स्थानीय मुद्दों पर ध्यान और ‘आप-दा’ पर प्रहार कर दिल्ली की सत्ता में लौटी भाजपा
नयी दिल्ली, आठ फरवरी (भाषा) भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के अपने कल्याणकारी वादों के जरिये ‘आप’ के वोट बैंक को साधने के लिए स्थानीय मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करने और दिल्ली की सत्तारूढ़ पार्टी को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा ‘‘आप-दा’’ करार दिये जाने से मतदाताओं के बीच भाजपा के पक्ष में माहौल बना, जिससे 27 साल बाद राष्ट्रीय राजधानी की सत्ता में इसकी वापसी हुई है।
दिल्ली की 70 सदस्यीय विधानसभा के लिए हुए चुनाव में भाजपा ने एक ऐसे साहसी और महत्वाकांक्षी विपक्षी नेता अरविंद केजरीवाल का सफाया कर दिया, जिन्होंने आम आदमी पार्टी(आप) को अपने बूते राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई थी। इतना ही नहीं, भाजपा ने लोकसभा चुनाव के बाद पहले ही बिखराव की ओर बढ़ चुके ‘इंडिया’ गठबंधन की भी इस चुनाव में चूलें हिला दीं।
भ्रष्टाचार के आरोपों और ‘शीशमहल’ कांड ने जनता के बीच ‘आप’ के संयोजक की ‘‘कट्टर ईमानदार’’ छवि को ध्वस्त कर दिया और उसके बाद भाजपा ने करो या मरो की अपनी नीति पर आगे बढ़ते हुए दिल्ली में बदलाव के लिए बिगुल फूंक दिया।
राष्ट्रीय राजधानी के विभिन्न हिस्सों में भाजपा के प्रचार अभियान की अगुवाई करने वाले पार्टी के कई नेताओं ने कहा कि 2020 में उनका गहन अभियान असफल हो गया था, क्योंकि मतदाताओं ने ‘आप’ सरकार के पहले पांच साल को शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्रों में इसकी कथित सफलताओं और महिलाओं के लिए मुफ्त बस यात्रा और मुफ्त बिजली जैसी कल्याणकारी नीतियों से जोड़ कर मतदान किया था।
भाजपा नेताओं का कहना है कि उस समय सरकार के खिलाफ भ्रष्टाचार के कोई गंभीर आरोप भी नहीं थे। लेकिन इस बार स्थिति ऐसी नहीं थी और दिल्ली की सत्तारूढ़ पार्टी(आप) के पास दूसरे कार्यकाल की अपनी सफलता दिखाने के लिए ज्यादा कुछ नहीं था।
एक भाजपा नेता ने कहा, 2020 में भी हमारी वोट हिस्सेदारी काफी बढ़ी थी, लेकिन आप के मत प्रतिशत में कोई अधिक कमी नहीं आई थी। इस बार हम अपने मतों को बरकरार रखते हुए उसके (आप के) जनाधार को कम करने में सफल रहे।
भाजपा का मत प्रतिशत 2015 में 32 फीसदी से बढ़कर 2020 में 38.5 प्रतिशत हो गया था, जबकि आप का मत प्रतिशत क्रमशः 54 फीसदी और 53.5 प्रतिशत था। इस बार भाजपा का मत प्रतिशत बढ़कर लगभग 46 फीसदी हो गया, जबकि ‘आप’ का मत प्रतिशत घटकर 43.5 प्रतिशत रह गया।
भाजपा नेताओं ने कहा कि इस बार लोगों में यह व्यापक रूप से स्वीकार्यता थी कि पिछले पांच वर्षों में शहर की जलापूर्ति, सड़कों की गुणवत्ता, कूड़ा एकत्र करने और वायु प्रदूषण में समग्र गिरावट आई है।
उन्होंने कहा कि मतदाताओं का एक बड़ा वर्ग, विशेषकर मध्यम वर्ग, जो अपने जीवन की गुणवत्ता को प्रभावित करने वाले मुद्दों के प्रति संवेदनशील है, भाजपा के साथ मजबूती से खड़ा था, जबकि इसके कल्याणकारी वादों और मौजूदा योजनाओं को जारी रखने के वादे ने गरीब मतदाताओं के एक बड़े हिस्से को पार्टी के पक्ष में कर लिया।
