अफ्रीका का बदतर होता खाद्यान्न संकट, यह कृषि क्षेत्र में क्रांति का समय
(विलियम जी मोसले, मैकलेस्टर कॉलेज)
मिनेसोटा (अमेरिका), नौ दिसंबर (द कन्वरसेशन) अफ्रीका में भूख की दर अस्वीकार्य रूप से ऊंची है और यह बदतर होती जा रही है।
संयुक्त राष्ट्र की विश्व में खाद्य सुरक्षा और पोषण स्थिति-2024 की रिपोर्ट से पता चलता है कि अफ्रीका में खाद्य असुरक्षा विश्व के किसी भी क्षेत्र की तुलना में सर्वाधिक है। अल्पपोषण की व्यापकता 20.4 प्रतिशत (लगभग 29.84 करोड़ अफ्रीकी) है जो वैश्विक औसत की दोगुनी है। वर्ष 2015 के बाद से यह आंकड़ा लगातार बढ़ा है।
जलवायु परिवर्तन और संघर्ष भी इस समस्या के कारक हैं। लेकिन मेरी राय में इस चुनौती के मूल में कुछ और मौलिक बातें निहित हैं: उत्तर-औपनिवेशिक काल के बाद यह मार्गदर्शन करने के लिए अपनाई गई विचारधारा और योजनाएं कि अफ्रीका कैसे खाद्यान्न का उत्पादन करेगा और कुपोषण कम करने का प्रयास करेगा।
हालांकि, पूरे महाद्वीप में खाद्य असुरक्षा की दरें अलग-अलग हैं और मध्य और पश्चिम अफ्रीका में ये बदतर हैं, यह एक क्षेत्र-व्यापी चुनौती है।
मैं अफ्रीकी खाद्य सुरक्षा और कृषि का विशेषज्ञ हूं। एक नई किताब ‘डिकोलोनाइजिंग अफ्रीकन एग्रीकल्चर: फूड सिक्योरिटी, एग्रोइकोलॉजी एंड द नीड फॉर रेडिकल ट्रांसफॉर्मेशन’ में मैंने तर्क दिया है कि अफ्रीका के बेहतर भरण-पोषण के लिए निर्णय लेने वालों और दान दाताओं को ये करना चाहिए :-
-खाद्य असुरक्षा का समाधान करने के उपाय के रूप में वाणिज्यिक कृषि उत्पादन पर कम ध्यान दें।
-यह सोचना बंद करें कि कृषि विकास केवल खेती के व्यावसायीकरण और अन्य उद्योगों को समर्थन देने के बारे में है।
-एक कृषि-पारिस्थितिकी दृष्टिकोण अपनाएं जो उर्वरकों जैसी बाहर की कम चीजों के साथ अधिक विकास करने के लिए किसानों के ज्ञान और प्राकृतिक पारिस्थितिकी प्रक्रियाओं का उपयोग करता है।
विभिन्न संदर्भों और देशों में पारंपरिक दृष्टिकोण विफल रहे हैं। मैं देखता हूं कि सरकारें कृषि के बारे में कैसे सोचती हैं और इसमें क्या गलत हो रहा है - और अफ्रीका के भूख के संकट से निपटने के लिए कहां ध्यान केंद्रित करने की जरूरत है।
उत्पादन कृषि पर ध्यान केंद्रित करें
कृषि से संबंधित कई मूल विचार औपनिवेशिक युग के हैं। आधुनिक फसल विज्ञान, या कृषि विज्ञान, औपनिवेशिक हितों की पूर्ति के लिए यूरोप में विकसित किया गया था। लक्ष्य उन फसलों का उत्पादन करना था जो यूरोपीय अर्थव्यवस्थाओं को लाभ पहुंचाएं। हालांकि, इस दृष्टिकोण की आलोचना की गई है, फिर भी यह आज तक कृषि को बहुत अधिक प्रभावित करता है। विचार यह है कि अधिक खाद्यान्न पैदा करने से खाद्य असुरक्षा का समाधान हो जाएगा।
खाद्य सुरक्षा के छह आयाम हैं। खाद्य उत्पादन में बढ़ोतरी इन आयामों में से जिस एक से निपट सकती है वह-भोजन की उपलब्धता है। लेकिन यह अक्सर अन्य पांच आयाम से निपटने में विफल रहती है जिसमें पहुंच, स्थिरता, उपयोग, टिकाऊपन और एजेंसी शामिल हैं।
खाद्य असुरक्षा हमेशा भोजन की पूर्ण कमी के बारे में नहीं है, बल्कि लोगों की उस उस खाद्यान्न को प्राप्त करने में असमर्थता के बारे में भी है जो वहां मौजूद है।
