40 साल बाद, भोपाल की यूनियन कार्बाइड कारखाने से जहरीला कचरा निपटान के लिए ले जाया गया

40 साल बाद, भोपाल की यूनियन कार्बाइड कारखाने से जहरीला कचरा निपटान के लिए ले जाया गया

धार (मध्य प्रदेश), दो जनवरी (भाषा) भोपाल गैस त्रासदी के चालीस साल बाद, बंद हो चुके यूनियन कार्बाइड कारखाने से 377 टन खतरनाक कचरे को निपटान के लिए धार जिले में स्थित पीथमपुर की एक इकाई में ले जाया गया है। अधिकारियों ने बृहस्पतिवार को यह जानकारी दी।

बुधवार रात करीब नौ बजे जहरीले कचरे को 12 सीलबंद कंटेनर ट्रकों में 'ग्रीन कॉरिडोर' के जरिए मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से 250 किलोमीटर दूर धार जिले के पीथमपुर औद्योगिक क्षेत्र में ले जाया गया।

धार के पुलिस अधीक्षक मनोज सिंह ने पीटीआई-भाषा को फोन पर बताया कि कड़ी सुरक्षा के बीच बृहस्पतिवार सुबह करीब 4.30 बजे वाहन पीथमपुर स्थित एक फैक्ट्री पहुंचे, जहां कचरे का निपटान किया जाएगा।

उन्होंने बताया कि ट्रक फिलहाल पीथमपुर स्थित फैक्ट्री परिसर में खड़े हैं।

भोपाल गैस त्रासदी राहत एवं पुनर्वास विभाग के निदेशक स्वतंत्र कुमार सिंह ने बुधवार को बताया, "धार जिले के पीथमपुर औद्योगिक क्षेत्र तक वाहनों की करीब सात घंटे की यात्रा के लिए ग्रीन कॉरिडोर बनाया गया था।"

उन्होंने बताया कि रविवार से करीब 100 लोगों ने 30 मिनट की शिफ्ट में काम करके कचरे को पैक कर ट्रकों में रखा।

सिंह ने बताया, "उनकी स्वास्थ्य जांच की गई और हर 30 मिनट में उन्हें आराम दिया गया।"

दो और तीन दिसंबर, 1984 की रात को यूनियन कार्बाइड कीटनाशक कारखाने से अत्यधिक जहरीली मिथाइल आइसोसाइनेट (एमआईसी) गैस का रिसाव हुआ था, जिसमें कम से कम 5,479 लोगों की मौत हो गई थी और हजारों लोग गंभीर और दीर्घकालिक स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहे हैं।

मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने तीन दिसंबर को उच्चतम न्यायालय के निर्देशों के बावजूद भोपाल में यूनियन कार्बाइड स्थल को खाली न करने के लिए अधिकारियों को फटकार लगाई थी। उच्च न्यायालय ने कचरे को हटाने के लिए चार सप्ताह की समयसीमा तय करते हुए कहा कि गैस त्रासदी के 40 साल बाद भी अधिकारी "निष्क्रियता की स्थिति" में हैं।

उच्च न्यायालय की पीठ ने सरकार को चेताया था कि अगर उसके निर्देश का पालन नहीं किया गया तो उसके खिलाफ अवमानना ​​की कार्यवाही की जाएगी।

सिंह ने कहा, "अगर सब कुछ ठीक पाया गया तो कचरा तीन महीने के भीतर जला दिया जाएगा। अन्यथा, इसमें नौ महीने भी लग सकते हैं।"

उन्होंने कहा कि शुरुआत में कुछ कचरे को पीथमपुर में निपटान इकाई में जलाया जाएगा और अवशेष (राख) की जांच की जाएगी ताकि पता लगाया जा सके कि कोई हानिकारक तत्व बचा है या नहीं।

उन्होंने कहा कि भस्मक (भट्ठी) से निकलने वाला धुआं विशेष चार-परत फिल्टर से होकर गुजरेगा ताकि आसपास की हवा प्रदूषित न हो। एक बार जब यह पुष्टि हो जाती है कि जहरीले तत्वों का कोई निशान नहीं बचा है, तो राख को दो-परत वाली झिल्ली से ढक दिया जाएगा और यह सुनिश्चित करने के लिए इसे गहरे गड्ढे में डाल दिया जाएगा कि यह किसी भी तरह से मिट्टी और पानी के संपर्क में न आए।

सिंह ने कहा कि केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारियों की देखरेख में विशेषज्ञों की एक टीम इस प्रक्रिया को अंजाम देगी।

कुछ स्थानीय कार्यकर्ताओं ने दावा किया है कि 2015 में पीथमपुर में परीक्षण के तौर पर 10 टन यूनियन कार्बाइड कचरे को जलाया गया था, जिसके बाद आस-पास के गांवों की मिट्टी, भूमिगत जल और जल स्रोत प्रदूषित हो गए।

सिंह ने इस दावे को खारिज करते हुए कहा कि पीथमपुर में कचरे के निपटान का फैसला 2015 के परीक्षण की रिपोर्ट और सभी आपत्तियों की जांच के बाद ही लिया गया है। उन्होंने कहा कि चिंता की कोई बात नहीं है।

करीब 1.75 लाख की आबादी वाले शहर पीथमपुर में यूनियन कार्बाइड कचरे के निपटान के विरोध में रविवार को बड़ी संख्या में लोगों ने विरोध मार्च निकाला।