PM मोदी का एलान - प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों में आधी सीटों पर लगेगी सरकारी कॉलेजों जितनी फीस

यूक्रेन और रूस के बीच चल रही जंग में जहां तक भारत का संबंध है, सबसे कड़वा अनुभव वहां मेडिकल की पढ़ाई करने गए छात्रों को हुआ है। जंग के साए के बीच हजारों छात्र स्वदेश लौट आए हैं। लेकिन इस दौरान वे भयावह अनुभव से गुजरे हैं। भारत सरकार ने भरसक प्रयास करके यूक्रेन में पढ़ाई कर रहे छात्रों को वहां से विशेष विमानों के माध्यम से निकाला है। 
इसी 'ऑपरेशन गंगा' के मध्य यह जानकारी भी सर्वविदित हुई कि हिंदुस्तान से बड़ी संख्या में बच्चे डॉक्टर बनने के लिए विदेश जाते हैं और इसके पीछे मुख्य कारण भारत की प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों की भारी भरकम फीस है। एक अनुमान के अनुसार जहां सरकारी मेडिकल कॉलेजों में एमबीबीएस की पढ़ाई करने की फीस वार्षिक ₹25000 के लगभग होती है, वहीं प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों में यह आंकड़ा 20 लाख तक भी पहुंच जाता है। हर राज्य की सरकारी मेडिकल कॉलेज में फीस अलग-अलग होती है।
मेडिकल पढ़ने के इच्छुक बच्चों की अधिक फीस नहीं चुका पाने की मजबूरी के कारण उनके विदेश जाने की समस्या का लगता है अब भारत सरकार सॉल्यूशन लाना चाह रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से जन औषधि केंद्र के एक कार्यक्रम में बोलते हुए बताया है कि सरकार ने तय किया है कि प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों में आधी सीटों पर सरकारी मेडिकल कॉलेज के बराबर ही फीस लगेगी। यह एक बहुत बड़ी घोषणा है।
इस एलान का मतलब यह है कि यदि मेडिकल की पढ़ाई करने के इच्छुक किसी विद्यार्थी को सरकारी मेडिकल कॉलेज में एडमिशन नहीं मिल पाता है तो वह संबंधित राज्य की उतनी ही सरकारी फीस में किसी प्राइवेट मेडिकल कॉलेज में दाखिला ले सकता है। यद्यपि इसमें विद्यार्थी का मेरिट काम आएगा। इस नए फीस स्ट्रक्चर का लाभ पहले उन विद्यार्थियों को दिया जाएगा जिनका एडमिशन सरकारी कोटे की सीट पर होगा। हालांकि यह किसी भी संस्थान की कुल सीटों में से अधिकतम 50 फ़ीसदी सीटों की संख्या तक सीमित रहेगा। लेकिन अगर किसी संस्थान में सरकारी कोटे की सीटें वहां की कुल सीटों की 50 फ़ीसदी की सीमा से कम है, तो उस विद्यार्थियों को भी फायदा मिलेगा जिनका एडमिशन सरकारी कोटे से बाहर लेकिन संस्थान की 50 की सभी सीटों में हुआ है। इसका निर्धारण मेरिट के आधार पर होगा। कहने का तात्पर्य यह है कि प्राइवेट कॉलेजों में उपलब्ध कुल सीटों में से 50 फीसदी सीटें कब सरकारी मेडिकल कॉलेज की फीस के अनुरूप ही भरी जाएंगी।
 सरकार द्वारा लिए गए इस फैसले के बाद नेशनल मेडिकल कमीशन ने गाइडलाइन भी तैयार कर ली है। यह नया नियम अगले शैक्षणिक सत्र से लागू होगा। यह फैसला सभी प्राइवेट विश्वविद्यालयों के अलावा डीम्ड यूनिवर्सिटी पर भी लागू होगा। नई गाइडलाइन के तहत मेडिकल की फीस के निर्धारण का जिम्मा संबंधित राज्य के फीस फिक्सेशन कमिटी पर होगा।
उम्मीद करते हैं कि सरकार की इस अनुकरणीय पहल के बाद डॉक्टर बनने के इच्छुक भारत के छात्रों को अब विदेश नहीं जाना पड़ेगा। अधिक संख्या में बच्चे अब अपने ही देश में पढ़ाई करके डॉक्टर बनेंगे और यहीं पर अपनी सेवाएं देंगे। आपको बता दें कि यूक्रेन में साल भर में दुनिया भर से लगभग 80000 बच्चे पढ़ाई करने पहुंचते हैं और उसमें से एक चौथाई यानी कि लगभग 20000 बच्चे भारत से जाते हैं।