अस्थिर कीमतें एक कारण हो सकती हैं, या फिर लोगों के पास खाना पकाने का ईंधन नहीं होगा। कृषि पद्धतियां गैर टिकाऊ हो सकती हैं। ऐसा अक्सर तब होता है जब किसानों का इस बात पर सीमित नियंत्रण होता है कि वे कैसे और किसी चीज की खेती करेंगे।
उदाहरण के लिए पश्चिम अफ्रीकी देश माली ने इस विचार के आधार पर कपास निर्यात पर ध्यान केंद्रित किया है कि इससे आर्थिक विकास को बढ़ावा मिलेगा और कपास किसान अधिक खाद्यान्न उगाने के लिए अपने नए उपकरण और उर्वरक का उपयोग कर सकते हैं। हालांकि, शोध से पता चलता है कि इससे मिट्टी जैसे संसाधनों का विनाश हुआ, किसानों पर कर्ज़ का बोझ बढ़ा और बाल कुपोषण की दर चिंताजनक हो गई।
एक अन्य उदाहरण दक्षिण अफ्रीका की भूमि सुधार पहल है, जिसने बड़े पैमाने पर वाणिज्यिक कृषि मॉडल को अपनाया। इससे परियोजना के विफल होने की दर काफी ऊंची हो गई और कुपोषण की उच्च दर के हल के लिए कुछ नहीं किया गया।
पहले कदम के रूप में कृषि
अफ्रीका में उच्च कुपोषण दर से निपटने में दूसरी बड़ी चुनौती यह है कि कई देश और अंतरराष्ट्रीय संगठन अपने लिए कृषि विकास को महत्व नहीं देते हैं। इसे औद्योगीकरण की दिशा में पहले कदम के रूप में देखा जाता है।
व्यावसायिक कृषि सर्वोपरि हो गई है। इसमें महंगे इनपुट (जैसे उर्वरक) और दूर-दराज के बाजारों से संपर्क के साथ, एक ही फसल पर ध्यान केंद्रित किया जाता है। घरेलू उपभोग और स्थानीय बाजारों के लिए उत्पादन पर केंद्रित छोटे खेतों को कम महत्व दिया जाता है। हो सकता है कि ये खेत महत्वपूर्ण तरीके से राष्ट्रीय आर्थिक विकास में योगदान न देते हों, लेकिन ये गरीबों को खाद्य सुरक्षा हासिल करने में मदद करते हैं।
‘एग्रोइकोलॉजी’ आगे बढ़ने की राह
विफलता के बढ़ते प्रमाण सुझाते हैं कि अब अफ्रीका की खाद्य सुरक्षा समस्याओं को दूर करने का एक अलग तरीका आजमाने का समय आ गया है।
‘एग्रोइकोलॉजी’ (प्रकृति के साथ खेती) में वैज्ञानिकों के औपचारिक शोध और खेतों में प्रयोग करने वाले किसानों के अनौपचारिक ज्ञान को शामिल किया जाता है।
कृषिविज्ञानी विभिन्न फसलों, फसलों और कीड़ों तथा फसलों और मिट्टी के बीच परस्पर क्रिया का अध्ययन करते हैं। इससे कम महंगे बाहरी कारकों के साथ अधिक उत्पादन करने के तरीके सामने आ सकते हैं। यह अधिक टिकाऊ और सस्ता विकल्प है।
एक क्रांति की शुरुआत
अफ्रीका के बिगड़ते खाद्यान्न संकट को दूर करने के लिए ‘एग्रोइकोलॉजी’ (कृषि पारिस्थितिकी) एक आशाजनक तरीका है। इसे कई अफ्रीकी नागरिक समाज संगठनों का भी समर्थन प्राप्त है, जैसे ‘अलायंस फॉर फूड सावेरिनटी इन अफ्रीका’ और ‘नेटवर्क ऑफ वेस्ट अफ्रीका फॉर्मर ऑर्गेनाइजेशंस एंड एग्रीकल्चर प्रोड्यूसर’।
अफ्रीकी सरकार के नेताओं और दानदाताओं ने एक अलग दृष्टिकोण की आवश्यकता को पहचानने में तेजी नहीं दिखाई। हालांकि, हमें बदलाव के संकेत दिखने लगे हैं। उदाहरण के लिए सेनेगल के पूर्व कृषि मंत्री पापा अब्दुलाये सेक एक पारंपरिक कृषि विज्ञानी के रूप में प्रशिक्षित हैं। अब वह ‘एग्रोइकोलॉजी’ को अपने देश के लिए आगे बढ़ने का एक बेहतर तरीका मानते हैं। इसके अलावा यूरोपीय संघ ने भी कुछ प्रायोगिक ‘एग्रोइकोलॉजी’ कार्यक्रमों का वित्तीय पोषण करना शुरू कर दिया है।
(द कन्वरसेशन)