स्पेन, जर्मनी और पोलैंड के अपशिष्ट जल में पोलियो वायरस पाया गया- आपको क्या जानना चाहिए
(मारियाचियारा डि सेसरे, एसेक्स यूनिवर्सिटी और फ्रांसिस हसार्ड, क्रैनफील्ड यूनिवर्सिटी)
कोलचेस्टर, 15 दिसंबर (द कन्वरसेशन) विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने 1988 में पोलियो के वैश्विक उन्मूलन का आह्वान किया। एक दशक के भीतर, तीन पोलियोवायरस उप स्वरूपों में से एक को पहले ही लगभग समाप्त कर दिया गया था। इसका अर्थ है कि दुनिया भर में इस बीमारी के नए मामलों में स्थायी कमी आई है।
पोलियो को पोलियोमाइलाइटिस के नाम से भी जाना जाता है। यह पोलियोवायरस के कारण होने वाली एक अत्यंत संक्रामक बीमारी है। यह तंत्रिका तंत्र पर हमला करता है और कुछ ही घंटों में पूर्ण पक्षाघात का कारण बन सकता है। वायरस मुंह के माध्यम से प्रवेश करता है और आंत में उसकी प्रजनन क्षमता बढ़ जाती है। संक्रमित लोग मल मार्ग और मुख मार्ग से पर्यावरण में पोलियोवायरस फैलाते हैं।
लगभग हर 200 संक्रमणों में से एक के मामले में स्थायी पक्षाघात होता है (आमतौर पर पैरों को प्रभावित करता है)। जो लोग पक्षाघात से पीड़ित होते हैं, उनमें से पांच से 10 प्रतिशत की मृत्यु सांस लेने वाली मांसपेशियों के स्थिर हो जाने के कारण होती है।
वर्ष 1988 से लेकर अब तक पोलियो वायरस से संक्रमण के मामलों की वैश्विक संख्या में 99 प्रतिशत से अधिक की कमी आई है। आज, केवल दो देशों - पाकिस्तान और अफगानिस्तान - में पोलियो एक ‘स्थानिक महामारी’ मानी जाती है। इसका मतलब है कि यह बीमारी देश में नियमित रूप से फैलती है।
हाल के महीनों में जर्मनी, स्पेन और पोलैंड के अपशिष्ट जल में पोलियो वायरस पाया गया है। यह खोज आबादी में संक्रमण की पुष्टि नहीं करती है, लेकिन यह यूरोप के लिए एक चेतावनी है, जिसे 2002 में पोलियो मुक्त घोषित किया गया था।
टीकाकरण अभियान में किसी तरह की कमी से यह बीमारी फिर से उभर सकती है।
पोलियोवायरस के उप स्वरूप उस क्षेत्र में विकसित हुए जहां वायरस प्रचलन में रहा। इसके कारण 2021 में ताजिकिस्तान और यूक्रेन में तथा 2022 में इजराइल में बिना टीकाकरण वाले लोगों में इसका प्रकोप देखने को मिला। इसके विपरीत, ब्रिटेन में 2022 में अपशिष्ट जल में पोलियो वायरस पाया गया था लेकिन इससे किसी के लकवाग्रस्त होने की कोई घटना सामने नहीं आई।
यह जानकारी पोलियोवायरस की पहचान के विभिन्न प्रभावों पर प्रकाश डालती है। क्यों?
