नई दिल्ली : इतिहास के पन्नों में 23 अगस्तः चांद की ऑर्बिट से ली गई धरती की पहली फोटो

23 अगस्त, 1991 को दुनिया की पहली पब्लिक वेबसाइट लॉन्च की गई थी, तबसे 23 अगस्त को ‘इंटरनॉट डे’ मनाया जाता है

नई दिल्ली : इतिहास के पन्नों में 23 अगस्तः चांद की ऑर्बिट से ली गई धरती की पहली फोटो

नई दिल्ली । देश-दुनिया के इतिहास में 23 अगस्त की तारीख तमाम अहम वजह से दर्ज है। यह तारीख अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में ऐतिहासिक उपलब्धि के तौर पर इतिहास के पन्नों में चस्पा है। दरअसल 1960 के दशक के शुरुआती सालों में अमेरिका ने अपोलो मिशन लॉन्च किया था। इस मिशन का उद्देश्य चांद पर मानव को पहुंचाना था। मगर उस समय वैज्ञानिकों के पास चांद की सतह की विस्तृत फोटो नहीं थी। अपोलो मिशन के लिए चांद की सतह की फोटो जरूरी थी, जिसके अध्ययन से यह पता लगाया जा सके कि कहां स्पेसक्राफ्ट की लैंडिंग कराई जा सकती है।

इसके लिए अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने 10 अगस्त, 1966 को ऑर्बिटर-1 लॉन्च किया। इस स्पेसक्राफ्ट में एक मेन इंजन, चार सोलर प्लेट और 68 किलोग्राम के कोडेक इमेजिंग सिस्टम को फिट किया गया था। इसका काम अलग-अलग कोण से चांद की सतह की फोटो लेना था। चांद की कक्षा में पहुंचने वाला यह दुनिया का पहला स्पेसक्राफ्ट था। स्पेसक्राफ्ट का लॉन्च सफल रहा और 14 अगस्त को स्पेसक्राफ्ट चांद की कक्षा में पहुंच गया। 23 अगस्त, 1966 को इस स्पेसक्राफ्ट ने धरती की भी एक फोटो भेजी। इसे चांद की ऑर्बिट से ली गई धरती की पहली फोटो कहा जाता है। 28 अगस्त तक स्पेसक्राफ्ट ने चांद की सतह की कुल 205 फोटो भेजी। 29 अक्टूबर को चांद की सतह से टकराकर ऑर्बिटर-1 नष्ट हो गया।

इसके अलावा इंटरनेट पर आज इतनी वेबसाइट हैं कि इनकी गिनती करना लगभग असंभव है, लेकिन आज से तीन दशक पहले तक स्थिति ऐसी नहीं थी। तब न सभी लोगों के पास इंटरनेट था न इतनी वेबसाइट थीं। इंटरनेट के इतिहास के लिए भी यह तारीख खास है। 23 अगस्त, 1991 को दुनिया की पहली पब्लिक वेबसाइट लॉन्च की गई थी। तबसे हर साल 23 अगस्त को ‘इंटरनॉट डे’ मनाया जाता है। इस वेबसाइट को टिम बर्नर्स ली ने डिजाइन किया था। टिम यूरोपियन काउंसिल फॉर न्यूक्लियर रिसर्च में सॉफ्टवेयर इंजीनियर थे। यहां काम करने के दौरान टिम ने देखा कि वैज्ञानिकों को आइडिया, डेटा और जानकारी शेयर करने में खासी परेशानी का सामना करना पड़ता है। अलग-अलग कम्प्यूटर पर डेटा रखा होता था, जिसे दूसरी जगह से एक्सेस करने के लिए दिक्कतें आती थीं।

वैज्ञानिक एक-दूसरे से बात करने के लिए टेलीफोन का इस्तेमाल करते थे, लेकिन शीतयुद्ध के दौरान टेलीफोन भी टेप किए जाने लगे। इसलिए टेलीफोन पर बात करना भी सुरक्षित नहीं था। इस समस्या से निपटने के लिए टिम दुनियाभर के सभी कम्प्यूटर को एक नेटवर्क के जरिए कनेक्ट करने के आइडिया पर काम करने लगे। 1989 तक टिम बेसिक कोडिंग का काम पूरा कर चुके थे। उन्होंने एचटीएमएल,एचटीटीपी और यूआरएल मॉडल बनाए जो आज भी किसी भी वेबसाइट के काम करने का बेसिक मॉडल है। टिम ने इसे वर्ल्ड वाइड वेब नाम दिया और इस पर एक वेब पेज बनाया। शुरुआत में इस वेब पेज को केवल यूरोपियन काउंसिल फॉर न्यूक्लियर रिसर्च के वैज्ञानिक ही एक्सेस कर सकते थे। 23 अगस्त 1991 को इस वेब पेज पर आम लोगों को भी एक्सेस दिया गया। इस तरह ये दुनिया का पहला वेब पेज था जिसे आम लोग भी अपने कम्प्यूटर पर ओपन कर सकते थे।

इस वेबसाइट पर वर्ल्ड वाइड वेब की समरी दी गई है। 1993 में यूरोपियन काउंसिल फॉर न्यूक्लियर रिसर्च ने घोषणा की कि सभी के लिए इंटरनेट सर्विस फ्री रहेगी। इसके बाद इसका इस्तेमाल तेजी से बढ़ने लगा। आज वर्ल्ड वाइड वेब पर 100 करोड़ से भी ज्यादा वेब पेज हैं।

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