सूरत : शहर में शांतिदूत महातपस्वी आचार्य श्री महाश्रमणजी का भव्य प्रवेश

साधु वह होता है जिसका जीवन त्यागमय, अहिंसामय व शांतिमय होता है  -- आचार्य महाश्रमण

सूरत : शहर में शांतिदूत महातपस्वी आचार्य श्री महाश्रमणजी का भव्य प्रवेश

आज का नवप्रभात सूरत वासियों के लिए एक स्वर्णिम सूर्योदय के रूप में उदित हुआ। प्रातः जब कड़ोदरा से गुरुदेव ने विहार किया तभी से ही हल्की रिमझिम वर्षा हो रही थी। ऐसे में भी अपने आराध्य की आगवानी करने सैंकड़ों श्रावक श्राविकाएं गणवेश में यात्रा में साथ चलते हुए जयघोषों से वातावरण को गुंजायमान कर रहे थे। अपनी कृपा वर्षा से सबको कृतार्थ करते हुए पुज्यवर गतिमान थे। लगभग 13 किलोमीटर का विहार कर आचार्यश्री लिंबायत के महर्षि आस्तिक सार्वजनिक हाई स्कूल में प्रवास हेतु पधारे। 

धर्म सभा में उपस्थित श्रद्धालुओं को प्रेरित करते हुए आचार्यश्री ने कहा – साधु को त्यागमूर्ति, अहिंसामूर्ति, दयामूर्ति, शांतिमूर्ति व समतामूर्ति कहा गया है। वे मन, वचन और काया से भी किसी को दुःख नहीं देते। हालाँकि हर साधु वीतराग तो नहीं होते पर जहाँ तक संभव होता है वे उस ओर उस दिशा में अपना प्रस्थान तो करते ही हैं। साधुत्व स्वीकार करने के पश्चात सांसारिक संबंध पूर्णतः मुक्त हो जाते है। उनके पास न कोई जमीन होती है, न पैसा। कोई व्यक्ति आजाओ वह राजा हो, प्रधान मंत्री या फिर राष्ट्रपति वें साधु के आगे नतमस्तक होते है। कहा गया की देवता भी उनको नमन करते हैं जिसका मन सदा धर्म में रमा रहता है।

गुरुदेव ने आगे कहा की है गृहस्थ तो साधु नहीं बन सकते पर अच्छे व साधनाशील श्रावक तो बन ही सकते हैं। भाव विशुद्धि हमारे जीवन की सबसे महत्वपूर्ण संपदा है। भाव शुद्धि से गृहस्थ भी अपने जीवन अच्छा बना सकते हैं। आचार्य श्री तुलसी ने अणुव्रत की बात बताई वही आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी ने अहिंसक चेतना का जागरण  और  नैतिकता  का  विकास के सूत्र के साथ अहिंसा यात्रा की। हम भी अपनी यात्रा में सद्भावना, नैतिकता व नशामुक्ति की बात बताते है। व्यक्ति के भीतर सबके प्रति मैत्री व दया की भावना बढ़ती रहे। "इंसान पहले इंसान फिर हिंदू या मुसलमान। मानव मानव के बीच सद्भावना बढती रहे तो छोटे जीवों के प्रति भी दया के भाव उजागर हो जाते है।

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प्रसंगवश गुरुदेव ने फरमाया कि हमारा सूरत में आना हुआ है। यहां की जनता में आध्यात्मिकता, धार्मिकता वर्धमान होती रहे। गुरुदेव की प्रेरणा से उपस्थित जनता ने त्रिआयामी सूत्रों को स्वीकार करते हुए नशामुक्ति का संकल्प स्वीकार किया। 

स्वागत के क्रम में स्थानीय एमएलए श्रीमती संगीता बेन पाटिल ने अपने विचार रखे। सूरत प्रवास व्यवस्था समिति अध्यक्ष संजय सुराणा, लिंबायत सभा अध्यक्ष लालचंद चोरडिया, श्री अनिल चिंडालिया, जवेरीलाल दुगड़, रतनलाल भलावत, तेयुप से धीरज भलावत, महिला मंडल से श्रीमती मंजू बेन सिंघवी, अणुव्रत विश्व भारती से अर्जुन मेडतवाल, चित्रकूट वैष्णव सम्प्रदाय से धनपति शास्त्री, मुस्लिम समाज से जे.सी. राज सर, महर्षि आस्तिक हाई स्कूल के चेयरमैन गंभीरसिंह जी, लक्ष्मीलाल गोखरू आदि ने स्वागत में अभिव्यक्ति दी। 

सामूहिक स्वागत गीतों, प्रस्तुति के क्रम में प्रवास व्यवस्था समिति, लिंबायत सभा, युवक परिषद, महिला मंडल ने प्रस्तुतियां दी। ज्ञानशाला के बच्चों ने कव्वाली मंचन किया। 

तप के द्वारा आराध्य को भेंट करते हुए श्रीमती संगीतादेवी बुरड़ ने मासखमण तप 30 का प्रत्याख्यान किया। श्री उकचंद बुरड़ ने 08 एवं श्री मोहित बुरड़ ने 13 की तपस्या का गुरुदेव से प्रत्याख्यान किया।

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