सूरत : बंगाली समाज द्वारा विविध क्षेत्रों में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है दुर्गा पूजा महोत्सव

विजयादशमी के दिन से सिंदूर खेला का विशेष महत्व : बासुदेव अधिकारी

सूरत : बंगाली समाज द्वारा विविध क्षेत्रों में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है दुर्गा पूजा महोत्सव

सूरत में जहां एक ओर यंगस्टर्स गरबा की ताल पर थिरकने के लिए बेताब रहते हैं, तो वहीं दूसरी ओर सूरत में बंगाली समाज के दो से ढाई लाख लोगों में दुर्गा पूजा को लेकर अनोखा उत्साह दिख रहा है। आपको शायद ख्याल नहीं होगा की सूरत में 60 वर्ष से बंगाली समाज के लोगों द्वारा दुर्गा पूजा के लिए भव्य आयोजन किया जाता है। गणेश पंडाल की तरह बड़ा-बड़ा भव्यातिभव्य पंडाल बनाए जाते हैं। ढोल-बादन के लिए स्पेशल कोलकाता से बादन कलाकार बुलाए जाते हैं और दुर्गा माता की मूर्ति भी बंगाली कारीगरों द्वारा ही बनाए जाते हैं। गुजराती महिलाएं भी अब दुर्गा पूजा की हिस्सा बन रही है और वह बंगाली समाज की सिंदूर खेला में भाग लेती है। बंगाली समाज में सिंदूर खेला का जो महत्व है पश्चिम बंगाल में है उसकी तुलना में यहां दुर्गा पूजा अलग होता है। 

सूरत बंगाली समाज के प्रमुख बासुदेव अधिकारी ने बताया कि शहर में विविध 12 जगह पर भव्य रूप से दुर्गा पूजा महोत्सव मनाया जाता है। जिसमें पिपलोद काली माता चैरिटेबल ट्रस्ट सूरत,  बंगाल क्लब अडाजन, बंगाली प्रगति सेवा ट्रस्ट पांडेसरा,  बंग संस्कृति संगठन कदम भवन मजूरागेट, वेडरोड सार्वजनिक दुर्गा पूजा,  अंबाजी रोड सार्वजनिक दुर्गा पूजा,  बंगाली नवचेतना सेवा ट्रस्ट अलथान,  पिपलोद सास्कृतिक संगठन, न्यू बंगाल क्लब पांडेसरा, बंगाल यूनाइटेड क्लब भेस्तान, सूरत बंगाल युवक मंडल रामपुरा आदमनी वाडी, न्यू बंगाल यूनाइटेड क्लब मोरा आदि का समावेश है।  

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बासुदेव अधिकारी ने बताया कि दुर्गा पूजा में आठम का दर्शन महत्वपूर्ण माना जाता है, जबकि नवें दिन प्रत्येक पंडालों में हवन होता है और विजयादशमी के दिन से सिंदूर खेला का महत्व होता है। इस दिन महिलाएं लाल एवं सफेद कलर की साड़ी में सज्ज होती है। घर से लाई गई थाली में दीप, अगरबत्ती धूप, गंगाजल, मिठाई, फुल, सिंदूर होता है। दुर्गा माता की आरती करती है, माता को मिठाई खिलाने के बाद दूध पिलाई जाती है और पान चढ़ाकर रुमाल से माताजी का मुंह साफ करती है। महिलाएं बाद में एक दूसरे को सिंदूर पहनाती है। शंख की चूड़ी में भी सिंदूर लगाया जाता है। अब सिंदूर खेला में गुजराती महिलाएं भी भाग लेने लगी है, लेकिन इनकी संख्या अभी बहुत कम है।  बंगाली परिवारों के साथ उत्सव का आनंद मिलने से बड़े पैमाने पर दुर्गा पूजन का आयोजन होने लगे हैं 

बासुदेव अधिकारी ने बताया कि सूरत में गोपीपुर, उधना, हजीरा, वेड रोड, वराछा रोड आदि विस्तारों में बंगाली समाज लोग वर्षों से रहते हैं। वह सभी एक साथ एकत्रित होकर उत्सव का आनंद ले सके इसके लिए अब बड़े पैमाने पर दुर्गा पूजा का आयोजन होने लगे हैं। मूर्ति 6 से 9 फीट तक माटी एवं खड की बनाई जाती है। मूर्ति बना में अमुक जगह पर वेश्यालय की माटी लाई जाती है, उसे शगुन माना जाता है और मूर्ति पर इस माटी का लेप होता है। जब प्रतिमा का विसर्जन होता है तो प्रत्येक मंडप के 400 से 500 लोग एकत्रित होते हैं। अब तो मराठी, गुजराती, मारवाड़ी एवं अन्य दूसरे समाज के लोग भी 
पंडाल में दुर्गा माताजी के दर्शन के लिए आते हैं।

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