अक्टूबर-नवंबर में दिल्ली का अधिकांश प्रदूषण स्थानीय स्तर पर उत्पन्न होता है : अध्ययन
नयी दिल्ली, चार फरवरी (भाषा) अक्टूबर-नवंबर के दौरान दिल्ली-राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) का ज्यादातर प्रदूषण काफी हद तक स्थानीय कारणों से उत्पन्न होता है। एक अध्ययन में यह दावा किया गया है।
अध्ययन में यह भी कहा गया है कि 2022 में पीएम 2.5 के समग्र स्तर में 14 प्रतिशत का योगदान पराली जलाने के मामलों का था।
आकाश परियोजना के तहत जापान के ‘रिसर्च इंस्टीट्यूट फॉर ह्यूमैनिटी एंड नेचर’ के नेतृत्व में किए गए अध्ययन में कहा गया है कि दिल्ली की वायु गुणवत्ता में परिवर्तन चरणबद्ध प्रतिक्रिया कार्ययोजना (जीआरएपी) के अंतर्गत प्रदूषण रोधी उपायों को बढ़ाए जाने या घटाए जाने से संबंधित हो सकता है।
शोध पत्रिका ‘एनपीजे क्लाइमेट एंड एटमॉस्फेरिक साइंस’ में प्रकाशित अध्ययन में 2022 और 2023 के सितंबर-नवंबर महीनों के दौरान दर्ज किए गए अति सूक्ष्म कण (पीएम 2.5) के आंकड़ों का विश्लेषण किया गया। अध्ययन के लिए पंजाब, हरियाणा और दिल्ली-एनसीआर में 30 सेंसर लगाए गए।
धान की कटाई के बाद खेत को तैयार करने के लिए पराली जलाने का चलन है, जिसे अक्टूबर-नवंबर के महीनों के दौरान राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में पीएम 2.5 के स्तर में तेज और निरंतर वृद्धि के लिए जिम्मेदार ठहराया जाता है।
शोधकर्ताओं के मुताबिक, 2015-2023 के दौरान दिल्ली में पीएम 2.5 का स्तर स्थिर रहा, जबकि पंजाब और हरियाणा में पराली जलाने की घटनाओं में (जैसा कि उपग्रहों द्वारा दर्ज किया गया) कम से कम 50 प्रतिशत की कमी आई।
शोधकर्ताओं ने कहा, ‘‘इससे पता चलता है कि दिल्ली-एनसीआर में पीएम 2.5 घनत्व और पंजाब में पराली जलाने के बीच बहुत कमजोर संबंध है, जो इस क्षेत्र में वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने में जीआरएपी की प्रभावशीलता को उजागर करता है।’’
जीआरएपी वायु गुणवत्ता स्तर के अनुरूप चरणबद्ध तरीके से लागू किए जाने वाले प्रदूषण रोधी उपायों को संदर्भित करता है। जीआरएपी-4 सबसे सख्त उपाय है, जिसे तब लागू किया जाता है, जब वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) 450 को पार कर जाता है और ‘अत्यधिक गंभीर’ श्रेणी में पहुंच जाता है।
शोधकर्ताओं ने पाया कि पीएम 2.5 का स्तर जीआरएपी चरणों के बढ़ने या घटने के अनुरूप भिन्न-भिन्न था।
उन्होंने कहा, ‘‘दिल्ली-एनसीआर में पीएम 2.5 के स्तर में कमी मुख्य रूप से जीआरएपी के चौथे चरण के कारण हुई, जब सड़क यातायात और निर्माण गतिविधियों सहित अन्य स्रोतों से होने वाले प्रमुख पीएम 2.5 उत्सर्जन में कमी आई। हालांकि, 2022 और 2023 में जीआरएपी की पाबंदियां वापस लेने के बाद पीएम 2.5 के स्तर में वृद्धि दर्ज की गई।’’
अध्ययन के लेखक, आकाश परियोजना से संबद्ध और जापान एजेंसी फॉर मरीन-अर्थ साइंस एंड टेक्नोलॉजी के प्रमुख वैज्ञानिक प्रबीर पात्रा ने कहा, ‘‘पंजाब, हरियाणा और दिल्ली-एनसीआर के लगभग 30 स्थानों पर विश्लेषण के साथ, हम दिल्ली के पीएम 2.5 स्तर में पराली जलाने के योगदान को विशिष्ट घटनाओं और सप्ताह-मासिक औसत के आधार पर अलग करने में सक्षम हुए।’’
‘रिसर्च इंस्टीट्यूट फॉर ह्यूमैनिटी एंड नेचर’ की प्रमुख शोधकर्ता पूनम मंगराज ने कहा कि अध्ययन में वायु प्रदूषण को कम करने के लिए स्रोत (पंजाब), ‘रिसेप्टर’ (दिल्ली-एनसीआर) और मध्यवर्ती (हरियाणा) सभी क्षेत्रों में वायु प्रदूषण की निरंतर निगरानी के महत्व को रेखांकित किया गया है।
एक अप्रैल 2020 को शुरू की गई आकाश परियोजना का उद्देश्य उत्तर भारत में स्वच्छ वायु, बेहतर सार्वजनिक स्वास्थ्य और टिकाऊ कृषि के लिए सामाजिक परिवर्तनों को प्रोत्साहित करना है।