सूरत : दूसरे के हितों का ध्यान रखने वाला मालामाल रहता है : आचार्य पवन नंदनजी महाराज
बाललीला, गोवर्धन पूजाएवं रासलीला का प्रसंग आज
धनुर्मलमास के पावन अवसर पर बिहारी जी की अनुकंपा से श्री लक्ष्मीनाथ सेवा समिति सूरत-वृंदावन द्वारा आयोजित सात दिवसीय श्रीमद् भागवत कथा का आयोजन सिटी लाइट स्थित महाराजा अग्रसेन भवन के द्वारिका हाल में किया गया है। इस पुनीत अवसर पर व्यासपीठ पर विराजमान परम श्रद्धेय आचार्य पवन नंदनजी महाराज अपने मुखारविन्द से दिव्य ज्ञान वर्षा कर पतितपावनी मां तापी के तट पर बसे कुबेर नगरी सूरत में भगवान के कृपापात्र भक्तों को भागवतिक गंगा में गोता लगवा रहे हैं। कथा के चौथे दिन रविवार को भक्तों की चर्चा, महिमा को आगे शुकदेवजी, राजा परीक्षित एवं भक्त प्रहलाद प्रसंग का विस्तार से वर्णन करते हुए मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम एवं योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण जन्म प्रसंग का वर्णन किया।
रविवार को फोस्टा एवं श्याम मंदिर के अध्यक्ष कैलाश हाकिम, मुंबई से पधारे बाबूलाल टिबरेवाल, सेवाराम जैन, अशोक धानुका, रमेश अग्रवाल (एचटीसी), सुशील बगड़िया, पवन मुरारका, लक्ष्मी नारायण सराफ, बाबूलाल गुप्ता ,कैलाश सिंगरोदिया ,पवन, मुरारी, प्रदीप सराफ , गजेंद्र चौधरी ,राधेश्याम सराफ कृष्ण जन्म के मनोरथी जुगल किशोर कैलाश, चंद्र केजरीवाल आदि ने महाराजश्री से आशीर्वाद लिया।
लोक विख्यात संत विजय कौशल जी महाराज के कृपा पात्र वृंदावन के आचार्य पवन नंदनजी महाराज ने कहा कि महाराज जी ने कहा कि भगवान द्रोही हिरण्याकश्यप भगवान के भक्त अपने पुत्र प्रहलाद को मारने का बहुत प्रयास किया, लेकिन हर बार असफल रहा। जिस पर प्रभु की कृपा हो उसका भला कौन बिगाड़ सकता है। अंततोगत्वा भगवान खंबे में से प्रकट होकर नृसिंह रुप धारण कर अभिमानी हिरण्याकश्यप का वध किया। भक्त द्रोही का वध करते बाद भगवान बहुत क्रोध में थे तब महर्षि नारद ने ब्रम्हा, शंकर एवं माता लक्ष्मी को भगवान के पास भेजा लेकिन किसी ने भगवान को क्रोध को शांत नहीं कर सके। तब नारदजी ने 7 वर्ष के भगवान भक्त प्रहलाद से भगवान के पास भेजा तब भगवान ने उन्हे अपनी गोद में बैठा लिया। भक्त प्रहलाद ने प्रार्थना किया कि मेरे पिता को अपने चरणों में स्थान देना। तब भगवान ने कहा जिस पिता ने तुम्हे जीवन भर दुःख दिया उसके लिए तुम्हारा यह भाव परम कल्याण कारक है। भक्त प्रहलाद के वचन सुनकर भगवान ने कहा जिस कुल में मेरे भक्त पैदा होते हैं उस कुल की 21 पीढ़ियां मेरे चरणों में वास करने लगती है।
महाराज जी ने कहा कि जो दूसरे के हित के ध्यान रखता है अथवा दूसरे सुख देने की इच्छा रखता है वह हमेसा मालामाल रहता है। संसार में जो कुछ भी मिलता है वह सब नारायण की कृपा से ही मिलती है। संसार को सर्वस्व मानने वाले प्राणी खाली हाथ रहते हैं। क्योंकि संसार का कोई भी वस्तु जीव के साथ नहीं जाता है। भगवान का भजन, कीर्तन, सुमिरन और दूसरे के साथ किया गया उपकार ही जीव के साथ जाता है और उसी के अनुसार जीव के कर्म फल तय होते हैं और योनी मिलती है। इसके पश्चात भगवान श्रीकृष्ण जन्मोत्सव प्रसंग का वर्णन हुआ। भगवान के प्राकट्य के पश्चात पूरा पंडाल हाथी घोड़ा पालकी, जय कन्हैया लालकी ....एवं हे कृष्ण गोविन्द हरे मुरारे, हे नाथ नारायण वासुदेव... के स्वरों से गूंजायमान हो उठा।