सूरत :  साधु का धन वैराग, स्त्री का धन लज्जा एवं पुरूष का धन पुरूषार्थ  : स्वामी अवधेशानंद गिरिजी महाराज

निर्धन, साधन हीन बच्चों को पढ़ाने से होगी धर्म की रक्षा 

सूरत :  साधु का धन वैराग, स्त्री का धन लज्जा एवं पुरूष का धन पुरूषार्थ  : स्वामी अवधेशानंद गिरिजी महाराज

 शहर के वेसू क्षेत्र में श्री श्याम अखंड ज्योत सेवा समिति के तत्वावधान में आयोजित सात दिवसीय श्री रामकथा के चौथे दिन शुक्रवार को व्यासपीठ से जूना पीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरि महाराज ने कथा का रसपान करवाते हुए कहा कि जनक अपनी पुत्री सीता के विवाह को लेकर घोषणा करते हैं कि जो कोई शिव धनुष्य पर बाण का संधान कर लेगा, उसके साथ सीता का विवाह कर दिया जाएगा। समय-समय पर कई राजा आए, किंतु धनुष कोई हिला भी नहीं सका। दरबार में राजा खुद को लज्जित महसूस कर चले जाते थे। दशानन उठते हैं तो अंत ध्वनी से पता चलता है इस धनुष्य को स्पर्श भी किया तो सोने की लंका जलकर राख हो जाएगी। यह काल की गाथा लिखने वाला धनुष्य है। जिससे वह भी वहां से निकल जाते है। 

उन्होंने कहा कि साधु के पास वैराग का धन होता है। स्त्री का धन लज्जा है और पुरूष का धन पुरूषार्थ बताया है। जनक को अपनी प्रतिज्ञा पर अफसोस होता है तब लक्ष्मण उठते है कहासूनी होती है। शब्दों में विकृति नहीं रहनी चाहिए, वीरों के सामने अशोभनीय भाषा नहीं बोली जाती। तब रामजी नेत्रों से कुछ कहते हैं और लक्ष्मण बैठ जाते हैं। सभा मंडप में श्रीराम का नांद गूंजने लगता है। राम अपने गुरूदेव विश्वामित्र को प्रमाण करते हैं। उऩ्होंने कहा कि आप सच्चे मन से प्रणाम करते हैं तो वह सभी देवताओं को प्राप्त होते हैं। रामायण शरणागति ग्रंथ है। यहां पर जितने भी पात्र है वह राम के शरणागति के बाद ही तरे है। ऐसा कोई नहीं है जिसने राम को चुनौति दी हो और तर गया हो। धनुष्य भी शरणागति लेते है और धनुष्य टूट जाता है। जनक की प्रतिज्ञा पूरी होती है और सीता राम को वरमाला पहनाती है। 

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स्वामी अवधेशानंद गिरि ने कहा कि पहले वरमाला होती थी, वधुमाला नहीं, आजकल दोनों पहनाते है। राम- सीता का सुंदर वर्णन करते हुए कहा कि केकैयी ने सीता के लिए कमल पराग बिछाया था। कौशल्या ने सीता को गोद में उठा लिया। जिस इस इतना आदर अपने बहु का करोगे तब सारे देवता घर में उतर आएंगे। आजकल संबंधों में वाणिज्य, व्यापार, कई के अनुबंध आ गया है। परस्पर एक दूसरे का आदर करना चाहिए। विनयपूर्ण कौशल्या दशरथ की ओर देखती है और दशरथ उसकी मन की बात जान लेते है। सीता को देखने लायक उपहार तो स्वर्ग में भी नहीं है, तो कौशल्या राम का हाथ सीता के हाथ में देखकर कहती है, इससे मंहगी चीज मेरे पास नहीं है। मेरापन भी सीता को सौंप देती है। केकैयी सीता को कर्णक भवन देती है। सुमित्रा अपने दो पुत्रों से एक भरत को और दूसरा राम को समर्पित करती है। अयोध्या का आनंद अलग ही है, अयोध्या जो किसी के द्वारा जीती जा नहीं सके। 

अयोध्याकांड का वर्णन करते हुए कहा कि कौन है भरत जिसमें अनग नहीं। अनग यानि ईष्या। गुरू वशिष्ठ कहते हैं, भरत जो सोचता है करता है उसमें कभी भी अधर्म नहीं हो सकता। सबका सहयोग करना चाहिए। जो निर्धन है, साधनहीन है उनके बच्चों को जरूर पढ़ाना चाहिए। जो शिक्षा से वंचित है, संस्कार से वंचित है, उन्हें शिक्षित करने से धर्म की रक्षा होगी। शिक्षा में दान दीजिए, शिक्षा में आगे आए। देवता की सवामणि जरूर लगाए, उत्सव, मेले सभी परंपरा जरूर मनाएं, लेकिन एक गरीब बच्चों को अवश्य पढ़ाएं। शुक्रवार को महाराज श्री से श्याम सुंदर पंसारी, कुंज बिहारी पंसारी, बृजमोहन मंधनी, अशोक चिराणिया, अंजनी चिराणिया आशीर्वाद रूप में महाराज जी से प्रतीक चिन्ह प्राप्त किया।

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