बुविवि : देश का पहला हिंदी विभाग जहां 400 साल पुरानी पांडुलिपियां हैं उपलब्ध
हिंदी विभाग में बुन्देली बीथिका छात्रों को है समर्पित
झांसी,12 अप्रैल (हि.स.)। हाल ही में बुंदेलखंड विश्वविद्यालय को नैक मूल्यांकन में ए प्लस दिया गया है। इसके लिए विश्वविद्यालय में विभिन्न विभागों के द्वारा किए गए कार्य प्रमुख रूप से सम्मिलित हैं। इनमें से हिंदी विभाग की भी अहम भूमिका है। जहां विभाग के द्वारा स्वयं बुंदेली बीथिका एवं संग्रहालय तैयार किया गया है। इसमें 400 साल तक पुरानी हस्तलिखित पांडुलिपियां उपलब्ध हैं। ऐसा देश के अन्य किसी विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में देखने को नहीं मिलता। यही नहीं यह बीथिका छात्रों के लिए भी खुली हुई है। इसका पूरा श्रेय विभाग के विभागाध्यक्ष व कला संकाय के अधिष्ठाता व दीनदयाल उपाध्याय शोध पीठ के निदेशक प्रो. मुन्ना तिवारी को जाता है।
प्रो. तिवारी ने बताया कि आदिकाल के जगनिक से लेकर समकाल के रति भाव तिवारी कंज तक हिंदी व बुंदेली के साहित्यकार एवं उनके चित्र,भक्ति काल, रीतिकाल, छायावाद,समकालीन कविता, गद्य लेखन,साहित्यकार, बुंदेली साहित्यकार, उनसे संबंधित साहित्य व पांडुलिपियों यहां तक कि हंस का पूरा संकलन भी उपलब्ध है। सबसे पुरानी पांडुलिपि में 17वीं सदी के कवि पद्माकर की मूल कृति विभाग में रखी गई है। यही नहीं 111 वर्ष पुराने राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त, वृंदावन लाल वर्मा के सभी उपन्यास के मूल भी उपलब्ध हैं। इसके अतिरिक्त प्रख्यात साहित्यकार रामदेव शुक्ल, पद्मश्री विश्वनाथ तिवारी, बुंदेली मुहावरे,लोकोक्ति, शब्दकोश की पांडुलिपियां भी यहां उपलब्ध हैं। उन्होंने बताया कि बीएचयू के राधा कृष्णदास संग्रहालय में संभवत इतनी पांडुलिपियों हो सकती हैं। पर देश के किसी भी हिंदी विभाग के पास इतनी प्राचीन पांडुलिपियां उपलब्ध नहीं हैं।
खास तौर पर इन पांडुलिपियों को छात्रों के लिए सार्वजनिक किया जाना बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग को देश के अन्य विश्वविद्यालयों से अलग बनाता है। उन्होंने बताया कि बुंदेलखंड विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के पास एकमात्र बीथिका है। यही नहीं हिंदी विभाग में चितेरी लोककला की पूरी एक बाल बनाई गई है। साथ ही बुंदेली आधारित पुस्तकें उस पर लिखी गई है। हंस, कथा देश की पूरी मूल प्रतिलिपि भी यहां उपलब्ध है।