सूरत : प्रक़ति बड़ी अद्भूत व्यवस्था, प्रकृति से ही बनी है हमारा मन, बुद्धि : स्वामी अवधेशानंद गिरिजी महाराज

कोई भाषा ऐसी नहीं है जो आपकी अभिव्यक्ति को पूर्णता प्रदान कर सकें

सूरत : प्रक़ति बड़ी अद्भूत व्यवस्था, प्रकृति से ही बनी है हमारा मन, बुद्धि : स्वामी अवधेशानंद गिरिजी महाराज

 शहर के वेसू क्षेत्र में श्री श्याम अखंड ज्योत सेवा समिति तत्वावधान में आयोजित सात दिवसीय श्री रामकथा के दूसरे दिन बुधवार को व्यासपीठ से जूना पीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरिजी महाराज ने कहा कि पितृपक्ष में देव और पितृ कथा के माध्यम से न केवल कथा की संमति प्रकट कर रहे हैं, बल्कि उनके आशीष और उनके अनग्रही है। शास्त्र कहते ही वृष्टी सर्वदा कल्याणकारी रहती है। हम मनुष्य देवता के अधीन है। यह जगत में जो कुछ है वह देव के अधीन है। नियति, व्यवस्था, परमात्मा, प्रकृति, उनकी कोई आज्ञा देवीय व्यवस्था है। देव लोग पर्जन्य लोग, भूलोग संचालित है।  हम बहुत स्वतंत्र नहीं है। प्रकृति के अधीन है। हम सभी प्राणी मायावी वशीभूत है। संकल्प की शुद्धि, दिव्यता, पुरूषार्थ की प्रचंडता हमें इस अधीनता से मुक्त करती है। यह जो अधीनता है, आश्रयता है, इतने जो हम परतंत्र है। यह धरती, अंबर, जल, वायु, नक्षत्र, भूलोग, पर्जन्य और यह भूलोग के अधीन हमारा जीवन है। अन्न पर्जन्य लोग से पृष्ठ होता है, पर्जन्य को जीवन मिलता है परलोग से।

 सूर्य, चंद्र और अनेक नक्षत्र वहां से प्रकाश, जीवन, उर्जा ना आए तो पर्जन्य पैदा नहीं हो सकते। अंबर से वर्षा का वृष्टि का आना और पर्जन्यों का ऐसा प्रसन्न होना, इसके मूल में केवल धरती की पुकार, धरती की प्यास या धरती से उठने वाला बाष्पीकरण पर्जन्यों को आने के लिए बाध्य नहीं करता। पर्जन्यों को प्रेरणा मिलती है देवलोक से। एक कोई अज्ञात व्यवस्था है। उस व्यवस्था के अनुकूल यह पर्जन्य नियंत्रित होते हैं और यह अन्य को पृष्ठ करते है। सूर्य और किरणों के बिना अन्न में अन्नता नहीं आ सकता। अन्न में जो जीवन है, जो प्राण है, जो चेतना है वह ईश्वर से है। अन्न को ब्रम्ह कहा गया है। जिसमें जो ब्रम्हत्व, ईश्वरत्व है। पर्जन्य यानि बादल और यह वृष्टि पर्जन्य लोक और वहां भूलोक । इसलिए औषधियां, फल, फूल, मूल, कंद, विविध प्रकार की जैव प्रजाति , जीव जंतु, सकल जैव जगत, प्राकृतिक संतुलन यह सब पर्जन्य लोक से होता है। 

हमें लगता है कि अतिवृष्टि है, अनावृष्टि है, लेकिन ऐसा नहीं है। यह एक व्यवस्था है। उसके अनुसार नियमन, संतुलन होता है। कभी लगता है अतिवृष्टि अकारण, असमय है। लेकिन कुछ भी अकारण नहीं होता। प्रक़ति बड़ी अद्भूत व्यवस्था है और इस प्रकृति से ही हमारा मन, बुद्धि बनी है। उससे ही देह बने है। इसलिए प्रकृति में केवल पांच तत्व नहीं है, प्रकृति आठ तत्वों से बनी है। केवल धरती,अंबर, जल, आग, वायू से नहीं बनी है, इसमें तीन और मन, बुद्धि अहंकार। जब यह आठ तत्व एकत्रित होते है तो प्रक़ति होती है और हम प्रकृति के एक हिस़्से है। इसे संचालित करने वाली अज्ञात व्यवस्था है, लेकिन ध्यान रहे हमारा शरीर, मन, बुद्धि, अहंकार प्रकृति के वशीभूत है, लेकिन हम नहीं।  

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आत्म तत्व प्रकृति के अधीन नहीं हो सकता। आप स्वतंत्र है, शुद्ध् चैतन्य है। हम समय और काल से बंधे हुए है। हम बादल से परे की चीज है, बादल बहुत नीचे है आपसे। आप ईश्वर के अंश है। शास्त्र हमें वास्तविकता की ओर ले जाता है। शास्त्र हमारे सहायक बनते है। वाणी अभिव्यक्ति का अधूरा माध्यम है। हम जो अभिव्यक्त करना चाहते है, वह वाणी से नहीं होगा। कोई भाषा ऐसी नहीं है कि आपकी अभिव्यक्ति को पूर्णता प्रदान कर सकें। 

राम थे, राम है, राम रहेंगे

राम मंदिर पर बोलते हुए स्वामी अवधेशानंद गिरिजी महाराज ने कहा भाग्य है दशरथ के जिनके यहां राम आए और भाग्यशाली हम भी है कि लंबे संघर्ष के बाद भारत में भी राम आ गए। राम है, राम थे, राम रहेंगे, पर शौर्य के रूप में, एक उत्सव के रूप में, सकारात्मक संस्कार के रूप में राम है। जिसने राष्ट्र के खोये हुए गौरव को फिर से जगाया। हम संवैधानिक रूप से, किसी के धर्म, धर्म स्थल, आस्था को चोट नहीं पहुंचाना चाहते थे, इसलिए इतना समय लग गया। फिर से न्याय के माध्यम से राम हमारे घर घर आए। राम एक अद्भूत विचार है।

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