राज्यसभा : उपसभापति हरिवंश ने धनखड़ को पद से हटाने की मांग वाले विपक्ष के नोटिस को किया खारिज

राज्यसभा : उपसभापति हरिवंश ने धनखड़ को पद से हटाने की मांग वाले विपक्ष के नोटिस को किया खारिज

नयी दिल्ली, 19 दिसंबर (भाषा) राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश ने बृहस्पतिवार को विपक्ष का वह नोटिस खारिज कर दिया जिसमें पक्षपातपूर्ण तरीके से उच्च सदन के संचालन का आरोप लगाते हुए सभापति जगदीप धनखड़ को पद से हटाने की मांग की गई थी। राज्यसभा के महासचिव पी सी मोदी ने उच्च सदन में यह घोषणा की।

महासचिव मोदी ने उपसभापति द्वारा दी गयी इस व्यवस्था की प्रति सदन के पटल पर रखी।

उप सभापति ने धनखड़ के खिलाफ नोटिस को अनुचित और त्रुटिपूर्ण करार दिया और कहा कि इसे उपराष्ट्रपति की प्रतिष्ठा को धूमिल करने के लिए जल्दबाजी में तैयार किया गया। सूत्रों ने यह जानकारी दी।

सूत्रों ने बताया कि राज्यसभा के महासचिव पी सी मोदी को सौंपे अपने फैसले में हरिवंश ने कहा कि नोटिस देश की संवैधानिक संस्थाओं की गरिमा कम करने और मौजूदा उपराष्ट्रपति की छवि खराब करने की साजिश का हिस्सा है।

उल्लेखनीय है कि विपक्षी गठबंधन ‘इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इन्क्लूसिव अलायंस’ (इंडिया) के घटक दलों ने सभापति धनखड़ को उपराष्ट्रपति पद से हटाने के लिए प्रस्ताव लाने संबंधी नोटिस 10 दिसंबर को राज्यसभा के महासचिव को सौंपा था।

विपक्षी सदस्यों ने संविधान के अनुच्छेद 67 (बी) के तहत उपराष्ट्रपति के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने के इरादे से नोटिस दिया था।

विपक्ष ने कहा था कि धनखड़ द्वारा ‘अत्यंत पक्षपातपूर्ण’ तरीके से राज्यसभा की कार्रवाई संचालित करने के कारण यह कदम उठाना पड़ा है।

सूत्रों के मुताबिक उपसभापति ने फैसला सुनाया कि ‘व्यक्तिगत रूप से निशाना बनाने के मकसद से लाए गए’ नोटिस की गंभीरता तथ्यों से परे है और प्रचार हासिल करने के उद्देश्य से है।

उन्होंने यह भी कहा कि नोटिस सबसे बड़े लोकतंत्र के उपराष्ट्रपति के उच्च संवैधानिक पद को जानबूझकर महत्वहीन बनाने और अपमानित करने का एक ‘दुस्साहस’ है।

सूत्रों ने कहा कि संसद और उसके सदस्यों की प्रतिष्ठा के लिए चिंताजनक बात है कि नोटिस में ऐसे दावे भरे पड़े हैं जो निवर्तमान उपराष्ट्रपति की छवि को खराब करने के लिए हैं।

उपसभापति ने अपने फैसले में कहा कि नोटिस में अनुच्छेद 67 (बी) का आह्वान किया गया है, जो उपराष्ट्रपति को हटाने पर विचार करने वाले किसी भी प्रस्ताव के लिए कम से कम 14 दिन पहले नोटिस देना अनिवार्य करता है।

उन्होंने कहा कि इस प्रकार 10 दिसंबर, 2024 का दिया गया नोटिस 24 दिसंबर, 2024 के बाद ही कुछ हो सकता था।

उप सभापति ने अपने फैसले में कहा कि इस सत्र के दौरान प्रस्ताव नहीं लाया जा सकता है क्योंकि वर्तमान सत्र 20 दिसंबर तक ही प्रस्तावित है।

उन्होंने कहा कि इस स्थिति को पूरी तरह से जानते हुए भी केवल दूसरे सर्वोच्च संवैधानिक पद और उपराष्ट्रपति के खिलाफ एक विमर्श स्थापित करने के लिए यह सब किया गया।

हरिवंश ने यह भी कहा कि नोटिस में ‘नेकनीयती की कमी' है और बाद की घटनाओं से पता चलता है कि ‘यह प्रचार पाने का एक सोचा-समझा प्रयास था।

सूत्रों ने कहा कि उपसभापति ने यह भी फैसला सुनाया है कि पूर्वाग्रही इरादा एक समन्वित मीडिया अभियान के आयोजन के माध्यम से प्रकट हुआ, जिसमें 12 दिसंबर, 2024 को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, मुख्य विपक्षी दल के नेता और मुख्य सचेतक द्वारा शुरू की गई एक टेलीविजन प्रेस कॉन्फ्रेंस भी शामिल है।

नोटिस पर कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, द्रमुक, समाजवादी पार्टी और कई अन्य विपक्षी दलों के 60 नेताओं ने हस्ताक्षर किए थे। कांग्रेस संसदीय दल की प्रमुख सोनिया गांधी, नेता प्रतिपक्ष मल्लिकार्जुन खरगे, द्रमुक नेता तिरुचि शिवा और तृणमूल कांग्रेस के नेता डेरेक ओब्रायन ने इस नोटिस पर हस्ताक्षर नहीं किए थे।

समाजवादी पार्टी के नेता रामगोपाल यादव, आम आदमी पार्टी के संजय सिंह, तृणमूल कांग्रेस के सुखेंदु शेखर रॉय, राज्यसभा में कांग्रेस के उप नेता प्रमोद तिवारी, मुख्य सचेतक जयराम रमेश, वरिष्ठ नेता राजीव शुक्ला तथा कई अन्य वरिष्ठ सदस्यों ने धनखड़ के खिलाफ दिए गए नोटिस पर हस्ताक्षर किए थे।