सूरत : सम्मान और भरोसे से दूर होता जा रहा शिक्षक : गायत्री शर्मा

राष्ट्र व युवा पीढ़ी के मध्य एक सेतु तुल्य होता है शिक्षक, जो अपने ज्ञान एवं समर्पण से दोनों को बांधे रखता है 

 सूरत : सम्मान और भरोसे से दूर होता जा रहा शिक्षक : गायत्री शर्मा

 गायत्री शर्मा (शिक्षिका) - शिक्षक दिवस विशेष

भारत में शिक्षक दिवस 5 सितंबर को डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन की जयंती के रूप में मनाया जाता है, जो भारत के प्रथम उप-राष्ट्रपति और दूसरे राष्ट्रपति थे। वे एक महान दार्शनिक और विद्वान थे। उन्हें 1954 में भारत के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार भारत रत्न से सम्मानित किया गया था और 1963 में उन्हें ब्रिटिश रॉयल ऑर्डर ऑफ मेरिट की मानद सदस्यता प्रदान की गई थी। शिक्षक दिवस पर सूरत के निजी विद्यालय में कार्यरत शिक्षिका गायत्री शर्मा ने शिक्षक, सरकार, छात्र एवं समाज पर प्रकाश डाला है। 

वर्तमान परिप्रेक्ष्य में यह कटु सत्य है कि समाज और राष्ट्र का निर्माणकर्ता अपने सम्मान व भरोसे से दूर धकेला जा रहा है। आज खास तौर पर मैं इसी मुद्दे पर मेरे विचार रखना चाहूंगी। आज सरकार शिक्षा नीति में नए-नए बदलाव ला रही है, नई-नई योजनाएं ला रही है, शिक्षा को बाल-केंद्रित बना दिया गया है, दंड विधान समाप्त कर दिया गया है। अब सोचनीय विषय यह है कि क्या इन बदलावों के बाद सरकार अपने लक्ष्य तक पहूँच पाई है? क्या वह एक स्वस्थ समाज  व राष्ट्र का निर्माण कर पा रही  है? जी नहीं, सरकार की इस मंजिल में कुछ हद तक स्वयं ने ही कांटे बो रखें हैं। आज के नन्हे बच्चे कल की युवा पीढ़ी होकर देश की कमान संभालेंगे, लेकिन क्या ये जिम्मेदारियों का बोझ  उठा पाएंगे? यह पीढ़ी तो अंदर से पूर्णतया खोखली है। अब सवाल उठता है कि इस खोखली पीढ़ी को मजबूती देने का काम कौन करेगा? यह जिम्मेदारी किसकी है?  यह कार्य सदियों से केवल एक ईमानदार और सच्चा शिक्षक ही करता आया है। जी हां, लेकिन जरूरत है शिक्षक पर वही अतीत वाला भरोसा जताया जाए जो पहले था। इस प्रकार का भरोसा जिस प्रकार गाड़ी में बैठने पर ड्राइवर पर होता है, प्लेन में बैठने पर पायलट पर होता है ,जहाज पर बैठने पर कैप्टन पर होता है और होटल में खाना खाने जाते समय रसोइये पर होता है।

 पहले छात्र अपने शिक्षकों से मिलते ही सहम जाते थे, डरते थे पर उनसे लगाव भी उतना ही था और उन्हें सम्मान भी देते थे। परंतु आज के छात्रों में संस्कार की कमी और अहंकार की अधिकता ने जगह बना ली है। मैं कठोर दंड विधान के पक्ष में नहीं हूं पर हां इतना जरूर चाहती हूं कि यदि छात्रों में  शिक्षक के प्रति सम्मान  चला गया तो आने वाली पीढ़ियां निश्चित ही उद्दंड हो जाएंगी। इस समस्या के समाधान में मैं सरकार के साथ-साथ अभिभावकों से निवेदन करना चाहूंगी कि शिक्षकों पर विश्वास रखें स्वयं के साथ-साथ अपने बच्चों को अध्यापकों का सम्मान करना सिखाएँ। उम्मीद रखें कि आपने  जिस पौधे को उन्हें सौंपा है तो वे आपको उसे एक विकसित वृक्ष के रूप में, एक नई पहचान के साथ देंगे। 

आज शिक्षकों को गैर-जिम्मेदार ठहरा दिया जाता है लेकिन ऐसा होता तो वह शिक्षक बनता ही नहीं। मैं मेरा यह मजबूत पक्ष जरूर रखना चाहती हूं कि एक शिक्षक की तिजोरी में भले ही पैसा ना मिले पर ज्ञान, मेहनत और धैर्य की पूंजी जरूर मिलती है। इन चीजों से वह कभी गरीब नहीं होता। एक जिम्मेदार शिक्षक कभी भी जाति या धर्म का निर्माण नहीं किया करता। वह अपने छात्रों को देश का सुनागरिक बनाकर राष्ट्र का भविष्य उज्जवल बनाया करता है। शिक्षक तो राष्ट्र व  युवा पीढ़ी के मध्य एक सेतु तुल्य है जो अपने ज्ञान एवं समर्पण से दोनों को बांधे रखता है। अब जरूरत है समाज शिक्षकों पर भरोसा बनाए, उनके पद का सम्मान करें और उनकी काबिलियत को स्वीकार करें। किसी एक खास दिन ही शिक्षक का सम्मान क्यों? क्या बाकी के दिनों में वह शिक्षक नहीं होता? इन सवालों  का जवाब मैं सरकार, अभिभावकों एवं छात्रों से जानना चाहूँगी। 

देश के सभी शिक्षकों को अपने शिक्षक होने पर गर्व होना चाहिए। हम एक सैनिक को हमेशा यह कहकर सम्मान देते हैं कि आप अपनी जान हथेली पर रखकर देश की सरहद पर खड़े होकर उसकी रक्षा करते हैं, लेकिन एक सैनिक भी शिक्षक को यह कहकर सम्मान देता है कि हम जिस  राष्ट्र की रक्षा करते हैं उस राष्ट्र को आप शिक्षक ही तो तैयार करते हैं। इसलिए एक अध्यापक होने का खुद पर हमेशा गर्व करें।

 

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