भाजपा के एक नेता ने दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए अपनी पहली रैली में तीन जनवरी को मोदी द्वारा ‘‘आप-दा’’ शब्द गढ़ने का हवाला देते हुए ‘आप’ पर निशाना साधा और कहा कि यह वह क्षण था, जब पार्टी ने धारणा की लड़ाई में अपने प्रतिद्वंद्वी पर बढ़त हासिल करना शुरू कर दिया था।
उन्होंने कहा कि मोदी ने दो दिन बाद एक अन्य जनसभा में भरोसा दिलाया था कि यदि उनकी पार्टी सत्ता में आई तो वह किसी भी मौजूदा कल्याणकारी योजना को बंद नहीं करेगी।
उन्होंने कहा कि इससे उन्हें झुग्गी-झोपड़ी बस्तियों और अनधिकृत कॉलोनियों में रहने वाले गरीब लोगों को भाजपा को शासन का मौका देने के लिए सहमत करने का एक बड़ा आधार मिल गया।
जो गरीब मतदाता पहले कांग्रेस को वोट देते थे और फिर पूरी तरह से ‘आप’ का समर्थन करने लगे थे, उन्हें अपने पक्ष में करने के लिए भाजपा के पास एक ठोस एजेंडा था, क्योंकि कांग्रेस अब इनके लिए एक व्यवहार्य विकल्प नहीं रह गई थी।
भाजपा नेताओं ने कहा कि उनकी पार्टी ने झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले मतदाताओं के सबसे मजबूत प्रभाव वाली सात सीटों में से चार पर जीत हासिल की है। ये चार सीटें - तिमारपुर, बादली, नई दिल्ली और आर के पुरम - 2020 में आप ने जीती थीं लेकिन इस बार झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले मतदाताओं के एक बड़े हिस्से का वोट हासिल करने में पार्टी सफल रही।
भाजपा ने 70 सदस्यीय विधानसभा के लिए हुए चुनाव में 48 सीट पर जीत दर्ज की है।
केजरीवाल और उनके करीबी सहयोगी मनीष सिसोदिया का भी अपनी-अपनी सीटें हारना इस बात का संकेत है कि मतदाता पार्टी से पूरी तरह निराश थे।
‘आप’ के मतदाताओं में बड़ी संख्या उन लोगों की थी जो विचारधारा के तौर पर पार्टी के साथ नहीं थे बल्कि वे लोग थे जिन्हें उसकी कल्याणकारी योजनाओं का फायदा मिल रहा था।
लेकिन भाजपा के घोषणापत्र में ‘आप’ की कल्याणकारी योजनाओं पर एक कदम आगे बढ़ाते हुए भाजपा ने केंद्रीय मंत्रियों सहित अपने 25 से अधिक वरिष्ठ नेताओं को तैनात किया और प्रत्येक को दो-दो विधानसभा क्षेत्रों का प्रभारी बनाया।
प्रचार अभियान के माध्यम से प्रधानमंत्री मोदी से लेकर भाजपा के अन्य नेता जहां केजरीवाल को दिल्ली के लिए ‘‘आप-दा’’ बताकर ताबड़तोड़ हमले कर रहे थे वहीं गृह मंत्री अमित शाह जमीनी स्तर पर पार्टी की ओर से प्रबंधन की रणनीति पर काम कर रहे थे।
भाजपा के एक सूत्र ने बताया कि शाह ने राज्यों के चुनावों का प्रभार संभालने वाले केंद्रीय मंत्रियों और वरिष्ठ नेताओं को दो-दो विधानसभा सीट का जिम्मा सौंपा था और प्रतिदिन वह हर विधानसभा क्षेत्र की रिपोर्ट लेते थे।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि दिल्ली विधानसभा चुनाव में भाजपा ने अपनी एक और रणनीति में बदलाव यह किया कि उसने बड़े स्तर पर कथित ध्रुवीकरण का कोई प्रयास नहीं किया और इसका असर यह हुआ कि अल्पसंख्यकों के मत किसी दल या उम्मीदवार के पक्ष में एकतरफा तरीके से नहीं पड़े।