संविधान के अनुच्छेद 67 की व्याख्या पर टिका है धनखड़ के खिलाफ नोटिस का भविष्य
नयी दिल्ली, 10 दिसंबर (भाषा) उपराष्ट्रपति पद से जगदीप धनखड़ को हटाने के लिए प्रस्ताव लाने का जो नोटिस विपक्षी दलों ने दिया है, उस पर आगे की कार्रवाई संविधान के अनुच्छेद 67 की व्याख्या पर काफी हद तक निर्भर करती क्योंकि देश के संसदीय इतिहास में ऐसा पहली बार है कि राज्यसभा के सभापति के खिलाफ यह कदम उठाया गया है।
संवैधानिक विशेषज्ञों का कहना है कि इस नोटिस पर विचार किया जाए या नहीं, इसमें सरकार की भी प्रमुख भूमिका हो सकती है।
विपक्षी गठबंधन ‘इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इंक्लूसिव अलायंस’ (इंडिया) के घटक दलों ने मंगलवार को राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ पर ‘‘पक्षपातपूर्ण आचरण’’ का आरोप लगाते हुए उन्हें उपराष्ट्रपति पद से हटाने के लिए प्रस्ताव लाने संबंधी नोटिस सौंपा।
विपक्ष का आरोप है कि धनखड़ द्वारा अत्यंत पक्षपातपूर्ण तरीके से राज्यसभा की कार्रवाई संचालित करने के कारण यह कदम उठाना पड़ा है।
संविधान के अनुच्छेद 67 में उपराष्ट्रपति की नियुक्ति और उन्हें पद से हटाने से जुड़े तमाम प्रावधान किए गए हैं।
संविधान के अनुच्छेद 67(बी) में कहा गया है, “उपराष्ट्रपति को राज्यसभा के एक प्रस्ताव, जो सभी सदस्यों के बहुमत से पारित किया गया हो और लोकसभा द्वारा सहमति दी गई हो, के जरिये उनके पद से हटाया जा सकता है। लेकिन कोई प्रस्ताव तब तक पेश नहीं किया जाएगा, जब तक कम से कम 14 दिनों का नोटिस नहीं दिया गया हो, जिसमें यह बताया गया हो ऐसा प्रस्ताव लाने का इरादा है।’’
लोकसभा के पूर्व संयुक्त सचिव (विधायी कार्य) रवींद्र गैरीमला ने कहा, ‘‘यह अपने आप में पहला मामला है कि उप राष्ट्रपति के खिलाफ नोटिस दिया गया है। नोटिस दिए जाने के 14 दिनों बाद इसे विचार करने के लिए स्वीकार किए जाने का फैसला 67बी की व्याख्या पर निर्भर करता है। ऐसे में सरकार की भूमिका भी अहम हो जाती है।’’
उनका कहना था कि अब यह देखना होगा कि शीतकालीन सत्र में करीब 10 दिन का समय बचा है, ऐसे में क्या इस नोटिस को अगले सत्र (बजट सत्र) के दौरान विचार के लिए लिया जाता है या नहीं।
गैरीमला ने कहा, ‘‘संभव है कि इसे इस आधार पर खारिज कर दिया जाए कि इस सत्र में 14 दिन का समय नहीं बचा है। वैसे यह देखना होगा कि इस पर आगे क्या होता है क्योंकि यह अपनी तरह का पहला मामला है।’’
सदन में यदि इस प्रस्ताव को लाने की अनुमति मिलती है तो विपक्षी दलों को इसे पारित कराने के लिए साधारण बहुमत की जरूरत होगी, लेकिन फिलहाल उनके पास संख्या बल नहीं है। वर्तमान समय में राज्यसभा में कुल 243 सदस्य हैं और इसमें सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के पास बहुमत है।
विपक्ष ने इस बात पर जोर दिया है कि उसके इस कदम के पीछे संसदीय लोकतंत्र के लिए लड़ाई लड़ने का एक मजबूत संदेश है।
राज्यसभा में पहली बार किसी सभापति के खिलाफ इस तरह का नोटिस दिया गया है।
लोकसभा में अब तक तीन अध्यक्षों को हटाने का नोटिस दिया जा चुका है। देश के पहले लोकसभा अध्यक्ष जी वी मावलंकर के खिलाफ 1954 में नोटिस दिया गया था जो खारिज कर दिया गया था। इसके बाद 1966 में तत्कालीन लोकसभा अध्यक्ष हुकूम सिंह के खिलाफ नोटिस दिया गया था जो खारिज हो गया था।
इसके बाद 1992 में बलराम जाखड़ के खिलाफ वरिष्ठ वामपंथी नेता सोमनाथ चटर्जी ने प्रस्ताव पेश किया था जो सदन में अस्वीकृत कर दिया गया था। बाद में चटर्जी खुद लोकसभा अध्यक्ष बने।