हिंदू समाज देश का जिम्मेदार समाज, इसमें एकता जरूरी है: आरएसएस प्रमुख

हिंदू समाज देश का जिम्मेदार समाज, इसमें एकता जरूरी है: आरएसएस प्रमुख

बर्धमान (पश्चिम बंगाल), 16 फरवरी (भाषा) राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत ने रविवार को हिंदू समाज को एकजुट करने के महत्व पर जोर देते हुए इसे देश का "जिम्मेदार" समुदाय बताया, जो एकता को विविधता का मूर्त रूप मानते हैं।

बर्धमान के एसएआई ग्राउंड में आरएसएस के एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा, ‘‘लोग अकसर पूछते हैं कि हम केवल हिंदू समाज पर ही ध्यान क्यों देते हैं, और मेरा जवाब है कि देश का जिम्मेदार समाज हिंदू समाज है।’’

भागवत ने कहा, ‘‘आज कोई विशेष कार्यक्रम नहीं है। जो लोग संघ के बारे में नहीं जानते, वे अकसर सवाल करते हैं कि संघ क्या चाहता है। अगर मुझे जवाब देना होता, तो मैं कहता कि संघ हिंदू समाज को संगठित करना चाहता है, क्योंकि यह देश का जिम्मेदार समाज है।’’

उन्होंने विश्व की विविधता को स्वीकार करने के महत्व पर भी जोर दिया।

उन्होंने कहा, ‘‘भारतवर्ष केवल भौगोलिक क्षेत्र नहीं है; इसका आकार समय के साथ बढ़ या घट सकता है। इसकी एक अद्वितीय प्रकृति है। भारत का अपना अंतर्निहित चरित्र है। जिन लोगों को लगा कि वे इस प्रकृति के साथ सामंजस्य में नहीं रह सकते, उन्होंने अपने अलग देश बना लिए।”

उन्होंने कहा, "स्वाभाविक रूप से, जो लोग बचे रहे, वे चाहते थे कि भारत का मूलतत्व बचा रहे। और मूलतत्व क्या है? यह 15 अगस्त, 1947 से भी अधिक पुराना है। यह हिंदू समाज है, जो दुनिया की विविधता को अपनाकर फलता-फूलता है। यह प्रकृति दुनिया की विविधताओं को स्वीकार करती है और उनके साथ आगे बढ़ती है। एक शाश्वत सत्य है जो कभी नहीं बदलता।"

उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि हिंदू समाज की नींव विविधता को अपनाने की उसकी क्षमता पर टिकी है, जो 'वसुधैव कुटुम्बकम' (विश्व एक परिवार है) के सिद्धांत संस्कृत वाक्यांश में निहित है।

आरएसएस प्रमुख ने कहा, "हम कहते हैं 'विविधता में एकता', लेकिन हिंदू समाज मानता है कि विविधता ही एकता है।"

भागवत ने कहा कि भारत में, कोई भी सम्राटों और महाराजाओं को याद नहीं करता, बल्कि अपने पिता का वचन पूरा करने के उद्देश्य से 14 साल के लिए वनवास जाने वाले राजा (भगवान राम) और उस व्यक्ति (भरत) को याद रखता है जिसने अपने भाई की पादुकाएं सिंहासन पर रख दीं, और वनवास से लौटने पर राजपाट उसे सौंप दिया।

उन्होंने कहा, ‘‘ये विशेषताएं भारत को परिभाषित करती हैं। जो लोग इन मूल्यों का पालन करते हैं, वे हिंदू हैं और वे पूरे देश की विविधता को एकजुट रखते हैं।”

हिंदुओं के बीच एकता की आवश्यकता दोहराते हुए भागवत ने कहा कि अच्छे समय में भी चुनौतियां हमेशा सामने आती रहेंगी।

उन्होंने कहा, “समस्याओं की प्रकृति क्या है, इसके बजाए यह महत्व रखता है कि हम उनका सामना करने के लिए कितने तैयार हैं।’’

पश्चिम बंगाल पुलिस ने पहले रैली आयोजित करने की अनुमति देने से इनकार कर दिया था। इसके बाद कलकत्ता उच्च न्यायालय से मंजूरी मिलने के बाद रैली आयोजित की गई।

सिकंदर के समय से लेकर अब तक हुए ऐतिहासिक आक्रमणों पर भागवत ने कहा कि "चंद बर्बर लोगों ने, जो गुणों में श्रेष्ठ नहीं थे, भारत पर शासन किया।"

उन्होंने कहा कि "इसके लिए समाज के आंतरिक विश्वासघात को जिम्मेदार ठहराया गया।"

आरएसएस प्रमुख ने कहा कि किसी राष्ट्र की नियति बदलने के लिए सामाजिक भागीदारी जरूरी है।

उन्होंने कहा कि भारत का निर्माण अंग्रेजों ने नहीं किया था और भारत के विखंडित होने की धारणा अंग्रेजों ने लोगों के मन में डाली थी।

भागवत ने कहा, "यहां तक ​​कि महात्मा गांधी ने भी कहा था कि अंग्रेजों ने हमें यह दिखाने की कोशिश की कि उन्होंने भारत का निर्माण किया है, और उन्होंने (गांधी) कहा था कि यह गलत है। भारत सदियों से अस्तित्व में है - विविधतापूर्ण है, फिर भी एकजुट है। इस देश में रहने वाले सभी लोग विविधता में एकता के इस विचार में विश्वास करते हैं। आज, अगर हम इस बारे में बात करते हैं, तो हम पर हिंदुत्व की बात करने का आरोप लगाया जाता है।"

वर्ष 1925 में स्थापित आरएसएस की स्थापना के सौ साल पूरे होने पर आयोजित सभा को संबोधित करते हुए भागवत ने संगठन की यात्रा और उद्देश्य पर विचार व्यक्त किए।

भागवत ने आरएसएस के विशाल आकार का उल्लेख करते हुए कहा, “संघ एक बड़ा संगठन है, जिसकी देशभर में लगभग 70,000 शाखाएं हैं।”

उन्होंने कहा, “हमें दुनिया का सबसे बड़ा संगठन कहा जाता है। लेकिन हम क्यों और बड़ा होना चाहते हैं? अपने लिए नहीं। अगर हमारा नामोनिशान नहीं भी होगा तो कोई बात नहीं, लेकिन अगर समाज एकजुट होगा तो इससे देश और दुनिया का भला होगा।”

उन्होंने दोहराया कि आरएसएस का मुख्य मिशन लोगों को एक साथ लाना है।

भागवत ने कहा, “आरएसएस का एकमात्र कार्य समाज को एकजुट करना है।”

उन्होंने लोगों से संगठन से सीधे जुड़ने का आग्रह किया।

भागवत ने कहा, “मेरी अपील है कि संघ को समझें, उसके करीब आएं। इसके लिए कोई शुल्क नहीं है। सदस्यता की आवश्यकता नहीं है। आप अपनी इच्छा से यहां आ सकते हैं और अगर आपको पसंद नहीं है तो जा सकते हैं।”

उन्होंने स्वीकार किया कि आरएसएस को समझने में समय लगता है, क्योंकि इसका एकमात्र लक्ष्य पूरे "हिंदू समाज" को एकजुट करके "आत्मीयता" विकसित करना है।

भागवत ने लोगों को दूर से राय बनाने के बजाय सीधे संगठन से जुड़ने के लिए प्रोत्साहित किया।

उन्होंने कहा, “जब लोग दूर से संगठन को समझने की कोशिश करते हैं तो गलतियां और गलतफहमियां पैदा होती हैं। संघ के निकट संपर्क में आएं, इसे स्वयं देखें।”