मनु भाकर की ओलंपिक सफलता 2024 में भारतीय निशानेबाजी के लिए निर्णायक लम्हा रही
(अजय मसंद)
नयी दिल्ली, 19 दिसंबर (भाषा) अगर कभी इस बात के सबूत की जरूरत थी कि मनु भाकर में विलक्षण प्रतिभा है तो उन्होंने पेरिस ओलंपिक में दो कांस्य पदक जीतकर इसे साबित कर दिया। उन्होंने 2024 में इतिहास रचा जब निशानेबाजी में सफलता के साथ-साथ मामूली अंतर से पदक चूकना भी शामिल रहा।
मनु ने पेरिस ओलंपिक में पहले 10 मीटर एयर पिस्टल में पोडियम पर जगह बनाई और फिर सरबजोत सिंह के साथ मिलकर 10 मीटर मिश्रित टीम में दूसरा कांस्य पदक जीता। इस तरह वह खेलों के इस महाकुंभ के एक ही सत्र में दो पदक जीतने वाली भारत की पहली खिलाड़ी बन गईं।
पेरिस में भारत रिकॉर्ड 21 निशानेबाजों के साथ उतरा और इस खेल में ओलंपिक पदक के लगभग एक दशक से चले आ रहे सूखे को आखिरकार समाप्त कर दिया। भारत ने पेरिस खेलों में तीन कांस्य पदक जीते जिसमें मध्य रेलवे के टीटीई स्वप्निल कुसाले का 50 मीटर राइफल थ्री पोजीशन का पदक भी शामिल है। मनु ने तीन साल पहले तोक्यो खेलों की निराशा को दूर किया जहां पिस्टल में आई खराबी ने उनकी उम्मीदों को खत्म कर दिया था।
मनु ने पेरिस के बाहरी इलाके में स्थित शेटराउ रेंज में पूरे आत्मविश्वास के साथ कदम रखा और एक चैंपियन की तरह प्रदर्शन करते हुए देश के पदक के सूखे को समाप्त किया।
इस सफलता से चैंपियन और उनके कोच जसपाल राणा की भावनाओं का उफान देखने को मिला जिन्हें यह गौरव हासिल करने के लिए लगभग दो साल तक संघर्ष और कठिनाइयों से गुजरना पड़ा।
भारतीय राष्ट्रीय राइफल संघ (एनआरएआई) के एसओपी (मानक संचालन प्रक्रिया) के कारण निशानेबाजी रेंज छोड़ने के लिए कहे जाने से लेकर दर्शक दीर्घा से अपनी शिष्या को कोचिंग देने के लिए मजबूर होने तक जसपाल को तीखे कटाक्ष और अपमान सहना पड़ा जिसने एक तरह से दोनों को पेरिस में चुनौती का सामना करने के लिए प्रेरित किया।
चैंपियन मनु ने अपनी पेरिस सफलता का सारांश यह कहकर दिया कि जसपाल उनके लिए पिता समान हैं जिन्होंने उन्हें उस समय बहुत हिम्मत दी जब भी वह खुद के बारे में अनिश्चित महसूस करती थीं।
तोक्यो ओलंपिक से पहले गलतफहमी के कारण दोनों के बीच अलगाव हो गया था जिसके बाद से यह रिश्ता काफी आगे बढ़ चुका है और अब जबकि 2028 लॉस एंजिल्स ओलंपिक आने वाले हैं तो इसका मतलब मनु के लिए और अधिक सफलता ही हो सकता है।
सरबजोत ने भी चोटों के कारण पिछले साल छह महीने से अधिक समय तक खेल से दूर रहने के बाद शानदार सफलता हासिल की। अंबाला के इस युवा निशानेबाज के करियर में एक ऐसा दौर भी आया जब वे अपनी पिस्टल भी नहीं उठा पाते थे, प्रतियोगिता में 60 बार इसे दोहराना तो दूर की बात है।
लेकिन सावधानीपूर्वक योजना और रिहैबिलिटेश्न ने उन्हें पिछले साल मार्च में करियर के लिए खतरा बनी चोट से उबरने में मदद की और मनु के साथ मिलकर वह कांस्य पदक विजेता बने।
स्वप्निल के लिए यह अपनी कोच दीपाली देशपांडे के सपने को साकार करना था। यह पूर्व निशानेबाज उस समय भावुक हो गई जब उनके शिष्य ने ओलंपिक में 50 मीटर राइफल थ्री पोजीशन में पहला पदक जीता।
एक समय राष्ट्रीय टीम का हिस्सा रहीं दीपाली तोक्यो ओलंपिक में भारतीय निशानेबाजों के खराब प्रदर्शन के लिए बलि का बकरा बनीं थीं। लेकिन स्वप्निल ने उन पर भरोसा बनाए रखा और एक बार फिर सफलता हासिल करने में व्यक्तिगत कोचों के महत्व को देखते हुए इस अनुभवी खिलाड़ी को नियुक्त किया।
मनु, सरबजोत और स्वप्निल ने जहां ओलंपिक पदक जीतकर सुर्खियां बटोरीं तो वहीं राइफल निशानेबाज अर्जुन बाबूता और शॉटगन विशेषज्ञ माहेश्वरी चौहान और अनंत जीत सिंह नरुका जैसे निशानेबाजों को निराशा हाथ लगी क्योंकि वे पेरिस में चौथे स्थान पर रहे। इन्होंने हालांकि शानदार भविष्य की उम्मीद जगाई।
बबूता पुरुषों की 10 मीटर एयर राइफल में कांस्य पदक जीतने से चूक गए जबकि माहेश्वरी और नरुका की मिश्रित स्कीट टीम ने कड़े मुकाबले में चीन को पदक गंवा दिया।
मनु भी ऐतिहासिक हैट्रिक बनाने से चूक गईं। उन्होंने शानदार प्रदर्शन के बाद महिलाओं की 25 मीटर स्पोर्ट्स पिस्टल स्पर्धा में चौथा स्थान प्राप्त किया।
पेरिस ओलंपिक की तैयारियों में चयन संबंधी मुद्दों पर विवाद रहा क्योंकि राष्ट्रीय महासंघ के ओलंपिक चयन ट्रायल मुकदमेबाजी और शीर्ष निशानेबाजों के बीच असंतोष के केंद्र में थे।
अदालत में याचिका में ओलंपिक चयन ट्रायल के मानदंडों पर सवाल उठाया गया जिसमें प्रत्येक श्रेणी में केवल पांच निशानेबाजों को अनुमति दी गई थी। देश के लिए कोटा स्थान हासिल करने वाले कई निशानेबाज ओलंपिक चयन ट्रायल में अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाए और उन्होंने महासंघ से अपने फैसले पर पुनर्विचार करने को कहा।
पुरुषों की 10 मीटर एयर राइफल के विश्व चैंपियन रुद्रांक्ष पाटिल और महिलाओं की 10 मीटर एयर राइफल की विशेषज्ञ तिलोत्तमा सेन जैसे निशानेबाज चूक गए जबकि संदीप सिंह और रमिता ने पेरिस जाने वाले दल में अपनी जगह बनाई।