सूरत : भारत की परमाणु सहेली: जल, ऊर्जा और रोजगार आत्मनिर्भरता की नई पहल

भारत में गिरते भूजल स्तर की गंभीरता, राजस्थान का दौसा: जल संकट का केंद्र

सूरत : भारत की परमाणु सहेली: जल, ऊर्जा और रोजगार आत्मनिर्भरता की नई पहल

सूरत : भारत की "परमाणु सहेली" के नाम से प्रसिद्ध डॉ. नीलम गोयल ने आज सूरत में आयोजित एक प्रेस कॉन्फ़्रेंस के माध्यम से अपनी नई पहल का शुभारंभ किया। जल, ऊर्जा, और रोजगार आत्मनिर्भरता के पथ पर ले जाने के उद्देश्य से डॉ. नीलम गोयल और उनकी टीम ने राजस्थान के दौसा जिले में तीन गाँवों के क्लस्टर में 300 वर्षाजल पोंड का निर्माण सफलतापूर्वक पूरा किया।

डॉ. नीलम ने बताया कि पिछले दशक में भारत का 60% भूजल स्तर नीचे चला गया है। जल शक्ति मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार, राजस्थान (150%), पंजाब (157%), हरियाणा (136%) जैसे राज्यों में भूजल का दोहन 100% से अधिक है। दौसा जैसे जिलों में यह समस्या अत्यंत विकराल है, जहाँ भूजल दोहन दर 244% तक पहुँच चुकी है, और सिंचाई इसका मुख्य कारण है।

दौसा में हर साल करीब 70 लाख लीटर पानी प्रति हेक्टेयर बरसता है, लेकिन इसमें से 20% पानी व्यर्थ बह जाता है। अगर किसान अपनी ज़मीन के 5% हिस्से में 15 फीट गहरे फार्म पोंड का निर्माण करते हैं, तो यह पानी संरक्षित हो सकता है। इससे न केवल सिंचाई जल-आपूर्ति का स्थायित्व बढ़ेगा, बल्कि भूजल स्तर को रिचार्ज करने में मदद मिलेगी।

डॉ. नीलम और उनके तकनीकी सलाहकार विप्र गोयल ने दौसा जिले में तीन गाँवों के क्लस्टर को "जल-ऊर्जा-रोजगार पर्याप्त मॉडल ग्राम पंचायत" के रूप में विकसित करने की योजना बनाई है। इस मॉडल से न केवल सिंचाई के लिए पर्याप्त जल और ऊर्जा उपलब्ध होगी, बल्कि स्थानीय स्तर पर रोजगार के अवसर भी पैदा होंगे।

परमाणु सहेली की कार्यनीतियाँ इस प्रकार है। खेतों में बारोमासी पानी की व्यवस्था, वर्षाजल संरक्षण के लिए फार्म पोंड निर्माण। खेतों में पानी पहुंचाने हेतु सौर पंपों की स्थापना। स्थानीय उद्योगों का विकास के लिए फ़ूड प्रोसेसिंग संयंत्र, दूध प्रसंस्करण संयंत्र, और बायोगैस संयंत्र की स्थापना। इन उद्योगों से स्थानीय युवाओं के लिए रोजगार सुनिश्चित होगा।

किसानों की आय में वृद्धि के लिए  प्रत्येक किसान परिवार की वार्षिक आय में 5-15 लाख रुपये तक का इजाफा। स्वास्थ्य और स्वच्छता पर ध्यान दिया जाए तो बढ़ती आय से किसान परिवार अपनी स्वास्थ्य और स्वच्छता व्यवस्थाओं में सुधार कर पाएंगे।

डॉ. नीलम ने भूजल स्तर के गिरने से होने वाली समस्याओं पर प्रकाश डाला। पीने के पानी की कमी। वनस्पति और हरियाली में कमी। भूजल में आर्सेनिक और फ्लोराइड की बढ़ती मात्रा। खारा होता भूजल।

यह मॉडल न केवल राजस्थान और गुजरात, बल्कि पूरे भारत के किसानों के लिए प्रेरणा बनेगा। खेतों में फार्म पोंड और सतत सिंचाई प्रणाली जैसे उपाय भारत को जल आत्मनिर्भरता की ओर ले जाएंगे।

स्थानीय उद्योगों में युवाओं और वयस्कों के लिए रोजगार के अवसर। किसानों की आय में वृद्धि से स्थानीय अर्थव्यवस्था को गति। व्यवसायिक फसल उत्पादन और उचित मूल्य पर बिक्री से किसान आत्मनिर्भर बनेंगे।

डॉ. नीलम गोयल ने मीडिया और समाज से अपील की है कि वे जल संरक्षण और सिंचाई में सुधार के प्रयासों का समर्थन करें। उनके अनुसार, यह पहल भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में आत्मनिर्भरता और विकास का नया अध्याय लिखेगी।

डॉ. नीलम ने कहा, "हमारा लक्ष्य केवल पानी और ऊर्जा की समस्याओं का समाधान करना नहीं है, बल्कि ग्रामीण भारत में रामराज्य की स्थापना में योगदान देना है। यह पहल हर परिवार को समृद्ध और स्वावलंबी बनाएगी।"

यह पहल न केवल राजस्थान बल्कि पूरे भारत में जल, ऊर्जा, और रोजगार के लिए एक नई दिशा प्रदान करेगी।

Tags: Surat