वडोदरा : एक अनोखा संग्रहालय, जिसमें 1962 से लेकर अब तक के रसोई के बर्तन और बिजली के उपकरण उपलब्ध
अगर कोई चाहे तो संग्रहालय को पुराने बर्तन भी कर सकता है दान
वडोदरा के एम.एस. विश्वविद्यालय में एक अनोखा संग्रहालय खोला गया है। इसमें 1962 से लेकर अब तक के रसोई के बर्तन और बिजली के उपकरण रखे हुए हैं। जिसमें पत्थर, तांबा, कांस्य, एल्युमिनियम, जर्मन सिल्वर, स्टेनलेस स्टील और नॉन-स्टिक बर्तन प्रदर्शित किए गए हैं। 60 के दशक में जब कॉफी मेकर, नॉन-स्टिक कुकवेयर, टोस्टर और राइस मेकर जैसे उपकरण भारतीय घरों में शायद ही कभी पाए जाते थे। तब एम.एस. विश्वविद्यालय के गृह विज्ञान संकाय ने छात्रों के लिए शुरु किये गये घरेलू उपकरणों के एक भाग के रूप में संकाय के लिए इन उपकरणों और बर्तनों को अमेरिका से आयात किया था। इसके लिए एक संग्रहालय बनाया गया है, जिसे लोग देख सकते हैं। इसके अलावा, अगर कोई चाहे तो संग्रहालय को पुराने बर्तन भी दान कर सकता है।
1962 से चल रहा घरेलू उपकरण पाठ्यक्रम
1962 में शुरू हुआ घरेलू उपकरण पाठ्यक्रम आज भी विद्यालय में चल रहा है। संकाय में इस पाठ्यक्रम के लिए वर्ष दर वर्ष जो बर्तन और उपकरण मंगाए गए थे, उनके लिए अब एक संग्रहालय बनाया गया है। इस अनूठे संग्रहालय का आज संकाय में उद्घाटन किया गया।
पाषाण युग से लेकर आज तक के औजार
इस संग्रहालय को प्रोफेसर डॉ. सरजू पटेल के मार्गदर्शन में संकाय के इंटीरियर डिजाइनिंग के छात्र गौतम सुथार द्वारा डिजाइन किया गया है। यह संग्रहालय रसोईघर के इतिहास को जीवंत कर देता है। जिसमें पाषाण युग से लेकर आज तक के सभी प्रकार के बर्तन और इलेक्ट्रॉनिक उपकरण प्रस्तुत किए गए हैं।
रसोई के बर्तनों का इतिहास हजारों साल पुराना है
डॉ. सरजू पटेल कहते हैं, 'रसोई के बर्तनों का इतिहास आज का नहीं बल्कि हजारों साल पुराना है। पाठ्यक्रम के एक भाग के रूप में, हम लगातार 70, 80 और 90 के दशक में बाजार में आने वाले बर्तनों और नवीनतम उपकरणों को पेश कर रहे थे, और अब हमने उन्हें व्यवस्थित रूप से प्रदर्शित किया है। यहां रखी गई कॉफी मेकर की शुरुआत 60 के दशक में अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ आयोवा के प्रोफेसरों की मदद से स्टूडेंट एक्सचेंज प्रोग्राम के तहत की गई थी। एक्सचेंज प्रोग्राम के तहत यूनिवर्सिटी ऑफ आयोवा के पांच प्रोफेसर और छात्र होम में दो साल के लिए विज्ञान संकाय में आये थे। उनसे एक कॉफी मेकर, एक वफ़ल मेकर, स्टीम कुकर जैसे उपकरण मंगाये थे। यह पाठ्यक्रम उनकी मदद से 1962 में शुरू किया गया था।