विकास से कोसों दूर अररिया जिले का मधुबनी गांव, शिक्षा-स्वास्थ्य के लिए नेपाल का सहारा

लोगों को भी इलाज के लिए नेपाल का सहारा है

विकास से कोसों दूर अररिया जिले का मधुबनी गांव, शिक्षा-स्वास्थ्य के लिए नेपाल का सहारा

फारबिसगंज/अररिया, 06 मई (हि.स.)। भारत-नेपाल सीमा पर स्थित बिहार के अररिया जिले का मधुबनी गांव आज भी विकास से कोसों दूर है। यहां बच्चों को पढ़ने के लिए ना तो स्कूल है, ना ही अच्छी सड़कें हैं और ना ही अस्पताल। ऐसे में रहने वाले बच्चे शिक्षा के लिए नेपाल जाते हैं। लोगों को भी इलाज के लिए नेपाल का सहारा है। हालत यह है कि यहां के बच्चों को देश का राष्ट्रगान तक नहीं आता।

इस गांव के छात्र-छात्राओं का कहना है कि हम लोग इंडिया में नहीं पढ़ते हैं तो 'जन गण मन' कहां से याद रहेगा? हमारे गांव में स्कूल नहीं है। इसलिए हम लोग नेपाल में पढ़ने जाते हैं। हम लोगों को नेपाल की पढ़ाई काम भी नहीं देगी। क्योंकि, पढ़ाई करने के बाद भी वहां हमें सर्टिफिकेट नहीं मिलेगा। वहां आधार कार्ड से एडमिशन मिलता है। बच्चों ने कहा कि नेपाल में नेपाल का बर्थ सर्टिफिकेट मांगा जाता है। यदि हम नेपाल का बर्थ सर्टिफिकेट नहीं देंगे तो हमें पढ़ाई करने के बाद भी सर्टिफिकेट नहीं मिलेगा।

विद्यार्थियों का कहना है कि इस गांव में ना ही सांसद आते हैं और ना ही विधायक लेकिन चुनाव के समय उनके लोग वोट मांगते हैं और ले भी लेते हैं। गांव के लिए कुछ भी नहीं करते है। हम चाहते हैं कि हमारे गांव में रोड, स्कूल और हॉस्पिटल हो। इस गांव की मनीषा नेपाल के स्कूल में पढ़ने जाती है। वो कहती है कि हम पढ़ाई तो नेपाल के स्कूल में कर रहे हैं लेकिन उसका कोई वैल्यू नहीं है। हमारा तो भविष्य खराब हो रहा है। हमारे गांव में तो हॉस्पिटल भी नहीं है। इमरजेंसी में इलाज कराने गांव के लोग नेपाल ही जाते हैं। बाढ़ के समय घरों में पानी घुस जाता है। उस वक्त भी बचने के लिए नेपाल ही जाते हैं। हम इंडिया में रहते हैं, फिर भी कोई सुविधा नहीं मिलती है।

इस गांव की छात्रा सपना भी नेपाल के स्कूल में पढ़ने जाती है। वो कहती है कि भारत में जो स्कूल है वो बहुत दूर है। वहां जाना संभव नहीं है। वहां तक जाने के लिए सही रास्ता नहीं है। नदी पर पुल भी नहीं है। नेपाल के स्कूल जाने के लिए अच्छी सड़क है। हमसे नेपाली स्कूल के टीचर भी पूछते हैं कि अपने यहां के स्कूल में क्यों नहीं पढ़ती हो? हम चुप हो जाते हैं। हम अपने देश की बुराई नहीं कर सकते हैं

इस गांव के रहने वाले वरिष्ठ चौथी महतो ने कहा कि उनका बेटा भी नेपाल के स्कूल में पढ़ने जाता है। पूरे गांव के बच्चे पढ़ाई करने के लिए नेपाल के स्कूल में जाते हैं। बिहार में इनके गांव से 6-7 किलोमीटर दूर एक सरकारी स्कूल कोचगामा में है। गांव वालों ने कहा कि गांव के अंदर या आसपास में स्कूल खोलने के लिए आवाज उठाई गई थी लेकिन अबतक किसी ने हमारी आवाज सुनी ही नहीं और ना ही कोई हमारी बातों को सुनने यहां आया।

उल्लेखनीय है कि इस गांव में लोगों की आबादी 500 है और 300 वोटर हैं। इस गांव में पिछड़ी और दलित जातियों के लोग रहते हैं। यहां के अधिकांश लोग खेती पर निर्भर हैं। नरपतगंज प्रखंड का मधुबनी गांव नेपाल बॉर्डर से एकदम सटा हुआ है। इस गांव तक पहुंचने के लिए कोई पक्की सड़क भी नहीं है। चार पहिया गाड़ी भी गांव तक सही से नहीं पहुंच सकती। यहां सात मई को वोट डाले जाएंगे।

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