क्या एआई हमें मंदबुद्धि बना रहा है? शोध के अनुसार इसकी आशंका है

क्या एआई हमें मंदबुद्धि बना रहा है? शोध के अनुसार इसकी आशंका है

(डेबोरा ब्राउन और पीटर एलर्टन, क्वींसलैंड विश्वविद्यालय)

ब्रिस्बेन, 14 फरवरी (द कन्वरसेशन) हममें से ज्यादातर लोग एक हद तक ही सोच पाते हैं। बिना कलम और कागज या कैलकुलेटर के 16,951 को 67 से भाग देने की कोशिश करें। पिछले हफ्ते बनाई गई सूची या अपने फोन पर उपलब्ध फेहरिस्त के बिना हफ्ते भर की खरीदारी करने की कोशिश करें।

अपने जीवन को आसान बनाने के लिए इन उपकरणों पर निर्भर रहकर हम खुद को अधिक बुद्धिमान बना रहे हैं या मूर्ख? हम अपनी कार्यकुशलता बढ़ने के बावजूद क्या एक प्रजाति के रूप में अज्ञानता के और करीब जाने लगे हैं?

यह प्रश्न विशेष रूप से ओपनएआई कंपनी के स्वामित्व वाला एक एआई चैटबॉट ‘चैटजीपीटी’ जैसी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) तकनीक के संबंध में विचार करने के लिए महत्वपूर्ण है, जिसका प्रत्येक सप्ताह 30 करोड़ लोग लेखन के समय उपयोग करते हैं।

‘माइक्रोसॉफ्ट’ और अमेरिका के कार्नेगी मेलन विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं की एक टीम द्वारा हाल ही में लिखे गए एक शोधपत्र के अनुसार, उक्त प्रश्न का उत्तर हां हो सकता है। लेकिन बात इससे कहीं आगे पहुंच चुकी है।

अच्छी सूझबूझ

शोधकर्ताओं ने मूल्यांकन किया कि उपयोगकर्ता अपनी विश्लेषणात्मक सोच पर एआई के प्रभाव को कैसे समझते हैं।

आम तौर पर, विश्लेषणात्मक सोच का संबंध अच्छी तरह से सोचने से होता है।

ऐसा करने का एक तरीका यह है कि हम अपनी खुद की विश्लेषणात्मक प्रक्रियाओं को स्थापित मानदंडों और अच्छे तर्कों के आधार पर आंकें। इन मानदंडों में तर्कों की सटीकता, स्पष्टता, गहनता, प्रासंगिकता, महत्व व तार्किकता जैसे मूल्य शामिल हैं।

विश्लेषणात्मक सोच की गुणवत्ता को प्रभावित कर सकने वाले अन्य कारणों में हमारे मौजूदा वैश्विक दृष्टिकोण का प्रभाव, संज्ञानात्मक पूर्वाग्रह तथा अधूरे या गलत मानसिक तंत्रों पर निर्भरता शामिल हैं।

हाल ही में किए गए अध्ययन के लेखकों ने अमेरिकी शैक्षिक मनोवैज्ञानिक बेंजामिन ब्लूम और उनके सहयोगियों द्वारा 1956 में पेश की गई विश्लेषणात्मक सोच की परिभाषा को अपनाया है। यह वास्तव में कोई परिभाषा नहीं है, बल्कि संज्ञानात्मक कौशल को वर्गीकृत करने का एक पदानुक्रमित तरीका है, जिसमें सूचना को याद रखना, समझना, अनुप्रयोग, विश्लेषण, संश्लेषण और मूल्यांकन शामिल हैं।

लेखकों का कहना है कि वे इस वर्गीकरण को तरजीह देते हैं, जिसे "टैक्सोनॉमी" के रूप में भी जाना जाता है, क्योंकि यह सरल और लागू करने में आसान है। हालांकि, जब इसे तैयार किया गया था, तब के मुकाबले इसकी लोकप्रियता काफी कम हुई है।

एआई में अधिक विश्वास करने का मतलब है विश्लेषणात्मक सूझबूझ का कम होना

इस साल की शुरुआत में प्रकाशित शोध से पता चला कि “एआई के लगातार उपयोग और विश्लेषणात्मक सोच की क्षमताओं के बीच महत्वपूर्ण नकारात्मक सह-संबंध हैं।’’

नया अध्ययन इस विचार को और आगे बढ़ाता है। इसमें स्वास्थ्य सेवा व्यवसायी, शिक्षक और इंजीनियर जैसे 319 ज्ञान आधारित पेशेवरों पर सर्वेक्षण किया गया, जिन्होंने एआई की मदद से किए गए 936 कार्यों पर चर्चा की।

दिलचस्प बात यह है कि अध्ययन में पाया गया कि उपयोगकर्ता काम करते समय विश्लेषणात्मक सोच का कम उपयोग करते हैं।

अध्ययन में पाया गया कि जिन लोगों ने एआई पर अधिक भरोसा किया वे सामान्यतः विश्लेषणात्मक सोच का कम इस्तेमाल करते हैं, जबकि जिन लोगों को स्वयं पर अधिक भरोसा था, उनकी सोचने-समझने की क्षमता काफी अच्छी थी।

इससे पता चलता है कि एआई किसी की विश्लेषणात्मक क्षमता को नुकसान नहीं पहुंचाता है - बशर्ते वह व्यक्ति शुरू से ही इसमें माहिर हो।

‘जनरेटिव एआई’ आपकी विश्लेषणात्मक क्षमता को नुकसान न पहुंचाए, यह सुनिश्चित करने का एकमात्र तरीका है कि इसका उपयोग करने से पहले आप अपनी सूझबूझ को बरकरार रखें।

चॉक और चॉकबोर्ड ने हमें गणित में बेहतर बनाया। क्या एआई हमें ‘क्रिटिकल थिंकिंग’ में बेहतर बना सकता है? शायद - अगर हम सावधान रहें, तो हम अपनी ‘क्रिटिकल थिंकिंग’ को बढ़ाने के लिए एआई का उपयोग करने में सक्षम हो सकते हैं।

(द कन्वरसेशन)