सूरत : भारत की संस्कृति भोग की नहीं, उपयोग, सद्उपयोग की संस्कृति : स्वामी अवधेशानंद गिरि जी महाराज

विकृति के नाश करने लिए गंगा का एक बूंद काफी

सूरत : भारत की संस्कृति भोग की नहीं, उपयोग, सद्उपयोग की संस्कृति : स्वामी अवधेशानंद गिरि जी महाराज

देवता परमात्मा नहीं हो सकते, मनुष्य परमात्मा हो सकता है, वह नर से नारायण हो सकता है, जीव से ब्रम्ह हो सकता है यह सामर्थ्य मनुष्य में है

 शहर के वेसू क्षेत्र में श्री श्याम अखंड ज्योत सेवा समिति के तत्वावधान में आयोजित सात दिवसीय श्री रामकथा के तीसरे दिन गुरूवार को व्यासपीठ से जूना पीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरिजी महाराज ने गुरू और गंगा की पवित्रता, हमारी संस्कृति का महात्म्य को सारगर्भित तरीके से बताया। उन्होंने कहा कि विश्वम यानि संसार, रावण को ब्रम्हा से वरदान प्राप्त होता है मनुष्य ही मेरे मृत्यु का कारण बने। देवता परमात्मा नहीं हो सकते, मनुष्य परमात्मा हो सकता है। वह नर से नारायण हो सकता है, जीव से ब्रम्ह हो सकता है यह सामर्थ्य मनुष्य में है। भगवान राम लक्ष्मण को रावण के पास भेजते है। तब अब रावण कहता है अशुभ करना है तो वह कल पर छोड़ते है। तब लक्ष्मण रावण से पूछते है शुभ है क्या? तब रावण कहता है परमात्मा का दर्शन ही शुभ है। लक्ष्मण लंका देखकर आश्चर्यचकित हो जाते है। लक्ष्मण लौटकर भगवान राम को कहते है, मैं तो उपदेश लेकर आया हूं लेकिन लंका कुछ विचित्र है, कल्पना से परे है। 

उन्होंने कहा विद्या दान की चीज है अर्जन की नहीं है, डिग्रीयां कमाई जा सकती है, सर्टिफिकेट कोर्स किए जा सकते है। गुरू विद्या दान करता है।  ताड़का वध का वर्णन करते हुए कहा कि ताड़िका गुरूत्वाकर्ष को तोड़ना चाहती थी। वह मानस में विकृति चाहती थी। मनुष्य में विकार पैदा हो, अनियंत्रित काम हो, स्त्री- पुरूष का भेद चला जाए, संपूर्ण जीव जगत में असंतुलन पैदा हो जाए। ऐसा तब होता है जब हम माता पिता की आज्ञा न मानें। जीवन की वृद्धि, विकास आज्ञा से होता है। विकृत संतान जन्म लेने पर नियम को नहीं मानते, प्राकृतिक नियमों को नहीं मानेंगे। इसके परिणाम हमको देखने को मिल रहे है। स्त्रियों में पुरूषत्व ज्यादा जग रहा है और पुरूषों में स्त्रीत्व जग रहा है। ताड़का में विकृति आ गई थी, वह स्त्री- पुरूष का कोई भेद नहीं रखना चाहती थी। धरती का संतुलन बिगाड़ना चाहती थी। इसलिए उसका वध जरूरी था।  

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उन्होंने कहा कि हमारी संस्कृति भोग की नहीं बल्कि उपयोग की संस्कृति है। सदउपयोग की संस्कृति है। गंगा की पवित्रता के गुणगाण करते हुए कहा कि यूनोस्को ने भी हेरिटेज धरोहर गंगा स्नान को बताया है। धरती पर गंगा तारने के लिए लाई गई थी। गंगा भक्ति, ज्ञान, कर्म योग सिद्ध करती है। विकृति के नाश करने लिए गंगा का एक बूंद काफी है। किसी तत्व में बारह तत्व होते है लेकिन गंगा में चौदह पाये जाते है। हमारे देवता मंत्रमय है, गंगा भी मंत्रमय है, इसलिए शुभ कार्य में गंगा का स्मरण करना चाहिए। 

कथा को आगे बढ़ाते हुए स्वामी अवधेशानंद गिरि महाराज ने कहा कि गुरूदेव राम को गंगा स्नान करने के बाद विश्वमित्र ने शक्तियां कर कहते है कि मनुष्य योनि में जन्म लेकर राक्षसों का संहार करेंगे और आपकी शक्तियां लोककल्याण करेंगी। भारत की सारी विद्याएं लोककल़्याण के लिए है। सबसे दयनीय स्थिति क्रोध है और इसमें हम अपना अहित कर बैठते हैं। उबला हुआ जल वापस नहीं आ सकता वैसे ही बोला हुआ शब्द वापस नहीं आते। वाणी संस्कार को अहम बताया। आज के कथा के दौरान लक्ष्मीपति ग्रुप के संजय सरावगी ने स्वामी अवधेशानंद गिरि के आशीर्वाद प्राप्त किए। 

निशान यात्रा शनिवार को 

आश्विन मास की बदी एकादशी शनिवार 28 सितंबर को सुबह 7.31 बजे बाबा की निशान यात्रा राम कथा स्थल ग्रीन वैली के सामने से निकाली जाएगी। जो श्री श्याम मंदिर सूरत पहुंचेगी।

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