बदल गए नियम, कानून जो अब पहले से अधिक सख्त हैं

भारतीय न्याय प्रणाली को अंग्रेजों के बनाए कानून से मिली मुक्ति

बदल गए नियम, कानून जो अब पहले से अधिक सख्त हैं

न्याय केंद्रित तीनों नए आपराधिक कानून आज से हो गए लागू

डॉ. मयंक चतुर्वेदी

भोपाल, 01 जुलाई (हि.स.)। एक जुलाई की सुबह देश के प्रत्येक नागरिक के जीवन में बदलाव लेकर आई है, जिसमें बच्चों और महिलाओं के जीवन में प्रत्यक्ष उजास भर देने वाले देशभर में नए कानून 01 जुलाई से लागू हो गए हैं। भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की जगह भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस), क्रिमिनल प्रोसीजर कोड की जगह भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) और एविडेंस एक्ट की जगह भारतीय साक्ष्य अधिनियम (बीएसए) के लागू होने के बाद अब उम्मीद यही की जाएगी कि प्रताड़ित को सही न्याय मिले और अपराधी को उतनी सख्त सजा मिले कि अपराध की दुनिया में ये तीनों कानून भय पैदा कर सकें।

आईपीसी के तहत अंग्रेजों द्वारा बनाए गए औपनिवेशिक कानूनों से मिली मुक्त

देशभर में इन नए कानूनों को लेकर पिछले कई माह से तैयारी चल रही थी, इस संदर्भ में मध्य प्रदेश पुलिस भी पूरी तरह से सचेत, संवेदनशील और अपनी व्यवस्था को इन कानूनों के हिसाब से तैयार करने में जुटी थी। अब इसे लेकर राज्य कितना तैयार है, आइए जानते हैं, यहां । दरअसल, मध्य प्रदेश के वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों का कहना है कि इन तीनों कानूनों का उद्देश्य विभिन्न अपराधों और उनकी सजाओं को परिभाषित कर देश में आपराधिक न्याय प्रणाली को पूरी तरह से बदलना है। नए कानून लागू होने से भारत की न्याय प्रणाली आईपीसी के तहत अंग्रेजों द्वारा बनाए गए औपनिवेशिक कानूनों से मुक्त हो चुकी है।

एडीजी लॉ एंड ऑर्डर जयदीप प्रसाद कहते हैं कि ये कानून दंड नहीं बल्कि न्याय केन्द्रित है। देशभर में लागू नए आपराधिक कानूनों के क्रियान्वयन को लेकर मध्य प्रदेश पुलिस तैयार है। प्रदेश के सभी पुलिस थाना क्षेत्रों और जिला मुख्यालय स्तर पर कार्यक्रम आयोजित कर नए कानूनों का क्रियान्वयन सुनिश्चित किया जा चुका है। वे बताते हैं कि प्रदेश के प्रत्येक जिले में विविध कार्यक्रमों के जरिए जन जागरण किया गया है और आगे भी किया जाएगा। आज से थाना क्षेत्र में किसी भी उपयुक्त जगह पर कार्यक्रम शुरू हो रहे हैं, जिनमें सेवानिवृत पुलिस अधिकारियों, महिलाओं, बुजुर्गों और स्कूल-कॉलेज के विद्यार्थियों को आमंत्रित किया जा रहा है।

कानून के क्रियान्वयन के लिए तैयार हैं मप्र में 31 हजार से अधिक पुलिस विवेचक

उन्होंने बताया कि नए कानूनों के संबंध में प्रदेशभर में 60 हजार से अधिक पुलिस अधिकारी-कर्मचारियों को प्रशिक्षित किया है। उन्हें बदलावों के संबंध में बताया गया है। इसके अतिरिक्त सॉफ्टवेयर में किस तरह से एंट्री की जानी है, साक्ष्य कैसे एकत्र किए जाने हैं, इन सभी बिंदुओं के बारे में भी पुलिसकर्मियों को जानकारी दी गई है। इसके साथ ही एडीजी लॉ एंड ऑर्डर जयदीप प्रसाद यह भी जोड़ते हैं कि प्रदेश पुलिस ने 31 हजार से अधिक विवेचकों को प्रशिक्षित किया है। वहीं, सीसीटीएनएस में भी नए कानूनों से संबंधित बदलाव कर लिए गए हैं। सभी जिलों में क्राइम एंड क्रिमिनल ट्रेकिंग नेटवर्क एंड सिस्टम (सीसीटीएनएस) का संचालन करने वाले पुलिस अधिकारी-कर्मचारियों को भी बताया गया है कि वह दैनिक रिपोर्ट सीसीटीएनएस में किस तरह अंकित करेंगे।

देशभर में सबसे ज्यादा घटित होते हैं बालकों एवं महिलाओं से जुड़े अपराध

इस संबंध में मप्र राज्य बाल संरक्षण आयोग की सदस्य डॉ. निवेदिता शर्मा का कहना है कि ये नए कानून वास्तव में न्याय की दिशा में एक बड़ा कदम है, क्योंकि अपराध और अपराधी से जुड़ें आंकड़े देखें तो न सिर्फ मप्र में बल्कि देश के प्रत्येक राज्य में सबसे अधिक बच्चों एवं महिलाओं से जुड़े मामले घटित होते हैं । वर्षों बरस विवेचना में समय जाता है। ऐसे कई बार जिसे न्याय मिलना चाहिए वह भी टूट जाता है या पलायन कर जाता है। इन स्थितियों में कहीं न कहीं जिसे न्याय चाहिए, उसे वह मिलता नहीं और कानून कमजोर होता है, ऐसे में स्वभाविक तौर पर भारतीय संविधानिक कानून व्यवस्था पर भी आए दिन प्रश्न खड़े होते रहते थे।

