सूरत : टेक्सटाइल इंडस्ट्रीज में केमिकल के रो-मटिरियल कॉस्ट में बढ़ोतरी एवं श्रमिकों की कमी के बावजूद ऑल इज वेल!

कपड़ों की मांग बढ़ने से कई इंडस्ट्रीज में देखने को मिलती है तेजी

सूरत : टेक्सटाइल इंडस्ट्रीज में केमिकल के रो-मटिरियल कॉस्ट में बढ़ोतरी एवं श्रमिकों की कमी के बावजूद ऑल इज वेल!

कृषि के बाद सबसे अधिक रोजगार प्रदान करने वाली टेक्सटाइल इंडस्ट्रीज में तेजी का दौर शुरु होने से अनेक उद्योगों में इसके तेजी प्रभाव देखने को मिलता है। कई महीनों की मंदी के बाद अगस्त महीने से टेक्सटाइल इंडस्ट्रीज में तेजी का दौर शुरू होने से मशीनरी, कलर-केमिकल एवं मिलों में उपयोग होने वाली अनेक वस्तुओं के साथ ही वाहनों एवं लेबरों की मांग भी खूब होने लगती है। कपड़ों की मांग बढ़ने से वीविंग, नीटिंग, एम्ब्रोडरी, केमिकल एवं ट्रांसपोर्ट आदि उद्योगों में तेजी का दौर शुरु हो जाती है। पूरी औद्योगिक चेन चलने के बीच कलर-केमिकल के रो-मटिरियल में बढ़ोतरी के साथ ही डाइंग-प्रिंटिंग मिलों से लेकर कपड़ा मार्केट में काम करने वाले श्रमिकों की कमी के बावजूद सब कुछ बेहतर है। 

पॉजिटिव माहौल बना रहे इसके लिए वॉल्यूम बेस पर कर रहे हैं काम 
 
केमिकल उद्योग से जुड़े एक उद्यमी ने बताया कि कपड़ों की मांग होने से पॉलिएस्टर, कॉटन, विस्कोस आदि में उपयोग होने वाले कलर-केमिकल की मांग अच्छी है। आगामी 1 नवंबर को दीपावली एवं इसके बाद शादी की सीजन होने से टेक्सटाइल्स इंडस्टरीज में तेजी का दौर आगामी कुछ महीनों तक बना रहेगा। रॉ मैटेरियल के भाव को लेकर पूछे गये सवाल का जवाब देते हुए उन्होंने कहा कि हाल में तकरीबन 10 से 15 प्रतिशत रॉ मैटेरियल का कास्ट बढ़ा हुआ है। बावजूद इसके हम अपने ग्राहकों को उसी पुराने कीमत पर वॉल्यूम बेस पर काम कर रहे हैं, ताकि पिछले दिनों रही मंदी को सरवाइव कर सकें। हाल में पॉजिटिव माहौल बना रहे इसलिए किसी भी रॉ मैटेरियल कॉस्ट में कोई बढ़ोतरी नहीं की गई है। 

लेबर में हाल में तकरीबन 15 से 20 प्रतिशत की कमी : राजेंद्र उपाध्याय 

टेंपो डिलीवरी कांट्रेक्टर एसोसिएशन के प्रमुख राजेंद्र उपाध्याय ने बताया कि लेबरों की समस्या सिर्फ मिलों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि मिल से लेकर मार्केट में डिलीवरी तक की समस्या बनी हुई है। यानी कुल मिलाकर ताका एवं फीनिश माल दुकानों में पहुंचाने वालों श्रमिकों एवं मिल में काम काम करने वाले श्रमयोगियों की कमी बनी हुई है। कारण कि उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, उड़ीसा, मध्य प्रदेश आदि राज्यों से श्रमिक वर्ग बहुत कम संख्या में सूरत आ रहे हैं और जो आ भी रहे हैं वह मार्केट में ताका उठाने एवं मिलों में काम करने से गुरेज कर रहे हैं। ऐसे लेबरों की समस्या आगामी दिनों में विकट हो सकती है। हाल में तकरीबन 15 से 20 प्रतिशत की कमी श्रमिकों की देखी जा रही है, दीपावली के समय श्रमयोगियों की समस्या और बढ़ सकती है। हालांकि यह समस्या कोई नई नहीं है। सीजन के समय और गर्मियों में श्रमयोगियों की कमी प्रायः होती रहती है। ऐसी स्थिति में अधिक लेबर चार्ज देकर उसकी भरपाई की जाती है। दीपावली के समय श्रमयोगी छठ पूजा के लिए वतन चले जाते हैं, जिससे श्रमिकों की समस्या और गंभीर हो जाती है। मंदी के दौर में दीपावली के समय श्रमिकों की समस्या नहीं खलती थी, लेकिन इस वर्ष तेजी होने की स्थिति में दीपावली के बाद श्रमयोगियों की कमी खटकेगी। 

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