विश्व पर्यावरण दिवस : भारत को हरा-भरा करने को बदलनी होगी सोच : हरित ऋषि विजयपाल
विजयपाल ने अपना पहनावा ही हरा कर लिया है
मेरठ, 05 जून (हि.स.)। दुनिया के सबसे ज्यादा हरियाली वाले देशों में भारत की तरह कोई पौधरोपण अभियान नहीं चलता। वहां के लोग पेड़ काटने के लिए वन में नहीं जाते, जबकि भारत में वन उजाड़े जा रहे हैं। भारत को हरा-भरा करने के लिए लोगों की सोच को बदलना होगा। ये बातें पर्यावरण संरक्षण के लिए अपना जीवन समर्पित कर चुके हरित ऋषि विजयपाल बघेल ने हिन्दुस्थान समाचार से विशेष बातचीत में कही।
कक्षा पांच में पढ़ते समय कट रहे एक पेड़ के आंसुओं को महसूस किया
हाथरस के चंद्रगढ़ी गांव के मूल निवासी ग्रीन मैन और हरित ऋषि के नाम से प्रसिद्ध विजयपाल बघेल ने अपना पूरा जीवन पर्यावरण संरक्षण और हरियाली के नाम पर समर्पित कर दिया है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बाद अब उत्तराखंड में पर्यावरण संरक्षण की अलख जगा रहे हैं। विजयपाल ने अपना पहनावा ही हरा कर लिया है। हिन्दुस्थान समाचार से विशेष बातचीत में विजयपाल कहते हैं कि कक्षा पांच में पढ़ते समय उन्होंने कट रहे एक पेड़ के आंसुओं को महसूस किया था और इसके बाद हरियाली बचाने को अपने जीवन का ध्येय बना लिया। उनके दादा दाताराम बघेल गायत्री परिवार के संस्थापक आचार्य श्रीराम शर्मा की मित्र मंडली में थे। एक दिन साइकिल से दादा के साथ जाते समय उन्होंने तीन लोगों को पेड़ काटते हुए देखा। उस पेड़ से पानी जैसा द्रव्य निकल रहा था। पूछने पर दादा ने बताया कि काटे जाने के कारण वृक्ष रो रहा है। दर्द के कारण पेड़ के आंसू निकल रहे हैं। विजयपाल की पहल पर दादा ने उस वृक्ष को कटने से बचाया। इसके बाद तो उन्होंने हरियाली को बचाने का बीड़ा उठा लिया।
पूर्व राष्ट्रपति कलाम के कहने पर अपनाया हरा चोला
विजयपाल बताते हैं कि पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम उनके कार्यों से बहुत प्रसन्न हुए। कलाम के ही कहने पर उन्होंने हरे कपड़े पहनने शुरू किए। इसके बाद तो ग्रीन मैन के रूप में ही उनकी पहचान बन गई। अब तक 10 लाख से ज्यादा पेड़ों को कटने से बचा चुके विजय पाल को वर्ष 2000 में यूनेस्को के अमेरिका में पर्यावरण संरक्षण पर हुए कार्यक्रम में शामिल हुए। अमेरिकी के तत्कालीन उप राष्ट्रपति अल गोन ने उन्हें क्लामेट लीडर्स संगठन में शामिल किया और ग्रीन मैन ऑफ इंडिया नाम दिया।
विजय पाल अब तक करीब 10 लाख पेड़ों को कटने से बचा चुके हैं और देशभर में अनगिनत पौधे रोप चुके हैं। वर्ष 2000 में वे यूनेस्को के बुलावे पर यूएस में पर्यावरण संरक्षण पर आयोजित कार्यक्रम में शामिल हुए। इस दौरान तब के अमेरिकी उपराष्ट्रपति अल गोर ने उन्हें क्लाइमेट लीडर्स संगठन में शामिल कर ग्रीन मैन ऑफ इंडिया से नवाजा था।
