सूरत : ध्यान से सत्य और परमात्मा की प्राप्ति : संत सुंधाशुजी महाराज
सत्य रूपी दिए को अपने अंदर जागृत करें जिससे अंधकार रूपी अज्ञान दूर हो सके
विश्व जागृति मिशन के मुखिया एवं लोक विख्यात संत सुधांसुजी महाराज ने ध्यान पर प्रकाश डालते हुए कहा कि सभी मनुष्य सत्य को जानना चाहते हैं। सत्य को पाना चाहते हैं पर सत्य के बारे में कुछ नहीं जानते। हमें पता ही नहीं सत्य क्या है और उस तक कैसे पहुंचा जाता है? भ्रम में जीते हैं कि लक्ष्य ही सत्य है परंतु परमात्मा कोई लक्ष्य या निष्कर्ष नहीं अपितु परमात्मा ही सत्य है जिसे हम अनुभव करते हैं तथा जीवन में उतारते हैं। कोई भी विचार, कल्पना हमें सत्य तक नहीं ले जा सकता। कोई शास्त्र, कोई ग्रंथ नहीं, उसके लिए तो स्वयं के भीतर उतरना पड़ता है। शरीर में स्थित मन रूपी मंदिर को साधन बनाकर ईश्वर की तरफ चलना होता है। केन्द्र तक पहुंचना पड़ता है। भीतर उतरकर पता चलता है कि सत्य तो हमारे भीतर है। हमारे केन्द्र में है। जिस दिन इसका बोध होगा उस दिन हम स्वयं सत्य का अनुभव करने लगेंगे।
महाराजजी ने कहा कि इस यात्रा के लिए स्वयं पात्र बनना पड़ेगा। पात्रता आएगी समर्पण से। संघर्ष कभी अस्तित्व से परिचय नहीं होने देगा। सत्य के लिए अपने भीतर समर्पण को जागृत करना होगा। बाहर से अच्छे शब्द कहने से समर्पण नहीं होता। पैर छूने से समर्पण नहीं होता। बल्कि जैसे नदी की धारा में बहते चले जाते हैं बिना संघर्ष किए उसी प्रकार परमेश्वर की ओर बहते चले जाएं। बस आनंद के साथ चलते चले जाएं, ध्यान की धारा में बहते चले जाएं।
संत सुधांशुजी महाराज ने कहा कि ध्यान द्वारा अपने केन्द्र, अपनी रस धारा, अमृत केन्द्र तक पहुंच सकते हैं। जब समर्पण आने लगता है तब प्रकृति भी हमारे साथ हो जाती है, श्रद्धा आने लगती है। सत्य रूपी दिए को अपने अंदर जागृत करें जिससे अंधकार रूपी अज्ञान दूर हो सके। ध्यान में बैठने का लगातार अभ्यास करना पड़ेगा, तब कुछ झलक परमात्मा की दिखेगी। ध्यान में आवश्यक है, महसूस करके क्रिया को करना। भावों में बहते हुए आगे बढ़ना। अपनी समस्त ऊर्जा को केन्द्रित कीजिए। संवेदनशीलता को बढ़ाना है। प्रकृति को अनुभव करना है। बस अपने विचारों में खोये रहते हैं, यदि हम प्रकृति को महसूस नहीं कर पा रहे तो ईश्वर को, उसकी ऊर्जा को कैसे महसूस करेंगे? परमात्मा को देखने वाली आंखें हमने मूंद रखी हैं। नेत्र खोलिए, चारों ओर की घटनाएं महसूस कीजिए। महसूस कीजिए ब्रह्माण्ड को। ऐसी अनुभूति करिए कि ईश्वरीय शक्ति आपको मिल रही है। वह शक्ति आपके भीतर उतर रही है और आपका कल्याण कर रही है। ऐसे भाव लाने से आपको केन्द्र से शक्ति मिलने लग जाएगी। इस प्रकार पूर्ण रूप से तैयार होकर, आप एक-एक कदम आगे बढ़ने लग जाते हैं। अध्यात्म के क्षेत्र में छलांग लग जाती है। शांति आ जाती है। ऐसा व्यक्ति बहुत ही सहज भाव से जीवन जीना शुरू कर देता है।