सूरत : भगवान के स्पर्श मात्र से कंस की दासी कुब्जा परम रुपवती हो गई : आचार्य पवन नंदनजी महाराज
बुधवार को कथा सुबह 10 से 1 बजे तक रहेगी, सुदामा चरित्र, परीक्षित मोक्ष, हवन-महाप्रसादी के साथ श्रीमद् भागवत कथा का विराम आज
धनुर्मलमास के पावन अवसर पर बिहारी जी की अनुकंपा से श्री लक्ष्मीनाथ सेवा समिति सूरत-वृंदावन द्वारा आयोजित सात दिवसीय श्रीमद् भागवत कथा का आयोजन सिटी लाइट स्थित महाराजा अग्रसेन भवन के द्वारिका हाल में किया गया है। इस पुनीत अवसर पर व्यासपीठ पर विराजमान परम श्रद्धेय आचार्य पवन नंदनजी महाराज अपने मुखारविन्द से दिव्य ज्ञान वर्षा कर पतितपावनी मां तापी के तट पर बसे कुबेर नगरी सूरत में भगवान के कृपापात्र भक्तों को भागवतिक गंगा में गोता लगवा रहे हैं। कथा के छठें दिन मंगलवार को भक्त-भगवान, भगवान का वृन्दावन से मथुरा गमन, कंस वध, कारागार से देवकी-वासुदेव को मुक्त कराना, उद्धव को यशोदा मैया एवं एक-एक गोपियों के नाम पाती लेकर वृन्दावन भेजना तथा रुक्मिणी मंगल आदि प्रसंग का वर्णन किया।
मंगलवार को रुक्मिणी मंगल के मनोरथी मुरारी लाल बिरोलिया परिवार के अलावा राजस्थान पत्रिका के संपादकीय प्रभारी शैलेंद्र तिवारी, दैनिक भास्कर के संपादक मुकेश शर्मा के साथ अग्रवाल विद्या विहार ट्रस्ट के अध्यक्ष संजय सरावगी, अग्रवाल विकास ट्रस्ट के कोषाध्यक्ष रमेश अग्रवाल, शिक्षण समिति के सदस्य अनुराग कोठारी, सीए महेश मित्तल, संदीप सिंगल, गौरव सिंगल, चंद्र किशोर झंवर, ललित अग्रवाल, रमेश अग्रवाल (एचटीसी) आदि ने महाराजजी से आशीर्वाद लिया।समिति के विश्वनाथ पचेरिया ने बताया कि बुधवार को कथा सुबह 10 से 1 बजे तक रहेगी। सुदामा चरित्र, परीक्षित मोक्ष, हवन-महाप्रसादी के साथ श्रीमद् भागवत कथा का विराम होगा।
लोक विख्यात संत विजय कौशल जी महाराज के कृपा पात्र वृंदावन के आचार्य पवन नंदनजी महाराज ने कंस वध प्रसंग का वर्णन करते हुए कहा कि द्वापर युग में मथुरा में ही कंस था। लेकिन आज मद एवं पद के अभियान रुपी कंस हर समाज में देखने को मिलते हैं। कंस के धनुष यज्ञ में जब भगवान श्रीकृष्ण भाई बलदेव के साथ पहुंचते हैं तो वहां सभी को अपनी-अपनी भावनाओं के अनुरुप भगवान के रुप दिखाई दे रहे हैं। परंतु कंस को श्रीकृष्ण काल के रुप में दिखाई दे रहे हैं। कंस ने धनुष यज्ञ में दोनों भाइयों (कृष्ण-बलराम) को मारने की पूरी योजना बनाई थी, लेकिन भगवान के सामने कंस की सभी योजनाएं धराशाई हो गई। इसके बाद भगवान कृष्ण ने अभिमानी कंस का वध कर महाराजा उग्रसेन के राजगद्दी पर बैठा दिया। इस दरम्यान भगवान श्रीकृष्ण के जय जयकार से पूरा पंडाल गुंजायमान हो गया।
महाराजजी ने कहा कि मथुरा में भगवान श्रीकृष्ण अपने भक्तों को दर्शन देकर उसका उद्धार किया। कंस की दासी कुब्जा भगवान की भक्त थी, जिसे भगवान श्रीकृष्ण ने सुंदरी कहकर संबोधित किया और उसका स्पर्श कर उसे परम रुपवती बना दिया। भगवान कृष्ण एवं बलराम ऋषि सांदीपन के आश्रम में शिक्षा ग्रहण के लिए उज्जैन गये, जहां 64 दिनों में 64 कलाएं सीखकर सभी विद्या में पारंगत हो गये। घर आने के बाद दोनों भाई माता-पिता के चरण वंदन किया करते थे।
महाराजजी ने कहा कि बड़ों के चरण वंदन से आयु, बुद्धि-विद्या, बल एवं यश की प्राप्ति होती है। लेकिन बेटियों को किसी भी पुरुष का चरण स्पर्श नहीं करना चाहिए और स्त्रियों को अपने पति परमेश्वर के अलावा किसी भी पुरुष का चरण स्पर्श नहीं करना चाहिए। भगवान वृन्दावन में उनके प्रेम में विह्वल प्रेमातुर यशोदा मैया-नंदबाबा एवं गोपियों के प्रेम को याद कर व्याकुल हैं। इसके बाद व्यासपीठ से आचार्य पवन नंदनजी महाराज रुक्मिणी मंगल का बहुत ही मार्मिक प्रसंग का वर्णन किया।