प्रकृति को पूजने वाले भारत में काटे जा रहे पेड़
हरित ऋषि का कहना है कि पूरे विश्व में केवल भारत में ही वृक्षों, जल और प्रकृति के प्रत्येक अंग की पूजा की जाती है, लेकिन विडंबना है कि भारत में प्रकृति को नष्ट किया जा रहा है। दुनिया में केवल भारत में वृक्षारोपण अभियान चलाया जाता है, इसके बाद भी भारत से हरियाली गायब हो रही है। जबकि दुनिया के सबसे हरियाली वाले देशों में कोई वृक्षारोपण अभियान नहीं चलाया जाता। वहां प्रकृति के क्षेत्र में कोई मनुष्य अतिक्रमण नहीं करता। वन क्षेत्र में कोई पेड़ नहीं काटे जाते। उन्होंने बताया कि कनाड़ा में एक व्यक्ति पर 8000 वृक्षों का औसत है। जबकि भारत में प्रति व्यक्ति औसतन मात्र 28 वृक्ष है। पेड़ कटने से जीव-जन्तु खत्म हो रहे हैं।
जी-20 में भी हो रही इस बात पर चर्चा
विजयपाल बघेल ने बताया कि भारत में हो रहे जी-20 सम्मेलनों में भी वह भाग ले रहे हैं। इस दौरान पर्यावरण संरक्षण को लेकर भी चर्चा हो रही है। दुनिया के सभी देशों के नेताओं ने प्रकृति को नष्ट होने से बचाने पर बल दिया है। संयुक्त राष्ट्र संघ से किसी एक दिन अंतरराष्ट्रीय वृक्ष दिवस मनाने की मांग उठाई जा रही है। भारत सरकार के सामने भी यह मांग उठाई गई है। दुनिया के सभी देशों को प्रस्ताव भेजकर किसी एक दिन को अंतरराष्ट्रीय वृक्ष दिवस के रूप में घोषित करने का अनुरोध किया जा रहा है।
एक बच्चा 35 किलो कागज तक करता है प्रयोग
ग्रीनमैन बताते हैं कि एक बच्चा अपने पूरे शैक्षणिक जीवन में लगभग 35 किलोग्राम कागज का उपयोग करता है। इस कागज को बनाने के लिए एक वृक्ष का बलिदान हो जाता है। वृक्षों को बचाने के लिए प्रत्येक छात्र को अपने जन्मदिन पर वृक्षारोपण करना चाहिए। इससे भारत पूरी तरह से हरा-भरा हो जाएगा। स्कूलों के माध्यम से पर्यावरण संरक्षण की अलख जगाई जा रही है।
पेड़ों को लगाने की बजाय बचाने की जरूरत
उत्तर प्रदेश समेत पूरे देश में वृक्षारोपण के विश्व रिकॉर्ड बनाए गए हैं, लेकिन उनमें से अधिकांश पौधे रोपने के बाद नष्ट हो जाते हैं। पौधों को लगाने के बाद उन्हें जीवित रखने पर ध्यान नहीं दिया जाता। पेड़ों को लगाने की बजाय आज उन्हें बचाने की जरूरत है। प्रकृति को नष्ट करने में हमारी पीढ़ी सबसे ज्यादा जिम्मेदार है।
उत्तराखंड में तेजी से हो रहे प्रयास
चार धाम यात्रा में प्लास्टिक प्रदूषण को रोकने के लिए हरित ऋषि के सुझाव पर वहां के प्रशासन ने कई पहल की है। गंगोत्री और यमुनोत्री जाने वाले यात्रियों को प्लास्टिक बोतल, खाने-पीने के प्लास्टिक आइटम ले जाने पर 50 रुपए जमा करके स्टीकर लेना होगा। वापसी में बोतल और स्टीकर जमा करके अपने 50 रुपये वापस ले सकते हैं। इस पहल के सुखद परिणाम सामने आ रहे हैं। लोग अपना प्लास्टिक का सामान वापस लाकर कूड़ेदान में डाल रहे हैं। इसे अन्य स्थानों पर भी आजमाने की आवश्यकता है।