राजकोट के मेयर के बंगले में ठहरने से क्यों लगता है डर!?
By Loktej
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बंगले में रहनेवाले पांचो मेयर का हुआ राजनैतिक करियर खत्म, ना रहने वाले मेयर है आज बड़े बड़े पद पर
महानगर में मेयर के पद पर नए पदाधिकारियों की नियुक्ति हो चुकी है। सूरत, वडोदरा, अहमदाबाद, राजकोट, जामनगर और भावनगर में मेयर एवं शासक पक्ष के नेता भी नियुक्ति हो चुकी है। ऐसे में राजकोट के रेसकोर्स रोड पर आए भव्य मेयर के बंगले में शहर के मेयर जाना टाल रहे है। क्योंकि एक ऐसी बात चर्चा में है जिस किसी की भी मेयर के तौर पर नियुक्ति होती है यदि वह सहपरिवार इस बंगले में रहने चला जाए तो उसके राजनैतिक करियर पर खराब असर होती है।
शापित माना जाता है बंगला
शहर में यह बंगला शापित बंगले के तौर पर जाना जाता है। राजकोट के पाँच मेयर ऐसे रहे है, जो इस बंगले में रहने गए और इसके बाद उनके राजनैतिक करियर का या तो अंत हो गया या तो उन्हें दरकिनार कर दिया गया। जबकि तीन मेयर ऐसे रहे है जो इस बंगले में रहने के लिए नहीं गए है, वह आज बड़े बड़े पद पर है। राजकोट के नए बने मेयर प्रदीप दवे भी पहले इस बंगले में रहने जाने की सोच रहे थे, पर अब वह इस बंगले में रहने नहीं जा रहे।
विजय रूपणी भी नहीं गए थे बंगले में
साल 1990 से इस बंगले को मेयर के लिए आधिकारीक निवासस्थान के तौर पर दर्जा मिला था। पर इसके बाद शायद ही कोई यहाँ पूरी टर्म तक रह सका होगा। साल 1996-97 में मेयर बने विजय रूपणी भी इस बंगले में नहीं गए थे, आज वह गुजरात के मुख्यमंत्री है। साल 1983-88 और 1991-93 में मेयर बने वजूभाई वाला भी बंगले में नहीं गए थे, आज वह कर्नाटक के राज्यपाल है। इसके अल्वा साल 2005-08 तक धनसुख भँड़ेरी भी इस बंगले में नहीं गए थे, आज वह कॉर्पोरेशन फ़ाइनेंस बोर्ड के चेरमेन है।
पक्ष के कार्यालय के तौर पर किया जाता है इस्तेमाल
इसके अलावा कॉंग्रेस नेता मनसुख चावडा (2003-04), गौरीबेन सिंधव (2004-05), भाजपा नेता जनकभाई कोटक (2010-13), संध्याबेन व्यास (2008-10), रक्षाबेन बोलिया (2013-15) के पोलिटिकल करियर का बंगले में रहने जाने के बाद अंत आ गया था। इसमें भी गौरीबेन सिंधव तो आज भाड़े के मकान में रहते है। वही मनसुख चावडा को आधी टर्म में मेयर पद छोडना पड़ा था।
फिलहाल यह बंगला पक्ष के कार्यालय के तौर पर उपयोग में लिया जाता है। किसी भी तरह की राजनैतिक बैठक, भोजन कार्यक्रम और मीटिंग के लिए इस बंगले का उपयोग किया जाता है।
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