बुंदेलखंड में अब सन्नाटे में खो गए कुओं के पनघट
सैकड़ों ऐतिहासिक कुएं भी बन गए इतिहास का पन्ना
हमीरपुर, 12 अप्रैल (हि.स.)। बुंदेलखंड क्षेत्र के ग्रामीण इलाकों में अब हजारों कुएं के पनघट सन्नाटे में खो गए है। किसी जमाने में यह कुएं प्यासे लोगों के लिए लाइफलाइन होते थे लेकिन अब ज्यादातर कुएं इतिहास का पन्ना बन गए है। तमाम ऐसे प्राचीन कुओं का नामोनिशान ही मिट चुका है।
हमीरपुर जिले में ही कई दशक पहले साढ़े तीन हजार से अधिक प्राचीन कुएं थे जिनमें साढ़े चौदह से ज्यादा कुओंका पानी प्रदूषित हो चुका है। जबकि दो हजार से अधिककुओं का अस्तित्व ही खत्म हो गया है। जिले के सुमेरपुर क्षेत्र मेंही 167 कुएं जर्जर हो गए है जबकि कुरारा क्षेत्र मे 142, मौदहा क्षेत्र में 226, मुस्करा क्षेत्र में 598, राठ क्षेत्र में 417, गोहांड क्षेत्र में 341 व सरीला क्षेत्र में 192 कुएंबद से बदतर हो गए है।
भाकियू नेता संतोष सिंह का कहना है कि जिले में बड़ी संख्या में प्राचीन कुएं थे जो गदंगी और कुड़ा करकट से पाट दिए गए है। हमीरपुर शहर में ही तमाम कुओं का नामोनिशान मिट चुका है। पतालेश्वर मंदिर व बड़ा मंदिर समेत कई स्थलों पर कुएंअपना अस्तित्व खो चुके है। हमीरपुर की स्थापना काल का एक कुआंभी बदनपुर गांव में कुछ दशक पहले अस्तित्व में था जो अब इतिहास का पन्ना बन गया है। बुंदेलखंड के बांदा, महोबा समेत अन्य इलाकों में हजारों की संख्या में कुएंजर्जर हो चुके है। सूखे और बदहाल कुओंमें आए दिन लोग कूदकर आत्महत्या भी करते है।
किसी जमाने मेंसैकड़ों गांवों में ग्रामीण कुओं के पानी से ही बुझाते थे प्यास
नब्बे साल की बुजुर्ग कैलासवती समेत तमाम महिलाओं ने बताया कि तीन दशक पहले कुओंके पानी से लोग प्यास बुझाते थे। लेकिन अब ये कुएं कहीं नहीं दिखाई देते है। समाजसेवी गणेश सिंह विद्यार्थी व जलीस खान ने बताया कि ग्रामीण इलाकों में अस्सी के दशक में कुएं ही एक मात्र पेयजल का जरिया होते थे। लोग खुशी से कुएंसे पानी भरने जाते थे लेकिन हैंडपंपों का प्रचलन बढऩे और पानी के अन्य साधन मिलने के कारण अबम बुंदेलखंड क्षेत्र में कुओंका अस्तित्व खत्म हो गया है।
वैवाहिक कार्यक्रमोंमेंमहिलाएं मंगलगीत गाते हुए पानी लेने जाती थी पनघट
कुओंके पनघट पर कभी सुबह और शाम चहलपहल रहती थी। चूडिय़ों की खनखनाहट भी पनघट में सुनाई देती थी लेकिन अब पनघट सन्नाटे में खो गए है। महिलाओं के बीच सुख, दुख की चर्चाएं भी कभी कुएंके पनघट में होती थी पर अब वहां कोई नहीं जाता है। 105 साल वर्षीय पत्नी विजय कुमारी ने बताया कि शादी विवाह में कुओंकी पूजा होती थी। बुंदेलखंड में पुत्र के विवाह व संतान होने पर कुआं पूजने की परम्परा भी कायम थी लेकिन अब हैंडपंपों से पानी भरकर रस्में पूरी की जाती है।
कभी चरखारी नरेश पीने के लिए हमीरपुर से प्राचीन कुएंसे मंगाते थे पानी
हमीरपुर जिले के मौदहा कस्बे के मलीकुआं के नाम से चौराहा स्थापित है। लोकतंत्र सेनानी देवी प्रसाद गुप्ता व सलाहुद्दीन के मुताबिक यहां एक प्राचीन कुआंथा जिसका पानी मीठा और लाभकारी था। कभी चरखारी के राजा अपने घुड़सवारों को भेजकर इसी कुएं से पीने का पानी मंगाते थे। बताया कि इसी तरह के मौदहा क्षेत्र मेंही घासी कुआ, बाउर कुआं, राय कुआं, विशाल कुआं व नेशनल मार्ग का बाउली कुआं हैजो अब अस्तित्व खो रहे है। कई और प्राचीन कुओं का भी नामोनिशान मिट गया है ।