सूरत : भारत की धरा गौ वध मुक्त हुए बिना देश का विकास फीका : जगतगुरु रामानंदाचार्य धर्माचार्यजी महाराज 

महाकुंभ में पिछले डेढ़ माह से लगातार अन्नक्षेत्र में भंडारा आयोजित करने के बाद महाराजजी सूरत पधारे 

सूरत : भारत की धरा गौ वध मुक्त हुए बिना देश का विकास फीका : जगतगुरु रामानंदाचार्य धर्माचार्यजी महाराज 

महाकुंभ में महामंडलेश्वर स्वामी धर्मदासजी महाराज के जगतगुरु रामानंदाचार्य धर्माचार्य महाराज की उपाधि प्रदान होने के बाद सूरत आगमन पर मंगलवार को वेसू स्थित शांतम में पत्रकार परिषद को संबोधित करते हुए महाराज जी ने कहा कि जिस तरह माता बच्चों की गंदगी साफ कर स्वच्छ करती है, उसी तरह मां गंगा हम सभी सनातनियों के पाप रूपी गंदगी को दूर कर निर्मल बनाती है। प्रति 12 वर्ष में कुंभ होता है जबकि 12 कुंभ होने के बाद महाकुंभ का आयोजन होता है। इसलिए 144 साल बाद इस तरह का महाकुंभ प्रयागराज में आयोजित हुआ है, जो सनातनियों के लिए गर्व की बात है। 

महाराज जी ने कहा कि मैं तो साधारण जीवन जीना चाहता हूं नर में नारायण को देखता हूं और इसी भाव से नर एवं गौ माता की सेवा करता हूं। परंतु साधु-संतों ने जो भी जिम्मेदारी दी है उसका पूरी तरह निर्वहन करुंगा और सनातन को उच्च शिखर पर ले जाने का प्रयास करूंगा। महाराजजी ने कहा कि भारत भूमि ऋषियों -मुनियों की भूमि है, इस भूमि पर गोवध कलंक समान है। जब तक भारत की भूमि पर गौ माता का रक्त बहेगा तब तक आप कितना भी विकास कर लो लेकिन भारत की भूमि से गोवध मुक्त हुए बिना देश का विकास फीका ही रहेगा। 

उल्लेखनीय है सूरत के निकट नवसारी जिले के दंडेश्वर गांव स्थित श्री शाकंभरी आश्रम और कृष्ण कामधेनु गौशाला के संस्थापक महामंडलेश्वर स्वामी धर्मदास महाराज को इस कुंभ में अखाड़ों और संतों ने जगतगुरु की उपाधि से विभूषित किया, जो दक्षिण गुजरात के प्रत्येक सनातनी के लिए गर्व की बात है। महाकुंभ में पिछले डेढ़ माह से लगातार अन्नक्षेत्र में भंडारा आयोजित करने के बाद मंगलवार को महाराजजी सूरत पधारे हैं। जगतगुरु की उपाधि मिलने के बाद पहली बार सूरत आगमन पर महाराज से दीक्षित शिष्यों और उनके अनुयायियों में हर्ष व्याप्त है। इस अवसर पर सुशील चिरानिया, विश्वनाथ पचेरिया सहित अन्य महानुभाव उपस्थित रहे। 

कुंभ के निर्मोही अखाड़े में अन्य कई जगतगुरु, आचार्य महामंडलेश्वर और ख्यातनाम संतों की गरिमामयी उपस्थिति में महाराज का जगतगुरु की पदवी का विधिवत पट्टाभिषेक कर नाम करण किया गया। नए नाम के रूप में जगतगुरु रामानंदाचार्य धर्माचार्य महाराज के रूप में विभूषित कर दंड प्रदान किया गया। 
यह पहला अवसर था जब दक्षिण गुजरात के किसी संत को कुंभ में जगतगुरु की उपाधि दी गई। 

महाराज के शिष्य और इस आयोजन के अग्रणी सुशील चिरानिया ने बताया कि महाराज के सानिध्य में आश्रम परिसर में भजन और भोजन के साथ शिक्षा और चिकित्सा सेवा भी अनवरत चलती है। भविष्य में आसपास के गरीब और जरूरतमंद परिवारों के बच्चों की शिक्षा के लिए स्कूल और एक स्थाई चिकित्सालय बनाना भी प्रस्तावित है, जिससे जरूरतमंद लोगों को शिक्षा के साथ चिकित्सा जैसी बुनियादी जरुरतें भी आसानी से सुलभ हो सके। उन्होंने  बताया कि ये सब महाराज की साधना और उनके तप और निरंतर गौसेवा का ही असर है कि इतने कम समय में जंगल में मंगल हो गया। 

महाराज की तप साधना और निरंतर गौसेवा से आज दो दशक के अल्प समय में जंगल में मंगल हो गया। एक कुटिया से जहां आज यहां न केवल आश्रम बना है बल्कि पचास से अधिक गोमाता और विशाल पंचदेव मंदिर बन कर तैयार है, जिसमें बाबा श्याम, सालासर हनुमान, रानी सती, जीण माता के मंदिर के साथ साठ कक्ष की आधुनिक सुविधायुक्त आवासीय इमारत भी निर्माणाधीन है। आश्रम में अन्न क्षेत्र तो अनवरत चलता ही रहता है, हर रविवार को विशाल भंडारे में आसपास के लोगों के लिए भोजन प्रसादी के साथ गोमाता का भी विशेष भंडारा होता है। गाय का दूध और घी की बिक्री नहीं की जाती बल्कि आश्रम में प्रसाद के रूप में श्रद्धालुओं को भेंट किया जाता है। आज यह आश्रम आसपास के इलाके में प्रमुख आस्था का केंद्र बन गया है। मां शाकंभरी 
की महाराज पर असीम अनुकम्पा है कि अल्प आयु में ही संतों ने जगतगुरु जैसी उपाधि से इन्हें विभूषित किया है।

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