सूरत : कपड़ा मार्केट में तेजी के बीच श्रमिकों की कमी से जूझ रहे लेबर कान्ट्रेक्टर

शादी की सीजन के साथ धान की कटाई का काम पूरा होने के बाद श्रमयोगियों के आने की उम्मीद : राजेन्द्र उपाध्याय

सूरत : कपड़ा मार्केट में तेजी के बीच श्रमिकों की कमी से जूझ रहे लेबर कान्ट्रेक्टर

औद्योगिक नगरी सूरत तथा आसपास के क्षेत्रों में कार्पोरेट कंपनियों से लेकर हजारों की तादात में छोटी-बड़ी औद्योगिक इकाइयां होने से लाखों के संख्या में श्रमिक कार्यरत हैं, जिसमें से अधिकांश श्रमिक उत्तर प्रदेश,बाहर, झारखंड, मध्यप्रदेश, उड़ीसा आदि राज्यों के होते हैं। इनमें से श्रमिकों का बड़ा वर्ग बिहार एवं उत्तर प्रदेश की होती है, जो गर्मियों में और दीपावली एवं श्री छठ महापर्व के दौरान अपने वतन जाते हैं। इसलिए इन दोनों सीजन में कपड़ा मार्केट से लेकर डाइंग-प्रिंटिंग मिलों तथा संचा कारखानों में लेबरों की कमी देखने के मिलती है। लेबरों की कमी के बीच इन दिनों काम करवाना लेबर कान्ट्रेक्टरों के लिए परेसानी का सबब होता है। ऐसे में लेबर कान्ट्रेक्टरों को अपनी प्रतिष्ठा बचाने के लिए अधिक रुपये देकर असंगठित लेबरों को काम पर लाना पड़ता है। 

ग्रे फीनिश डिलीवरी टेम्पो कान्ट्रेक्टर वेलफेयर एसोसिेशन के प्रमुख राजेन्द्र उपाध्याय ने बताया कि दीपावली से पूर्व गांव गए श्रमिक अब धीरे-धीरे आने लगे हैं। उन्होंने बताया कि दीपावली के तकरीबन एक सप्ताह पूर्व से ही सूरत तथा आसपास के औद्योगिक इकाइयों में कार्यरत श्रमिक वर्ग अपने वतन की ओर रुख करने लगते हैं, जो दीपावली एवं श्री छठ महा पर्व के बाद नवंबर-दिसंबर की शादी-विवाह के प्रसंग पूरा होने के साथ ही साथ धान की कटाई का काम पूरा होने के बाद ही वापस आते हैं। हालांकि दीपावली वेकेशन के बाद विद्यालय खुलने पर स्थाई हुए लेबर तो आ जाते हैं, लेकिन जो श्रमिक यहां स्थाई नहीं हुए हैं वह देर से ही आते हैं। यही कारण है कि दीपावली व छठ पर्व के एक महीने बाद भी श्रमिकों की कमी कपड़ा मार्केट से लेकर डाइंग-प्रिंटिंग मिलों तक बनी हुई है।

उन्होंने बताया कि धान की कटाई का भी काम पूरा हो जाने के साथ ही आगामी 15 दिसंबर तक शादी की सीजन समाप्त होने के बाद लेबर वर्ग सूरत की ओर रुख करेगा। परंतु यातायात हेतु टिकटों की समस्या होने से दिसंबर के अंत तक सभी श्रमिकों के आने की उम्मीद है। गांव गये सभी श्रमिकों के आने के बाद इसी महीने के अंत तक लेबरों की समस्या का समाधान होने की संभावना जताई जा रही है। फिलहाल इन दिनों कपड़ा मार्केट में ग्रे ताके दुकानों से उठाने एवं फिनिश मॉल दुकानों में पहुंचाने के लिए श्रमिकों की बहुत कमी है। प्रतिदिन 1300 से 1500 रुपये देकर श्रमिकों को काम पर लाना पड़ता है। जबकि प्रायः 700 से 800 रुपए ही दैनिक श्रमिकों का होता है, लेकिन श्रमयोगियों की कमी होने से अधिक रुपए देकर काम पर लाना पड़ता है। इन दिनों 
डाइंग-प्रिंटिंग मिलों में भी लेबरों का अभाव है। 

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