दुष्कर्म मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा दो लोगों को दी गई जमानत उच्चतम न्यायालय ने की रद्द

दुष्कर्म मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा दो लोगों को दी गई जमानत उच्चतम न्यायालय ने की रद्द

नयी दिल्ली, 17 दिसंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने 14 वर्षीय लड़की का अपहरण कर उसके साथ सामूहिक दुष्कर्म करने के दो आरोपियों को जमानत देने के इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश को खारिज कर दिया।

न्यायमूर्ति बेला एम. त्रिवेदी और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने आरोपी खर्गेश उर्फ ​​गोलू और करण को 30 दिसंबर तक अधीनस्थ अदालत के समक्ष आत्मसमर्पण करने को कहा।

इस प्रक्रिया में पीठ ने अधिवक्ता प्रणव सचदेवा के माध्यम से पीड़िता की याचिका को स्वीकार कर लिया, जिसमें इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा दी गई जमानत को रद्द करने का अनुरोध किया गया था।

इस तथ्य पर कड़ी आपत्ति जताते हुए कि न तो आरोपी, न ही सरकारी वकील और न ही इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने नाबालिग पीड़िता को जमानत की सुनवाई के बारे में सूचित किया, पीठ ने कहा, “इस मामले में प्रतिवादियों के कहने पर दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 439(1ए) और एससी/एसटी अधिनियम की धारा 15ए(3) में निहित उक्त वैधानिक प्रावधानों का घोर उल्लंघन किया गया है।”

पीठ ने 13 दिसंबर को अपने आदेश में कहा कि उच्च न्यायालय ने आक्षेपित आदेश में दोनों अधिनियमों की अनिवार्य आवश्यकता पर भी विचार नहीं किया तथा प्रतिवादियों को बिना कोई ठोस कारण बताए, बहुत ही लापरवाही और सतही तरीके से जमानत दे दी, जबकि प्रथम दृष्टया वे बहुत गंभीर अपराध में संलिप्त थे।

सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि जमानत आदेश दंड प्रक्रिया संहिता और अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के अनिवार्य प्रावधानों की पूर्ण अवहेलना है तथा इसे खारिज कर दिया।

न्यायालय ने कहा, "ऐसा प्रतीत होता है कि संबंधित प्रतिवादियों ने वर्तमान अपीलकर्ता को उच्च न्यायालय के समक्ष उनके द्वारा दायर जमानत कार्यवाही में पक्षकार के रूप में शामिल नहीं किया था और संबंधित सरकारी अभियोजक ने भी अपीलकर्ता पीड़ित को उक्त कार्यवाही के बारे में सूचित नहीं किया था।"

कानूनी प्रावधानों का हवाला देते हुए पीठ ने कहा कि दुष्कर्म और सामूहिक दुष्कर्म से संबंधित मामलों में आरोपियों की जमानत के लिए आवेदन की सुनवाई के समय पीड़िता या उसके द्वारा अधिकृत किसी व्यक्ति की उपस्थिति अनिवार्य है।

पीठ ने कहा, "इसी प्रकार राज्य सरकार के विशेष लोक अभियोजक के लिए भी यह अनिवार्य है कि वह पीड़िता को अदालती कार्यवाही के बारे में सूचित करे।"

याचिका के अनुसार पीड़िता आरोपी व्यक्तियों को लंबे समय से जानती थी और 27 जुलाई, 2021 को उनमें से एक करण ने उसे पार्क में जाने के बहाने एक मंदिर के पास मिलने के लिए मजबूर किया।

आरोपी पीड़िता के पड़ोसी थे।

याचिका में कहा गया है कि बाद में तीन अन्य आरोपी एक कार में आए और उसे एक फ्लैट में ले गए, जहां उन्होंने बारी-बारी से उसके साथ दुष्कर्म किया और जब उसने शोर मचाने की कोशिश की तो उसके साथ मारपीट की।