बार-बार चुनाव से विकास कार्य और आम जनजीवन बाधित होता है: विधेयक
नयी दिल्ली, 14 दिसंबर (भाषा) देश में लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव साथ-साथ कराने के मकसद से लाए जा रहे विधेयक में कहा गया है कि विभिन्न कारणों से एक साथ चुनाव कराना जरूरी है क्योंकि चुनावों में बहुत खर्च होता है और समय भी लगता है।
‘एक देश, एक चुनाव’ से संबंधित संविधान (129वां संशोधन) विधेयक और केंद्र शासित प्रदेश कानून (संशोधन) विधेयक आगामी सोमवार को लोकसभा में पेश किए जाने के लिए सूचीबद्ध हैं।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने लोकसभा तथा राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने की अवधारणा के क्रियान्वयन के लिए संवैधानिक संशोधन विधेयक को 12 दिसंबर को मंजूरी दी थी।
‘संविधान (129वां) संशोधन विधेयक, 2024’ में इस बात को रेखांकित किया गया है कि बार-बार चुनाव आचार संहिता लगाए जाने से विकास कार्यक्रमों में ठहराव पैदा हो जाता है तथा सरकारी सेवाओं के कामकाज पर भी असर पड़ता है और चुनावी ड्यूटी के लिए लंबे समय तक कर्मचारियों तैनाती के चलते सेवाओं में उनकी भागीदारी कम हो जाती है।
इस विधेयक में एक नया अनुच्छेद 82ए सम्मिलित करने का प्रस्ताव है जिसके मुताबिक, लोकसभा और सभी विधानसभाओं के लिए एक साथ चुनाव और अनुच्छेद 83 (संसद के सदनों की अवधि), अनुच्छेद 172 (राज्य विधानमंडलों की अवधि) और अनुच्छेद 327 में (विधानमंडलों के चुनाव के संबंध में प्रावधान करने की संसद की शक्ति) में संशोधन किया जाना है।
विधेयक में यह भी प्रावधान है कि इसके अधिनियमित होने पर आम चुनाव के बाद लोकसभा की पहली बैठक की तारीख पर राष्ट्रपति द्वारा एक अधिसूचना जारी की जाएगी और अधिसूचना की उस तारीख को नियत तिथि कहा जाएगा।
लोकसभा का कार्यकाल उस नियत तिथि से पांच वर्ष का होगा।
नियत तिथि के बाद और लोकसभा के पूर्ण कार्यकाल की समाप्ति से पहले विधान सभाओं के चुनावों द्वारा गठित सभी राज्य विधानसभाओं का कार्यकाल लोकसभा के पूर्ण कार्यकाल के खत्म होने पर समाप्त हो जाएगा।
इसके अनुसार, ‘‘इसके बाद, लोकसभा और विधानसभाओं के सभी आम चुनाव एक साथ कराए जाएंगे।’’
विधेयक में कहा गया है कि लोकसभा या विधानसभा के पूर्ण कार्यकाल से पहले भंग होने की स्थिति में वर्तमान कार्यकाल की शेष अवधि के लिए ही चुनाव होगा।
विधेयक में बताया गया कि लोकसभा और सभी राज्य विधान सभाओं के आम चुनाव वर्ष 1951-52, 1957, 1962 और 1967 में एक साथ हुए थे, हालांकि, 1968 और 1969 में कुछ विधान सभाओं के समय से पहले भंग होने के कारण एक साथ चुनाव का क्रम टूट गया।