सूरत : भगवान के कृपा पात्र सौभाग्यशाली लोग ही करते हैं श्रीमद् भागवत कथा का श्रवण : पवन नंदनजी महाराज
महाराजजी ने कहा- श्री ठाकुरजी के कृपापात्र हैं श्री लक्ष्मीनाथ सेवा समिति सूरत-वृन्दावन के सदस्य
श्री लक्ष्मीनाथ सेवा समिति सूरत-वृंदावन द्वारा आयोजित सात दिवसीय श्रीमद् भागवत कथा का सिटी लाइट स्थित महाराजा अग्रसेन भवन के द्वारिका हाल में शुभारंभ हुआ है। श्रीमद् भागवत कथा से पूर्व गुरुवार को सुबह भव्य तुलसी कलश यात्रा सिटी लाइट सच्चियाय माता मंदिर से निकाली गई, जिसमें बड़ी संख्या में मातृशक्ति तुलसी कलश लिए जयकारे लगाते हुए शामिल हुई, जबकि पुरुष वर्ग सूरत में पहली बार तुलसी ध्वज लेकर कलश यात्रा में शामिल हुए। तुलसी के पौधे तो हर कलश यात्रा में रहती है, लेकिन तुलसी की ध्वजा पहली बार सूरत में कलश यात्रा में शामिल हुई।
समिति के अध्यक्ष शिवरतन देवड़ा, मंत्री मुरारी सराफ, ललित बजाज ने बताया कि तुलसी कलश यात्रा में कुसुम सराफ, कविता सराफ, सीमा सराफ, मधु शर्मा एवं इनकी टीम का भरपूर योगदान रहा। श्रीमद् भागवत कथा के मुख्य मनोरथी राजेन्द्र खैतान हैं। जबकि दैनिक पूजा मनोरथी रामनाथ सराफ परिवार है। समिति के विश्वनाथ पचेरिया ने सभी धर्मानुरागी स्नेहीजनों से श्रीमद् भागवत कथा श्रवण कर धर्म लाभ लेने की अपील की है।
लोक विख्यात संत विजय कौशलजी महाराज के कृपा पात्र वृंदावन के आचार्य पवन नंदनजी महाराज ने व्यासपीठ से श्रीमद् भागवत कथा के प्रथम दिन गुरुवार को श्रीमद् भागवत कथा महात्म्य का वर्णन करते हुए कहा कि जन्म-जन्मांतर एवं युग-युगांतर के पूण्य अर्जित होते हैं तब जाकर श्रीमद् भागवत कथा श्रवण का अवसर प्राप्त होता है। कथा श्रवण की इच्छा तो सभी करते हैं, लेकिन पूरी भगवान की कृपा से होती है। भगवान की कृपा पात्र बड़े भाग्यशाली लोगों को ही श्रीमद् भागवत कथा श्रवण का अवसर प्राप्त होता है। महाराज जी ने कहा कि तापी किनारे कुबेर नगरी सूरत में 7 दिनों तक भागवतिक गंगा बहेगी। भागवतिक गंगा और भागीरथी गंगा दोनों पाप हारिणी हैं। जिस प्रकार भागीरथी गंगा में गोता लगाने, किनारे बैठकर स्नान करने, हथेली पर जल लेकर शरीर छिड़कने तथा दूर खड़े होकर देखने का पूण्य मिलता है। उसी प्रकार श्रीमद् भागवत कथा रुपी भागवतिक गंगा में सभी अपनी पात्रता के अनुसार लाभ अर्जित करते हैं। जिस तरह गंगा में स्नान करने से तन के पाप दूर हो जाते हैं, उसी तरह भागवतिक गंगा में गोता लगाने से अंतः करण के पाप दूर हो जाते हैं।
महाराजजी ने सनत, सनंतन, सनातन, सनत्कुमार सनकादिक ऋषियों, शुकदेव जी के व्याख्यान का वर्णन करते हुए कहा कि शुकदेव जी महाराज 17 ग्रंथों का कथा सभी ऋषियों को सुना चुके थे। तब ऋषियों ने कहा महाराज अब कथा श्रवण नहीं करना चाहते, अब कथा का सार क्या है वह जानना चाहते हैं और वह कथा बताएं, जिससे भागवान कृष्ण की प्राप्ति हो जाए। तब शुकदेवजी ने सनकादिक ऋषियों से श्रीमद् भागवत की कथा श्रवण कराई। श्रीमद् भागवत की कथा देवताओं के लिए भी दुर्लभ है। महर्षि नारद जी पृथ्वी लोक पर भ्रमण करते हुए सभी तीर्थों का विचरण किया, लेकिन उन्हें कहीं भी रहने के लिए सुंदर स्थान नहीं दिखा। वृंदावन के पास गए जहां उन्होंने त्यागी भवन, मौनी आश्रम, ब्रह्मचर्य के बच्चे खेलते हुए देखा। इसके बाद गृहस्थ के घर भी गए। संसार में गृहस्थ से बड़ा कोई आश्रम नहीं है। इसके बाद नारद जी ने एक मंदिर में पहुंचे जहां महिलाएं कीर्तन कर रही थी।
वृंदावन में हुकुम चले बरसाने वाली का, कान्हा भी दीवाना राधे रानी का.... इस भजन पर सभी भक्ति भाव विभोर होकर नृत्य करने लगे
नारद जी वृंदावन जाते हैं और यमुना जी में स्नान करते हैं वहीं एक नारी (भक्ति महारानी) रोती-बिलखती हुई मिलती हैं, जो नारदजी से अपने पुत्र ज्ञान- वैराग्य के स्वस्थ होने की विनय करती है। नारद जी ने भक्ति महारानी को आश्वासन देते हैं कि कलियुग के प्रभाव से आपके पुत्र ज्ञान-वैराग्य वृद्ध हो गये हैं। उन्हें स्वस्थ होने के लिए नारद जी ने गीता पाठ, उपनिषद सुनाएं फिर भी स्वस्थ नहीं हुए तो नारद जी बदरिका आश्रम गए जहां सनकादिक ऋषियों से इसका उपाय पूछा। सनकादिक ऋषियों ने श्रीमद्भागवत कथा का श्रवण करने का उपाय सुझाया और हरिद्वार गंगा के तट पर चारों ऋषियों ने श्रीमद् भागवत कथा सुनाई, जिसमें सभी ऋषिगण, देवता, भक्ति महारानी श्रीमद् भागवत का कथा श्रवण किया।
श्रीमद् भागवत कथा श्रवण से भक्ति महारानी के पुत्र ज्ञान-वैराग्य नृत्य करने लगे। अपने पुत्रों को स्वस्थ और नृत्य करते देख भक्ति महारानी भी नृत्य करने लगी। उनके साथ सभी ऋषिगण, भक्तगण... हे कृष्ण गोविंद हरे मुरारे, हे नाथ नारायण वासुदेव..का गान करते हुए नृत्य करने लगे। इस दरम्यान पूरा पंडाल भक्ति में हो गया। भागवत कथा का काम ही है ज्ञान-वैराग्य एवं भक्ति को पुष्ट करना है। नारद जी के आदेश से भक्ति अपने पुत्रों ज्ञान-वैराग्य के साथ भक्तों के हृदय में निवास करती है। भागवत श्रवण करने वाले के हृदय में भक्ति,ज्ञान वैराग्य जागृत होता है। श्रीमद् भागवत कथा के प्रभाव से पापी से पापी व्यक्ति का भी पाप दूर हो जाता है। मन,वचन एवं कर्म से पाप करने वाले के पाप भी श्रीमद् भागवत कथा श्रवण से दूर हो जाते हैं।