि सात दिवसीय श्रीमद् भागवत कथा का विराम बुधवार 8 जनवरी को होगा। इस दिन कथा सुबह 9 से 12 बजे तक रहेगी। उन्होंने बताया कि श्रीमद्भागवत कथा ज्ञान यज्ञ के पंचम दिवस सोमवार को किशोर बिंदल (सूरत शहर भाजपा महामंत्री), विजय चौमाल (पार्षद), महेश मित्तल, नन्दकिशोर शर्मा, सुभाष खोरडिया, नरेश गुप्ता, पवन डालमिया, रमेश अग्रवाल, राजेन्द्र खेतान, विनय अग्रवाल, योगेश अग्रवाल, विनोद अग्रवाल (लक्ष्मी हरि), राजेश गोयल एवं श्री सुरभि सेवा समिति के कार्यकर्ताओं ने महाराजजी का अभिवादन कर आशीर्वाद लिया।
महाराजजी ने भगवान श्रीकृष्ण के गोचारण कथा के दसवें स्कंध का वर्णन करते हुए कहा कि भगवान श्रीकृष्ण तालवन में धेनुकासुर का उद्धार कर तालवन को असुरों के आतंक से मुक्त कर दिया। महाराजजी ने कहा कि गाय जैसी निरपेक्ष प्राणी सृष्टि में नहीं है। एक बार माता लक्ष्मी गायों की गोष्टक में पहुंच गई। गौ माता पूछी आप कौन हैं? लक्ष्मीजी ने कहा नारायण की प्रिया हूं। गौ माता ने कहा आप जैसी कृपा पूर्वक आई है वैसे ही कृपा कर चली जाएं। आप चंचला है, एक समान कहीं रहती नहीं, हमें आपकी कोई आवश्यकता नहीं है। मां लक्ष्मी से निरपेक्ष कोई नहीं हो सकता? लक्ष्मी जी की कृपा देवता भी चाहते हैं, लेकिन गो माता मां लक्ष्मी से भी अधिक निरपेक्ष हैं। सौंदर्य की अधिष्ठात्री देवी लक्ष्मी जिसकी ओर नजर कर लेती वह मालामाल हो जाता है
और जिसकी ओर से नजर फेर लेती है उसे संसार में कोई नहीं पूछता। गौ माता ने कहा मैं जानती हूं लेकिन मुझे कोई आवश्यकता नहीं है। मैं हरा-सुखा तृण (घास) खा लेती हूं और अपने भक्तों को पोषण के लिए पंचगव्य प्रदान करती हूं।
महाराज जी ने कहा गो माता की वचन सुनकर भोग-मोक्ष की दात्री देवी लक्ष्मी ने कहा गौ माता जिसे त्याग देती है उसे नारायण भी वास नहीं देते। इसलिए आप कृपाकर अपने पास हमें वास दें। तब गौ माता ने कृपा कर मां लक्ष्मी को अपने मूत्र और गोबर में निवास दिया। गौ माता रजोगुण, तमोगुण को मिटाती है और विशुद्ध सतोगुण को बढ़ाती है। परंतु तुच्छ धन के लालच में आज गोवध हो रहा है, उनके मांस निर्यात हो रहे हैं, चमड़े का व्यापार हो रहा है। ऐसे लोगों को पता नहीं है कि उन्हें न जाने कितने कल्प तक उनकी पीढ़ियों को नरक भोगना पड़ेगा। जो गाय माता का वध करते हैं,यदि वह भी गो पालन करने लगते हैं तो गौ माता उसे भी प्रेम प्रदान करती है। उसे भी पंचगव्य प्रदान करती है, इतना निरपेक्ष मां गौ माता हैं।
महाराजजी ने कहा कि भगवान श्रीकृष्ण जब गोचारण के लिए जाते हैं तो गौ माता को आगे कर स्वयं पीछे चलते हैं। ईस्ट और संत के पीछे की ओर पीठ करके नहीं चलना चाहिए। हम सबके ईष्ट योगेश्वर श्रीकृष्ण हैं, परंतु भगवान श्रीकृष्ण की ईष्ट गो माता हैं। उनकी चरण धूलि को अपने मस्तक पर धारण कर पवित्र होते हैं। ईष्ट के विपरीत कार्य होने से उपासना-आराधना का अपराध होता है।
महाराजजी ने कहा कि भगवान उन संतों के पीछे चलते हैं, जो संसार से ही नहीं देवता तथा भगवान से भी कुछ नहीं चाहते हैं, वे तो भगवान से सिर्फ भगवान को चाहते हैं। ऐसे निरपेक्ष विकार से रहित निरवैर,समदर्शी भक्तों के पीछे भगवान चलते हैं। भगवान तो प्रेम के अगाध समुद्र है। मनुष्य के पास कितना प्रेम है? एक बूंद प्रेम का सौंवां भाग का प्रेम तीनों लोक में बंटा है। मानव का प्रेम गेह, देह, स्त्री-पुरुष शरीर, पद-मान-प्रतिष्ठा में जितना रहता है, यदि उसका कुछ भाग भी भगवान की ओर हो जाए तो जीव का कल्याण हो जाए। प्रेम करना तो केवल भगवान को आता है और उसका निर्वहन भी करना भगवान ही जानते हैं। महाराजजी ने कहा कि हनुमान जी ने जो कुछ भी किया भगवान श्री राम की कृपा से किया, लेकिन भगवान श्री राम स्वयं कहते हैं कि हम तो भक्तों के कर्जदार हैं और उनके कर्जदार बना ही रहना चाहते हैं। शरीर, संसार से पूर्ण अनाशक्ति हो जाए तो जीव भगवान की ओर बढ़ने लगता है।