डॉ. निवेदिता कहती हैं कि अब उम्मीद की जाएगी कि समय सीमा में न्याय मिले, इसके लिए किए गए इस विशेष प्रयास से और कठोरतम दंड विधान से कानून का भय अपराधियों में व्यापेगा और वे कई बार अपराध करने से पूर्व जरूर सोचेंगे कि बाद में पकड़े जाने पर पुलिस उनका इन कानूनों के तहत क्या हश्र करेगी। उन्होंने कहा कि निश्चित ही इन नए कानूनों को अपनी दृढ़ इच्छा शक्ति से लाने के लिए केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह एवं प्रधानमंत्री मोदी का धन्यवाद है कि उन्होंने बच्चों एवं महिलाओं के हक में इतनी गहराई और गंभीरता से विचार किया है। अब आशा यही है कि देश की ये दोनों 70 प्रतिशत जनसंख्या (बाल एवं महिला) के साथ वास्तविक न्याय, कागजों तक सीमित नहीं धरातल पर पूरी तरह से साकार हो सकेगा।

इसलिए खास हैं ये कानून महिलाओं और बच्चों के लिए

नए कानूनों में महिलाओं और बच्चों के साथ होने वाले अपराधों के लिए सख्त सजा के प्रावधान किए गए हैं। प्रस्तावित भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 में पहला अध्याय अब महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराध से संबंधित सजा के प्रावधानों से संबंधित है। इन प्रावधानों के अनुसार जहां बच्चों से अपराध करवाना व उन्हें आपराधिक कृत्य में शामिल करना दंडनीय अपराध होगा, वहीं नाबालिग बच्चों की खरीद-फरोख्त जघन्य अपराधों में शामिल की जाएगी। नाबालिग से गैंगरेप किए जाने पर आजीवन कारावास या मृत्युदंड का प्रावधान है।

नए कानूनों के अनुसार पीड़ित का अभिभावक की उपस्थिति में ही बयान दर्ज किया जा सकेगा। इसी प्रकार नए कानूनों में महिला अपराधों के संबंध में अत्यंत सख्ती बरती गई है। इसके तहत महिला से गैंगरेप में 20 साल की सजा और आजीवन कारावास, यौन संबंध के लिए झूठे वादे करना या पहचान छिपाना भी अब अपराध होगा। साथ ही पीड़िता के घर पर महिला अधिकारी की मौजूदगी में ही बयान दर्ज करने का भी प्रावधान है। इस प्रकार नए कानून में महिलाओं और बच्चों के विरुद्ध अपराध घटित करने वालों के खिलाफ विभिन्न धाराओं में कड़ी सजा के प्रावधान हैं।

ई-साक्ष्यों को अब नकारा नहीं जा सकेगा

अदालतों में पेश और स्वीकार्य साक्ष्य में इलेक्ट्रॉनिक या डिजिटल रिकॉर्ड, ईमेल, सर्वर लॉग, कंप्यूटर, स्मार्टफोन, लैपटॉप, एसएमएस, वेबसाइट, स्थानीय साक्ष्य, मेल, उपकरणों के मैजेस को शामिल किया गया है। केस डायरी, एफआईआर, आरोप पत्र और फैसले सहित सभी रिकॉर्ड का डिजिटलीकरण किया जाएगा। इलेक्ट्रॉनिक या डिजिटल रिकॉर्ड का कानूनी प्रभाव, वैधता और प्रवर्तनीयता कागजी रिकॉर्ड के समान ही होगी। अब वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये भी न्यायालयों में पेशी हो सकेगी।

हो गया किसी भी शिकायतकर्ता को 90 दिन में जांच रिपोर्ट देना अनिवार्य

इसके साथ ही 60 दिन के भीतर आरोप तय होंगे और मुकदमा समाप्त होने के 45 दिन में निर्णय देना होगा। वहीं सिविल सेवकों के खिलाफ मामलों में 120 दिन में निर्णय अनिवार्य होगा। भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 के अंतर्गत मामलों की तय समय में जांच, सुनवाई और बहस पूरी होने के 30 दिन के भीतर फैसला देने का प्रावधान है। इसी प्रकार छोटे और कम गंभीर मामलों के लिए समरी ट्रायल अनिवार्य होगा। नए कानूनों में पहली बार अपराध पर हिरासत अवधि कम रखी जाने व एक तिहाई सजा पूरी करने पर जमानत का प्रावधान है। साथ ही किसी भी शिकायतकर्ता को 90 दिन में जांच रिपोर्ट देना अनिवार्य होगा और गिरफ्तार व्यक्ति की जानकारी भी सार्वजनिक करनी होगी।

फरियादी अब ले सकेगा पुलिस द्वारा आरोपित से हुई पूछताछ के बिंदु

ई-एफआईआर के मामले में फरियादी को तीन दिन के भीतर थाने पहुंचकर एफआईआर की कॉपी पर साइन करने होंगे। नए बदलावों के तहत जीरो एफआईआर को कानूनी तौर पर अनिवार्य कर दिया है। फरियादी को एफआईआर, बयान से जुड़े दस्तावेज भी दिए जाने का प्रावधान किया गया है। फरियादी चाहे तो पुलिस द्वारा आरोपी से हुई पूछताछ के बिंदु भी ले सकता है। यानी वे पेनड्राइव में अपने बयान की कॉपी ले सकेंगे। इस प्रकार नए कानूनों में आमजन को बहुत सारे लाभ प्रदान किए गए हैं।

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