मेधा पाटकर को उपराज्यपाल सक्सेना के खिलाफ मानहानि मामले में याचिका वापस लेने की अनुमति

मेधा पाटकर को उपराज्यपाल सक्सेना के खिलाफ मानहानि मामले में याचिका वापस लेने की अनुमति

नयी दिल्ली, 25 अप्रैल (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर को दिल्ली के उपराज्यपाल वी के सक्सेना द्वारा दायर मानहानि मामले में दोषसिद्धि को बरकरार रखने के आदेश के खिलाफ उनकी याचिका वापस लेने की अनुमति दे दी।

सक्सेना ने 23 साल पहले यह मामला दायर किया था, जब वह गुजरात में एक एनजीओ के प्रमुख थे। पाटकर के वकील ने याचिका वापस लेने और नई याचिका दायर करने का अनुरोध किया।

न्यायमूर्ति शालिंदर कौर ने कहा, ‘‘प्रस्तुत किए गए तर्कों के मद्देनजर, याचिका को कानून के अनुसार स्वतंत्रता के साथ वापस लिया गया मानते हुए खारिज किया जाता है।’’

नर्मदा बचाओ आंदोलन की 70 वर्षीय नेता ने 2 अप्रैल को सत्र न्यायालय द्वारा पारित उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें मजिस्ट्रेट अदालत द्वारा मानहानि मामले में उनकी दोषसिद्धि को बरकरार रखा गया था। इसके बाद उन्हें दलीलों और सजा पर आदेश के लिए 8 अप्रैल को व्यक्तिगत रूप से प्रस्तुत होने का निर्देश दिया गया था।

गत आठ अप्रैल को सत्र न्यायालय ने उन्हें ‘अच्छे आचरण की परिवीक्षा’ पर रिहा कर दिया और उन पर एक लाख रुपये का जुर्माना जमा करने की शर्त लगाई।

परिवीक्षा, अपराधियों के साथ गैर-संस्थागत व्यवहार और सजा के सशर्त निलंबन की एक विधि है, जिसमें दोषी ठहराए जाने के बाद, अपराधी को जेल भेजने के बजाय अच्छे आचरण के ‘बांड’ पर रिहा कर दिया जाता है।

लेकिन परिवीक्षा की शर्तों का सम्मान नहीं करने पर पाटकर के खिलाफ गैर-जमानती वारंट जारी किया गया था।

शुक्रवार को पाटकर को गिरफ्तार कर सत्र न्यायालय में पेश किया गया, जिसके बाद न्यायाधीश ने उन्हें बांड प्रस्तुत करने और उनके वकील के आश्वासन के अनुसार मुआवजा राशि जमा करने की शर्त पर रिहा करने का मौखिक आदेश दिया।

मजिस्ट्रेटी अदालत ने एक जुलाई, 2024 को पाटकर को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 500 (मानहानि) के तहत दोषी पाते हुए पांच महीने के साधारण कारावास की सजा सुनाई थी और 10 लाख रुपये का जुर्माना लगाया।

सक्सेना ने 24 नवंबर, 2000 को नेशनल काउंसिल ऑफ सिविल लिबर्टीज के अध्यक्ष के रूप में अपने खिलाफ जारी एक मानहानिकारक प्रेस विज्ञप्ति के लिए पाटकर के खिलाफ मामला दायर किया था।

गत 24 मई, 2024 को, मजिस्ट्रेट अदालत ने माना कि पाटकर के बयानों में सक्सेना को ‘कायर’ कहा गया था और हवाला लेनदेन में उनकी संलिप्तता का आरोप लगाया गया था, जो न केवल अपने आप में मानहानिकारक था, बल्कि उनके बारे में ‘नकारात्मक धारणाओं को भड़काने के लिए तैयार किया गया था’। अदालत ने कहा था कि यह आरोप कि शिकायतकर्ता गुजरात के लोगों और उनके संसाधनों को विदेशी हितों के लिए ‘गिरवी’ रख रहे थे, उनकी ईमानदारी और सार्वजनिक सेवा पर सीधा हमला था।

गत दो अप्रैल को, एक अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश ने आदेश को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज कर दिया था और कहा था कि पाटकर को ‘सही तरीके से दोषी’ ठहराया गया है और मानहानि मामले में उनकी सजा के फैसले के खिलाफ अपील में ‘कोई दम नहीं’ था।

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