‘मेडिक्लेम पॉलिसी’ की राशि चिकित्सा व्यय के मुआवजे से नहीं काटी जा सकती: उच्च न्यायालय

‘मेडिक्लेम पॉलिसी’ की राशि चिकित्सा व्यय के मुआवजे से नहीं काटी जा सकती: उच्च न्यायालय

मुंबई, 31 मार्च (भाषा) बंबई उच्च न्यायालय ने कहा है कि ‘मेडिक्लेम पॉलिसी’ के तहत किसी व्यक्ति को प्राप्त राशि को मोटर वाहन अधिनियम के प्रावधानों के तहत चिकित्सा व्यय के लिए दावेदार को दी जाने वाली मुआवजे की राशि से नहीं काटा जा सकता है।

न्यायमूर्ति ए एस चंदुरकर, न्यायमूर्ति मिलिंद जाधव और न्यायमूर्ति गौरी गोडसे की पूर्ण पीठ ने 28 मार्च को अपने फैसले में कहा कि ‘मेडिक्लेम पॉलिसी’ के तहत प्राप्त राशि दावेदार द्वारा बीमा कंपनी के साथ किए गए करार के मद्देनजर प्राप्त की जाती है।

पीठ ने अपने फैसले में कहा, ‘‘हमारे विचार में ‘मेडिक्लेम पॉलिसी’ के तहत दावेदार द्वारा प्राप्त किसी भी राशि की कटौती स्वीकार्य नहीं होगी।’’

इस मुद्दे पर विभिन्न एकल और खंडपीठ द्वारा अलग-अलग विचार व्यक्त किये जाने के बाद इस पूर्ण पीठ को भेजा गया था।

पूर्ण पीठ ने सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पारित निर्णयों का उल्लेख करते हुए कहा कि मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण को न केवल उचित मुआवजा दिलाने का अधिकार है, बल्कि यह उसका कर्तव्य भी है।

इसने कहा कि बीमा के कारण प्राप्त राशि बीमाधारक द्वारा कंपनी के साथ किए गए अनुबंधात्मक दायित्वों के कारण है।

न्यायालय ने कहा कि प्रीमियम का भुगतान करने के बाद यह स्पष्ट था कि लाभकारी राशि या तो पॉलिसी की परिपक्वता पर या मृत्यु पर, चाहे मृत्यु का कोई भी कारण हो, दावेदार के हिस्से में आएगी।

न्यायालय ने कहा, ‘‘मृतक द्वारा किए गए दूरदर्शितापूर्ण और बुद्धिमानी भरे वित्तीय निवेश का लाभ अपराधी नहीं उठा सकता। यह कानून की स्थापित व्यवस्था है।’’

पूर्ण पीठ मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण के एक निर्णय के खिलाफ न्यू इंडिया एश्योरेंस कंपनी लिमिटेड द्वारा दायर अपील पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें चिकित्सा व्यय से अलग मौद्रिक मुआवजा देने का आदेश दिया गया था।

बीमा कंपनी ने दावा किया कि चिकित्सा व्यय भी ‘मेडिक्लेम पॉलिसी’ के हिस्से के रूप में प्राप्त बीमा राशि के अंतर्गत आते हैं। कंपनी ने कहा कि यह दोगुना मुआवजा होगा।

न्यायालय की सहायता के लिए न्यायमित्र नियुक्त किए गए अधिवक्ता गौतम अंखड ने तर्क दिया कि चिकित्सा व्यय से संबंधित मोटर वाहन अधिनियम के प्रावधान को दावेदार/पीड़ित के पक्ष में समझा जाना चाहिए क्योंकि यह एक कल्याणकारी कानून है।

उन्होंने आगे कहा कि बीमाकर्ता को कोई नुकसान नहीं हुआ है क्योंकि उसे बीमाधारक से प्रीमियम प्राप्त हुआ था।