कम टीकाकरण वाली आबादी वाले क्षेत्रों में, वायरस व्यापक रूप से फैल सकता है और पक्षाघात का कारण बन सकता है। लेकिन जिन समुदायों में सभी का टीकाकरण होता है वहां वायरस अक्सर लक्षणहीन संक्रमणों तक ही सीमित रहता है या केवल अपशिष्ट जल में ही पता लगाया जा सकता है।
इसका अभिप्राय है कि पर्यावरण में वायरस का पता लगाना पूर्व चेतावनी की तरह काम कर सकता है। यह सार्वजनिक स्वास्थ्य अधिकारियों को टीकाकरण की दर की जांच करने और टीकाकरण अभियान को बढ़ावा देने, स्वास्थ्य सेवा तक पहुंच में सुधार करने और प्रकोप को रोकने के लिए रोग निगरानी बढ़ाने जैसे उपाय करने की चेतावनी देता है।
सूचनाओं का समृद्ध स्रोत
कोविड महामारी के दौरान अपशिष्ट जल निगरानी दृष्टिकोण दोबारा चर्चा में आया और यह बीमारी के प्रकोप का शीघ्र पता लगाने में अमूल्य तरीका साबित हुआ। अपशिष्ट जल सूचना का एक समृद्ध स्रोत है। इसमें मानव मल का मिश्रण होता है, जिनमें वायरस, बैक्टीरिया, कवक और रासायनिक अवशेष होते हैं। इस मिश्रण का विश्लेषण सार्वजनिक स्वास्थ्य अधिकारियों के लिए बहुमूल्य जानकारी प्रदान करता है।
तीनों देशों में नियमित अपशिष्ट जल परीक्षण से एक विशिष्ट टीके से उत्पन्न स्वरूप का पता चला। तीनों देशों में से किसी में भी पोलियो का कोई मामला सामने नहीं आया है।
टीका जनित पोलियोवायरस के उप स्वरूप मुंह के रास्ते ली जाने वाली पोलियो टीका की खुराक में मौजूद कमजोर जीवित पोलियोवायरस से निकलते हैं। अगर यह कमजोर वायरस कम-टीकाकरण वाले या कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली वाले लोगों (जैसे कि प्रत्यारोपण प्राप्तकर्ता या कीमोथेरेपी से गुजर रहे लोग) के बीच लंबे समय तक प्रसारित होता है, तो यह आनुवंशिक रूप से बीमारी पैदा करने में सक्षम रूप में वापस आ सकता है।
इस मामले में, यह संभव है कि वायरस किसी संक्रमित लक्षणहीन व्यक्ति द्वारा अपशिष्ट जल में छोड़ा गया हो। लेकिन यह भी संभव है कि जिस व्यक्ति को हाल ही में मुंह के रास्ते टीके की खुराक (कमजोर वायरस के साथ) दी गई है, उसने वायरस को अपशिष्ट जल में फैला दिया हो, जो बाद में पक्षाघात का कारण बनने वाले उत्परिवर्तन को पुनः प्राप्त करने तक विकसित हुआ हो।
एक अलग तरह का टीका मौजूद है। निष्क्रिय पोलियो टीके (आईपीवी) से वायरस खतरनाक रूप में वापस नहीं आ सकता। हालांकि, इसे वितरित करना अधिक महंगा और अधिक जटिल है, इसे लगाने के लिए प्रशिक्षित स्वास्थ्य कर्मियों की आवश्यकता होती है और अधिक जटिल प्रक्रियाएं होती हैं। इससे इस टीके को गरीब देशों की आबादी तक पहुंचाने में चुनौती आती है जबकि उन देशों में टीकाकरण की आवश्यकता अधिक होती है।
इसका अभिप्राय यह नहीं है कि मुंह के रास्ते दिया जाने वाला पोलियो का टीका फायदेमंद नहीं है। इसके विपरीत, वे वैश्विक स्तर पर कुछ पोलियोवायरस उपभेदों को खत्म करने में सहायक रहे हैं। असली समस्या तब पैदा होती है जब टीकाकरण कवरेज अपर्याप्त होता है।
यूरोप में 2023 में एक साल के बच्चों में पोलियो टीकाकरण करीब 95 प्रतिशत था। यह 80 प्रतिशत ‘‘समुदाय प्रतिरक्षण’ सीमा से काफी अधिक है। समुदाय प्रतिरक्षण तब कहते हैं जब आबादी में पर्याप्त लोगों को टीका लगाया जाता है ताकि कमजोर समूह बीमारी से सुरक्षित रहें।
(द कन्वरसेशन)